फिल्म: एक्ट्रेस(1948)। गायिका: ललिता देउलकर और शमशाद बेगम। गीतकार: राजा मेंहदी अली खान। संगीतकार : श्याम सुंदर।
रेल के डब्बे में एक कोने में टाई सूट पहने फिल्म के हीरो प्रेम अदीब बैठे हैं दूसरी तरफ दस-बारह लुगाईयों का झुंड। वो क्या कहते थे पुरानी कहावत में? फंस गई रजिया गुंडों में!? हुजूर, यहां तो नज़ारा ही दूसरा है। फंस गया हीरो गुंडियों में!
महिलाओं ने हीरो के खिलाफ बड़ा प्यारा सा मोर्चा खोल रखा है। हाथों में वाद्य यंत्र लिए गा रही हैं। सबसे आगे रेहाना और इंदुमती हैं। बीच-बीच में 'लारा लप्पा गर्ल' मीना शोरी भी दिखाई दे रही हैं। भारत को स्वतंत्र हुए एक साल बीत चुका है और सन 1948 के फिल्म के इस गाने में भारतीय नारियों का एक अलग ही चंचल, शोख और मनभावन स्वरूप दिखाई दे रहा है। (इस गाने को देखकर कर सन 1949 में आया
लारा लप्पा गाना भी याद आ जाता है।)
ये भारत की सन्नारियां सूटेड-बुटेड हीरो को हर्षोल्लास के साथ नाच गाकर हिंग्लिश में और मुफ्त में देसी ज्ञान बांट रही हैं:
"टाई फेंको अंग्रेज जा चुके हैं। इंग्लिश
चीज़ें कर दो ban।
Be an indian, if you can.। आंखे खोलो, बदल गया है भारत का मैप। भाग गई अंग्रेजी टोपी, रह गई गांधी कैप। डाउन डाउन अंगरेझी टोपी, अप अप गांधी कैप। खद्दर पहनो अजी तुम खद्दर पहनो। खद्दर पहनो जेंटलमैन।"
नसीहत देते-देते रेहाना पहले तो तो हीरो के एकमात्र साथी के गले से फलालेन का मफलर ये गाते हुए फेंक देती हैं: "खद्दर पहनो जेंटलमैन। फेंको इंग्लिश फलालेन। फेंको फेंको फेंको फेंको फेंको।"
और गाने के अंत में रेहाना जेंटलमैन के सूट को उतारने पे आमादा हो जाती हैं! जेंटलमैन घबराकर टॉयलेट* में कट लेते हैं। शायद फारिग भी हुए हों;)
अंत में स्टीम इंजिन और डब्बों के भी दर्शन करा दिए जाते हैं। इंजिन सीटी भी मार देता है। गाना खतम।
आप भी पढ़िए गाने के बोल और देख ही डालें
ये गाना भी।
हैलो हेलो जेंटलमैन! मिलाते क्यों नहीं हमसे नैन
तबियत कैसी है, कैसी है कैसी है।
तबीयत, तबियत, तबियत कैसी है कैसी है कैसी है।
हेलो हेलो हेलो हैलो हेलो। हैट तो हमने फेंक दिया, हैट तो हमने फेंक दिया। तुम फेंको ना टाई, चला गया अंग्रेज।
कह दो सबको गुड बाई। कह दो सबको गुड बाई।
इंग्लिश चीज़ें कर दो बैन, इंग्लिश चीज़ें कर दो बैन।
Be an indian if you can. Be an indian if you can.
हैलो हेलो जेंटलमैन मिलाते क्यों नहीं हमसे नैन।
तबीयत कैसी है, कैसी है, कैसी है।
तबीयत, तबियत, तबियत कैसी है।
हैलो हैलो हैलो हैलो हैलो। आंखे खोलो ,आंखे खोलो बदल गया है भारत का मैप। बदला भारत का मैप।
भाग गई अंग्रेजी टोपी, रह गई गांधी कैप।
रह गई गांधी कैप, रह गई अपनी गांधी कैप।
डाउन डाउन अंगरेझी टोपी, डाउन डाउन अंगरेझी टोपी।
अप अप गांधी कैप। अप अप गांधी कैप।
खद्दर पहनो अजी तुम खद्दर पहनो।
खद्दर पहनो जेंटलमैन। फेंको इंग्लिश फलालेन।
फेंको फेंको फेंको फेंको फेंको। हैलो हेलो जेंटलमैन मिलाते क्यू नहीं हमसे नैन। तबियत कैसी है, कैसी है, कैसी है।
तबियत, तबियत, तबियत कैसी है। हैलो हैलो हैलो हैलो हैलो।
तबियत, तबियत, तबियत कैसी है। हैलो हैलो हैलो हैलो हैलो।
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*ये फिल्म एक्ट्रेस 1948 में बनी थी। खुशकिस्मती से तब तक रेलवे में टॉयलेट आ चुके थे। और गाने के जेंटलमैन टॉयलेट में घुसकर महिला मंडल के प्रकोप से बच सके।
भारत में रेलों की शुरुआत सन 1853 में हुई थी। और रेलवे में टॉयलेट आए सन 1909 से। मतलब अंग्रेजों की रेलवे कंपनियों को ट्रेनों में जनरल क्लास में टॉयलेट बनाने में 56 साल लग गए!
