(12) चली गाड़ी! धुआं ये उड़ाती चली।(दिल)(1946)



              चली गाड़ी! धुआं ये उड़ाती चली।

गाना: चली गाड़ी धुआं ये उड़ाती चली। फिल्म: दिल(1946)।गायिका: नूरजहां। गायक: मोतीलाल। गीतकार: रज़ीउद्दीन।संगीतकार: जाफर खुर्शीद।

नूरजहां सन 1947 के पहले की सबसे बड़ी गायिका और अभिनेत्री थीं। उनके गाए गीत आवाज दे कहां है, आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, जवां है मोहब्बत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं। 

मोतीलाल राजवंश (1910 –1965), गायक-अभिनेता, देवदास और परख  के लिए फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार के विजेता और हिंदी सिनेमा के संभवतः सबसे पहले स्वाभाविक अभिनेता थे। मोतीलाल के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए ये छोटा वीडियो देखें।



आज का गाना इन दोनों बड़े कलाकारों द्वारा फिल्मी रेल यात्रा के दौरान ही गाया गया है। रेल यात्रा के साथ नूरजहां की मधुर आवाज़ और बीच-बीच में मोतीलाल का सुरीला आलाप! बस इसी रेलगीत में मिलेगा ये सब!

इस गाने का वीडियो यूट्यूब पर ढूंढने के बाद में भी नहीं मिला। पर किस्मत से ऑडियो आसानी से उपलब्ध है। आप ध्यान से सुनिए: चली गाड़ी धुआं ये उड़ाती चली। आपके दिमाग में इस मोहक छुक-छुक तराने से पिक्चर अपने आप बनती चली जायेगी! आपको ये लहराती, बलखाती, तराने गाती,पहाड़ों का मंजर और मोहब्बत का रास्ता दिखाती दिखेगी; नूरजहां की आवाज़ में!

गीत:

चली गाड़ी। चली गाड़ी। धुआं ये उड़ाती चली।

चली गाड़ी। चली गाड़ी। चली गाड़ी। चली गाड़ी। 

धुआं ये उड़ाती चली।चली गाड़ी। 

ये लहराती बलखाती जाने लगी।

ये लहराती बलखाती जाने लगी।

ये छुक छुक तराने भी गाने लगी।

ये छुक छुक तराने भी गाने लगी।

पहाड़ों के मंजर दिखाने लगी।

पहाड़ों के मंजर दिखाने लगी।

कू कू। कू कू। कभी कू कू सीटी बजाती चली।

कभी कू कू सीटी बजाती चली।

चली गाड़ी। चली गाड़ी। धुआं ये उड़ाती चली।

कहीं फूल निखरे हैं सब्जे कहीं। ये दिल चाहता है रहें अब यहीं।

कहीं फूल निखरे हैं सब्जे कहीं। ये दिल चाहता है रहें अब यहीं।

मंजर कहीं ऐसे देखे नहीं। मुहब्बत के रस्ते दिखाते चली।

मंजर कहीं ऐसे देखे नहीं। मुहब्बत के रस्ते दिखाते चली।

चली गाड़ी। चली गाड़ी। धुआं ये उड़ाती चली।

चली गाड़ी। चली गाड़ी। धुआं ये उड़ाती चली।


इस गाने के गीतकार  रज़ीउद्दीन ने  सिर्फ दो साल  1946 और 1947  में  फिल्मी गाने लिखे। उनके गाने इन तीन फिल्मों में  लिखे गए थे: सर्कस किंग(1946), दिल (1946) और रास्ता (1947)। इन्हें मुंशी रज़ीउद्दीन के नाम से भी जाना जाता था। ये मूलतः एक कव्वाल थे और दिल्ली के एक प्रसिद्ध कव्वाल खानदान से ताल्लुक रखते थे। ये हैदराबाद  निजाम के दरबार में भी कव्वालियां पेश किया करते थे। विभाजन के बाद ये भी नूरजहां के समान पाकिस्तान चले गए। वहां जाकर फिर कव्वाल बन गए।

प्रसिद्ध गाने 'दिल चाहता है' की एक लाइन  इस  प्रकार है: दिल चाहता है, हम ना रहें कभी यारों के बिन। और आज के गाने की एक लाइन ऐसी है: ये दिल चाहता है रहें अब यहीं।

हो सकता है नए गाने  को इसी पुराने गाने से प्रेरणा मिली हो।

सोचिए , ये रेल गीत एक कव्वाल ने लिखा है और गाया नूरजहां और मोतीलाल ने है। संगीत दिया है जाफर खुर्शीद ने। संगीतकार जाफर खुर्शीद ने भी सिर्फ तीन फिल्मों में ही संगीत किया है: दिल (1946), रास्ता (1947) और भेदी लुटेरा (1955)। इनके बारे में नेट पर कोई भी अतिरिक्त जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है।

फिल्म दिल (1946)  के सभी गाने सुनने के लिए यहां क्लिक करें।

अगर रेल न दिखाएं तो रेल प्रेमी नाराज़ हो जाएंगे। गाने में रेल न देख पाए तो क्या हुआ आज पुराने रेलवे स्टेशनों को जी भर के देख लेते हैं:

सन 1947 के पहले अखंड भारत के रेलवे स्टेशनों की  पुरानी तस्वीरें।  बंबई के 10 पुराने रेलवे स्टेशन।


दिल चाहता है रहें अब यहीं ,गए भी तो लौट आना है बस यहीं।


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


🚂_____🚂_____🚂____🚂____🚂_____🚂____🚂

Popular posts from this blog

रेल संगीत-परिचय

(1) आई बहार आज आई बहार (1941)

(3) तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।(1942)