(3) तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।(1942)
इस गाने 'ये दुनिया तूफान मेल' में रेल यात्रा और जीवन यात्रा की बड़ी सुंदर तुलना की गई है। इसे गाया है दादा साहेब फालके पुरस्कार से सम्मानित और पद्मश्री कानन देवी ने। प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका कानन देवी बंगाल की पहली सुपरस्टार थीं। कानन देवी ने हिन्दी और बंगाली में तूफान मेल गीत गाकर पहले से ही प्रसिद्ध तूफान मेल ट्रेन को अमर कर दिया। वो Lux के उस काल के विज्ञापन में भी दिख चुकी हैं। और उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
इस गाने में संगीत दिया है कमल दासगुप्ता ने और गीतकार हैं पंडित मधुर। फिल्म का नाम है जवाब (1942)। और यकीन जानिए, इस रेल गीत का कोई जवाब नहीं! खुद सुन लीजिए।
(फिल्म जवाब उस जमाने के प्रेम त्रिकोण की कहानी है। धनवान और विलक्षण नायक। पहली हीरोइन करोड़पति रायबहादुर की साहसी, स्त्रीवादी, वक्त से थोड़ा आगे चलने वाली बेटी। दूसरी हीरोइन बूढ़े रेलवे स्टेशन मास्टर की मृदुभाषी, ईमानदार पोती। संभवतः यह नारीवाद या Feminism पर पहली हिन्दी फिल्म थी। फिल्म जवाब पर बने एक इंटरव्यू को देखने के लिए यहां क्लिक करें। )
अभी तो बस इसी रेल गीत: तूफान मेल पर ही फोकस करेंगे! और अगर तूफान मेल ट्रेन और इसकी मालिकाना कंपनी East Indian Railway* के बारे में थोड़ी सी अतिरिक्त जानकारी चाहिए तो नीचे फुटनोट में दी गई है।
बहुत ही सहज, सरल शब्दों में पंडित मधुर ने ये गीत लिख दिया है! इसके लिए आपको किसी शब्दकोश या शिक्षक की जरूरत नहीं है। और कोचिंग की तो बिलकुल ही नहीं! तब के सुपरहिट गाने को देखने-सुनने के लिए यहां क्लिक करें। इसी गाने का बंगाली वर्शन ( बंगाली फिल्म: शेष उत्तर) भी देख सकते हैं।
लताजी की आवाज में भी ये गाना सुन सकते हैं। उन्होंने कानन देवी को श्रद्धांजलि देते हुए ये गीत गाया था जिसका ऑडियो एकदम स्पष्ट है। अगर आपको पुराने जमाने का ऑडियो पसंद नहीं है तो लताजी की आवाज में सुनें। दिल को करार आ जाएगा!
गाने के बोल कुछ ऐसे हैं:
तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।
इसके पहिये ज़ोर से चलते, और अपना रस्ता तय करते।
इसके पहिये ज़ोर से चलते,और अपना रस्ता तय करते।
स्याने इससे काम निकालें, स्याने इससे काम निकालें।
बच्चे समझे खेल, तूफ़ान मेल।
दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल
कोई कहीं का टिकट कटाता, इक आता है, इक है जाता।
सभी मुसाफ़िर बिछड़ जायेंगे, पल भर का है मेल।
तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।
जो जितनी पूँजी है रखते, उसी मुताबिक़ सफ़र वो करते।
जो जितनी पूँजी है रखते, उसी मुताबिक़ सफ़र वो करते।
जीवन का है भेद बताती, ज्ञानी को ये रेल।
तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।
इसके पहिये ज़ोर से चलते, और अपना रस्ता तय करते।
इसके पहिये ज़ोर से चलते,और अपना रस्ता तय करते।
स्याने इससे काम निकालें, स्याने इससे काम निकालें।
बच्चे समझे खेल, तूफ़ान मेल।
दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल
कोई कहीं का टिकट कटाता, इक आता है, इक है जाता।
सभी मुसाफ़िर बिछड़ जायेंगे, पल भर का है मेल।
तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।
जो जितनी पूँजी है रखते, उसी मुताबिक़ सफ़र वो करते।
जो जितनी पूँजी है रखते, उसी मुताबिक़ सफ़र वो करते।
जीवन का है भेद बताती, ज्ञानी को ये रेल।
तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।
गाने में सर्व प्रथम East Indian Railway* की रेल को दिखाया गया है। इस गाने में ये ट्रेन या रेल ही हीरो है! हीरोइन कानन देवी एक कानन (वन) या बगीचे के पेड़ की डाली से खेलती हुई और ट्रेन को निहारते हुए दार्शनिक अंदाज़ में गाती हुई दिखाई देती हैं। गाना चलता जाता है और रेल भी। गाने में कभी ट्रेन दिखाई जाती है और कभी कानन देवी। गाने के आखरी हिस्से में भाप के इंजिन ( Steam tank Locomotive EIR 1360) को अच्छे से दिखाया गया है जिसे देखकर कोई भी रेल प्रेमी आनंदित हो जाएगा!