1909 से पहले लोग ट्रेन के रुकने पर पटरी के किनारे ही फारिग हो जाया करते थे। देश में पटरियों पर हल्के होने की परंपरा शायद तभी से चली आ रही है!
लोग दूर पटरियों पर या रेलवे स्टेशन के टॉयलेट पर जाने की आवश्यकता के कारण कभी-कभी ट्रेन ही मिस कर दिया करते थे। सन 1902 में ऐसा ही कुछ हुआ बंगाल के रेल यात्री बाबू ओखिल चंद्र सेन के साथ। उन्होंने कुछ ऐसा-वैसा या कुछ ज्यादा खा लिया होगा। वो बेचारे दिशा-मैदान के लिए गए और इतने में ही ट्रेन चलने की सीटी बज गई। बेचारे ट्रेन पकड़ने के लिए एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ से धोती पकड़े भागे। रास्ते में गिर गए और धोती खुल गई! और उधर उनका इंतजार किए बिना गार्ड बाबू ने हरी झंडी दिखा दी, ट्रेन निकल ली!
जाहिर सी बात है, ओखील बाबू को बहुत तकलीफ पहुंची! उन्होंने तब एक बहुत ही मनोरंजक पत्र टूटी-फूटी, ग्रामर-विहीन अंग्रेजी में साहिबगंज डिविजनल ऑफिस, रेलवे को लिखा जिसे आप नीच पढ़ सकते हैं:
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Date: 02 – 07 – 1909
Divisional Railway Officer,
Sahibgunj,
Dear Sir,
I am arrive by passenger train Ahmedpur station and my belly is too much swelling with jackfruit. I am therefore went to privy. Just I doing the nuisance that guard making whistle blow for train to go off and I am running with ‘LOTAH’ in one hand and ‘DHOTI’ in the next when I am fall over and expose all my shocking to man and female women on platform. I am got leaved Ahmedpur station.
This too much bad, if passenger go to make dung that dam guard not wait train minutes for him. I am therefor pray your honour to make big fine on that guard for public sake. Otherwise I am making big report to papers.
Your’s faithfully servant,
Okhil Ch. Sen
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उनका लिखा ये पत्र रेल संग्रहालय दिल्ली में देखा जा सकता है। रेलवे टाइम टेबल के शुरु के पेजेस में भी इस पत्र की कॉपी लगाई जाती रही है।
ओखिल बाबू सिर्फ ये चाहते थे कि गार्ड के खिलाफ एक्शन लिया जाए। अग्रेजों ने गार्ड बाबू के खिलाफ कोई कार्यवाही की या नहीं, पता नहीं! लेकिन इसके बाद रेलवे के साधारण डिब्बों में भी टॉयलेट बनाने के कवायद शुरू हो गई। और अंततः सन 1909 तक आते आते ये सुविधा हर उस ट्रेन में लागू कर दी गई जो 50 मील से ज्यादा सफर करती थी।
अगली बार जब कभी रेल में टॉयलेट उपयोग करना पड़े और आपको टॉयलेट आपके स्टैंडर्ड से थोडा कम लगे तो कष्ट निवारण के लिए ओखिल बाबू को याद कर लेना। आपके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी! दिल और दिमाग का मेल भी दूर हो जाएगा!
पंकज खन्ना
9424810575
मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:
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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
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Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
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पुनश्चः रेल यात्रियों के लिए टॉयलेट की सुविधा 1909 में शुरू कर दी गई थी। लेकिन Loco-Pilots (Engine Drivers) के लिए ये सुविधा सन 2016 से ही इंजन में शुरू हो पाई है। ये बात आश्चर्यजनक लग सकती है।
पर आपको इतना आश्चर्य करने की कोई जरूरत नहीं है! Loco-Pilots को भी अगर लोटा-धोती पकड़कर कभी भागना पड़ा होता तो ये सुविधा उनको बहुत पहले मिल जाती!
रेल प्रेमी तो इतनी कहानी से खुश हो जाएंगे। संगीत प्रेमियों का दिल इतने से नहीं भरेगा। इस फिल्म का एक बेहतरीन गाना सुनिए जिसे गाया है चरित्र अभिनेता डेविड ने:
इसी फिल्म के अन्य गानों के लिंक भी नीचे लगा दिए हैं: