(30) भाभी आई, भाभी आई!
पंकज खन्ना
9424810575
हो सकता है आपको ये गाना रेलगीत न लगे। पर हम इसे रेल गीत ही मानेंगे। क्योंकि गीत, रेल यात्रा पर ही आधारित है। (बिलकुल वैसे ही जैसे अशोक कुमार का रेलगीत 'रेल गाड़ी'.... आने वाले समय में जरूर कवर करेंगे।)
ये हास्य गीत भी है और बाल गीत भी है। इस रेलगीत का आनंद देखने में है, सिर्फ सुनने में नहीं! बड़ी प्यारी सी मासूमियत है इस गाने में। एक छोटी सी 10 वर्षीय बच्ची ने बड़ी अदा और ऊर्जा से रेल का और उसकी आने वाली भाभी का गुणगान किया है। एक बार देखेंगे तो दूसरी बार फिर देखने की इच्छा होगी!
ये गीत भी फिल्म सुबह का तारा (1954) से ही है। पिछले सप्ताह आपने पढ़ा, देखा और सुना था: गया अंधेरा हुआ ऊजारा। आज सुनिए: भाभी आई, भाभी आई। संगीतकार सी रामचंद्र। गायिका : उषा मंगेशकर। फिल्म के निर्माता: वी शांताराम।
गीतकार हैं नूर लखनवी। इनका पूरा नाम है: कृष्ण बिहारी नूर लखनवी। कृष्ण बिहारी श्रीवास्तव, फ़ज़ल लखनवी के शागिर्द बने तो उन्हें नाम दिया गया: कृष्ण बिहारी नूर। बाद में कहलाए : कृष्ण बिहारी नूर लखनवी। अंत में ये नूर लखनवी नाम से ही जाने जाते थे। इन्होंने लगभग 30 फिल्मी गीत लिखे हैं। इनकी फिल्मों से अधिक बाहर की शायरी और गजलें ज्यादा प्रसिद्ध हुईं। उनके द्वारा ये श्रेष्ठ गीत कुछ ऐसे लिखा गया है:
भाभी आई, भाभी आई। बड़ी धूम धाम से मेरी भाभी आई। बड़ी धूम धाम से मेरी भाभी आई। भाभी आई।
रेल ने सीटी मारी, जल्दी में गिरी बिचारी।
भाभी का डील था मोटा, और रेल का डिब्बा छोटा।
रेल ने सीटी मारी, जल्दी में गिरी बिचारी।
मुश्किल से जा के उस में वो समाई।भाभी आई भाभी आई।
खिड़की से निकाली गर्दन और भक भक बोले इंजन।
भाभी ने जो घूँघट खोला और आँख में पड़ गया कोयला।
खिड़की से निकाली गर्दन और भक भक बोले इंजन।
भाभी ने जो घूँघट खोला और आँख में पड़ गया कोयला।।
भाभी जी ने आँख भी गंवाई, भाभी आई, भाभी आई।
पान बीड़ी माचिस सिगरेट, पान बीड़ी माचिस सिगरेट।
चाय गरम, चाय गरम, चाय गरम।
ताँगा, इ तांगे वाले इधर आओ।
भाभी ने बुलाया ताँगा, उस ने एक रुपैया माँगा।
तांगे का नसीबा फूटा, तांगे का पहिया टुटा।
भाभी ने बुलाया ताँगा, उस ने एक रुपैया माँगा।
तांगे का नसीबा फूटा, तांगे का पहिया टुटा।
ठुमक, ठुमक, ठुम्मक पैदल आई।
ठुमक, ठुमक, ठुम्मक पैदल आई।
भाभी आई, भाभी आई।
लो भाभी घूँघट खोलो,आओ भैया से बोलो आओ आओ।
लो भाभी घूँघट खोलो,आओ भैया से बोलो आओ आओ।
तबियत हमारे भैया की ललचाई। भाभी आई, भाभी आई।
ये पहले स्पष्ट कर दिया जाए कि तब भाभी का मतलब और रिश्ता बड़ा पवित्र हुआ करता था। आज भाभी शब्द के साथ जो फूहड़ बातें होती हैं या जो भाभी के नाम पर अश्लील गाने परोसे जाते हैं बड़े बुरे लगते हैं।
बहुत से पाठकों ने ये गाना उपरी तौर पर सुना होगा। पर देखा कम ही ने होगा। गाने को बहुत ध्यान से सुनने के बाद मालूम होगा कि ये एक बाल गीत और हास्य गीत है!
ये छोटी बच्ची यानी बाल कलाकार बेबी राजश्री फिल्म में अपने बड़े भाई प्रदीपकुमार को छेड़ते हुए गाना गा रही हैं। ये बेबी राजश्री की पहली फिल्म थी। पहले रेल गाड़ी की और काल्पनिक मोटी भाभी की एक्टिंग करती हैं, फिर Abacus नुमा खिलौने की चौखट में से ऐसे झांकती हैं जैसे रेल की खिड़की से झांक रही हों। साथ ही उनकी खिलौना रेलगाड़ी भी दिखाई देती है। इसके बाद रेलगाड़ी के 'पान, बीड़ी, माचिस, सिगरेट वाले' और 'चाय वाले' का उत्तम अभिनय।
(राजश्री वी शांताराम और जयश्री की दूसरे नंबर की संतान हैं। संभवतः सुबह का तारा एक मात्र ऐसी फिल्म है जिसमें शांताराम, जयश्री और राजश्री ने एक साथ काम किया है।)
बचपन में ये गाना मोहल्ले के बच्चे, भाई लोगों की शादियों के प्रोग्राम में अक्सर गाया करते थे।
इसी पिक्चर में एक गाने में हकले गुरू और शिष्य पर भी एक गीत है: दो हकलों का सुनो फसाना। जिसे गाया है लता मंगेशकर और चंद्रकांता ने। बाद में फिल्म खूबसूरत (सन 1980) में दीदियों को परेशान करने के लिए आशा भोंसले की आवाज़ में ये गीत आया था: सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए रिश्ता आया है! इसमें भी लड़के के हकलाने का प्रसंग है।
अब आज के गाने की गायिका उषा मंगेशकर की भी बात कर ली जाए। उषा मंगेशकर का यह पहला हिंदी गाना था और इस गाने में उनकी आवाज बाल कलाकार बेबी राजश्री पर बहुत अच्छी तरह से जमी है।
इस गाने में असली रेल नहीं है तो क्या हुआ! उषा मंगेशकर की ही आवाज़ में एक मराठी रेलगीत देख-सुन लेते हैं। रेलप्रेमी और संगीत प्रेमी सभी देख सकते हैं और आनंद ले सकते हैं।
इस मराठी रेलगीत के बोल हैं: हिरवा शालू हिरवी चोली । फिल्म का नाम है :चंदनाची चोली अंग अंग जाली। फिल्म वी शांताराम की ही है। गाना फिल्माया गया है संध्या पर। संगीतकार हैं राम कदम। गीतकार हैं: जगदीश खेबूदकर।
दरअसल ये एक लावणी गीत भी है। और उषा मंगेशकर एक बेहतरीन लावणी गायिका रही हैं। लावणी शब्द 'लावण्य' से बना है । लावण्य मतलब सुंदरता।
संक्षेप में, लावणी महाराष्ट्र का महिलाओं द्वारा सज-धज कर 9 गज लंबी (नौवारी, लुगड़ा) साड़ियां पहनकर, पांव में घुंघरू पहन कर और पूरे चेहरे पर आभूषण ग्रहण करके, तेज गति से ढोलक की थाप पर किया जाने वाला पारंपरिक, शरारती, मौज मस्ती वाला और कुछ-कुछ कामुक नृत्य-गीत है जो प्रेमियों को रिझाने के लिए और उनसे प्रेम की स्वीकृति पाने के लिए भी गाया जाता है।
(हमारे विदर्भ के एक मित्र ने बहुत सारे साल, बाल और माल गंवाए हैं 'लावणी' के चक्कर में! सब आज ही बता दें!? इच्छा तो भोत है पर रेन दो भिया, रेल पटरी पर से उतर जाएगी!)
इस रेलगीत और लावणी की शुरुआत पारंपरिक ढोलक से होती है। ये सच है कि ढोलक की थाप के बिना लावणी शुरू हो ही नहीं सकती। अज्ञात स्टीम इंजन की अज्ञात ट्रेन में एक बर्थ में खिड़की वाली सीट पर सजधज कर 9 वारी साड़ी पहनकर गाने की हीरोइन संध्या बैठी हैं और गाना गा रही हैं। पास में उनकी सखियां हैं जो कोरस में गा रही हैं। उनके सामने की बर्थ पर ढोलक वादक और अन्य वादक कलाकार बैठे हैं। स्टीम इंजिन और ट्रेन के बहुत सारे मनोहारी दृश्य भी बीच बीच में दिखाए गए हैं।
आप तो बस देखिए और सुनिए! मराठी नहीं भी आती है तो क्या हुआ!? नृत्य देखिए, रेल देखिए, इंजन देखिए, पुल से गुजरती ट्रेन देखिए! राम कदम का बेहतरीन संगीत संयोजन सुनिए: स्टीम इंजन की आवाज़, रेल की धड़क धड़क, इंजन की सीटी और लावणी का कर्णप्रिय मधुर संगीत! संभवतः रेल और लावणी का संगम सिर्फ इसी गीत में है।
लावणी में अगर दर्शक न हों तो फिर वो लावणी कैसी? इस गीत में भी लावणी को एक रंगमंच पर भी दिखाया जाता है और रेल में भी। कभी रेल, कभी रंगमंच! कभी रंगमंच, कभी रेल! रंगमंच के सामने बैठे दर्शकों की लावणी में भागीदारी और उत्साह देखते ही बनता है। आज भी महाराष्ट्र के कई गांवों में जत्रा में या तमाशा/आड़ा तमाशा/लावणी नृत्य गीतों के दौरान ऐसा माहौल दिखता है। हमारी किस्मत से दस साल महाराष्ट्र में रहे और ये सब करीब से देखने-सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
फुरसत मिले तो जाइए कभी महाराष्ट्र लावणी देखने। कम से कम ये रेलगीत/लावणी तो सुन ही लीजिए, घर बैठे!
इंदौरी दोस्तों के लिए विशेष: पिछले 18-20 सालों से इंदौर में जत्रा का आयोजन मानसून के बाद किया जाता है जिसमें मराठी खाने पीने के अलावा महाराष्ट्र का लोक संगीत भी बच्चों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। अधिकतर गैर मराठी दोस्त मराठी व्यंजन खा पीकर निकल लेते हैं बगैर ये सुंदर लावणी या अन्य नृत्य देखे। हम इंदौरी या तो खाते हैं या खाने के बारे में बाते करते हैं या खाने के बारे में सोचते हैं! फिर टाइम ही नहीं बचता कुछ करने के लिए!
भोत लिख दिया भिया! येइ सोच रिया हूं अब किधर जाऊं और क्या खाऊं!!