फिल्मों के शुरुआती दौर का गाना है। तब तकनीक का अभाव था लेकिन कला, गीत-संगीत, और कुछ करने के जज्बे में कहीं कोई कमी नहीं थी। और इस गाने द्वारा दिया गया संदेश भी उम्दा है।
जीवन यात्रा और रेल यात्रा की समानताएं इस गाने में अच्छे से बताई गई हैं। संक्षेप में, गाने का संदेश एकदम सरल है। रेल यात्रा हो या जीवन यात्रा, सभी मुसाफ़िर बिछड़ जायेंगे, पल भर का है मेल। इसी पल भर के मेल का आनंद ही जिंदगी है।
इन समानताओं के अलावा एक बड़ा अंतर भी है रेल यात्रा और जीवन यात्रा में, जो गाने में नहीं बताया गया है। रेल यात्रा में आपको अंतिम पड़ाव की जानकारी होती है! आपको मालूम होता है कि आपकी रेल यात्रा संभवतः कब और कहां समाप्त होगी। जीवन यात्रा कब, कहां और कैसे संपन्न होगी ; कोई नहीं जानता। प्रभु ने हमारा टिकट काट रखा है। कौन सा है आखरी स्टेशन!? राम जाने!! यही जीवन यात्रा की खूबसूरती है।
रेल यात्राओं और जीवन यात्रा के हर पड़ाव का भरपूर आनंद लें। आपकी जीवन यात्रा सतत जारी रहे!🙏
पंकज खन्ना
9424810575
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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
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Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
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Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।
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*बात कर ली जाए तूफान मेल रेलगाड़ी की। अंग्रेजों के जमाने की प्राइवेट कंपनी ईस्ट इंडियन रेलवे (EIR) जिसकी स्थापना इंग्लैंड में सन 1845 में हुई थी ने जून 1930 में इस तूफान मेल का शुभारंभ किया था। EIR कंपनी को British Raj ने 1926 में Class 1 का दर्ज दिया था। तूफान मेल EIR की सबसे अधिक प्रतिष्ठित रेल थी। सन 1952 में भारत सरकार ने प्राइवेट कंपनी EIR का विलय भारतीय रेल में कर दिया।
ये ट्रेन इतनी प्रसिद्द थी कि इसके नाम पर कई गाने और फिल्में बनी। (तूफान मेल नाम से एक फिल्म 1934 में रिलीज़ हुई थी। और 1942 में एक फिल्म Return of Toofan Mail भी रिलीज़ हुई थी। इन दोनों ही फिल्मों के video उपलब्ध नहीं हैं। इनके गाने हैं जिनमें रेल संगीत सुनाई नहीं पड़ता है।)
बड़ा सोचकर नाम रखा होगा इस ट्रेन का! आप विश्वास करेंगे कि ये ट्रेन स्टीम इंजन की ताकत से दिल्ली और हावड़ा के बीच का रास्ता 28 घंटे में पूरा करती थी!? और दशकों बाद इसकी स्पीड डीजल/इलेक्ट्रिक इंजनों के आगमन के बाद कम होती गई और टाइम बड़कर हो गया 36 घंटे! (ऐसा हुआ बढ़ते हुए ट्रैफिक, Stoppages और सुरक्षा कारणों से भी।)
1947 के पहले प्रसिद्ध ट्रेनों के नाम और नंबर ऐसे होते थे:
हावड़ा कालका मेल 1अप और 2 डाउन,
हावड़ा बॉम्बे 3 अप और 4 डाउन,
पंजाब मेल 5 अप और 6 डाउन और
तूफान मेल 7 अप और 8 डाउन।
रेल संगीत में उपरोक्त सभी रेलों का नम्बर आएगा धीरे-धीरे!
तूफान मेल अपने छोटे-छोटे स्टापेज के लिए विशेष तौर पर पहचानी जाती थी। छोटे-छोटे स्टेशन पर रुकने के कारण लोकप्रिय भी थी। वक्त के साथ इसका नाम और गंतव्य भी बदलता गया। दशकों तक तूफान मेल ने 7 अप और 8 डाउन नाम से देश और रेल यात्रियों की सेवा की। बाद में उसका नाम हो गया था तूफान एक्सप्रेस। और अंत में इसका नाम हो गया : आभा उद्यान तूफान एक्सप्रेस ( नंबर 13007/13008) जो हावड़ा से श्री गंगानगर के बीच चलती थी ।
तूफान एक्सप्रेस राइट टाइम नहीं रहने वाली ट्रेनों में गिनी जाती थी। अंत में, तूफान शब्द से इसका कुछ लेना देना नहीं रह गया था:)
लगभग 90 वर्ष तक यात्रियों को ठिकाने लगाने वाली तूफान मेल/तूफान एक्सप्रेस का सफर कोरोना काल से ही बगैर किसी समारोह के 20 मई 2020 से समाप्त हो चुका है। कोरोना ने सिर्फ इंसानों को ही नहीं कुछ ट्रेनों को भी लीला है। कोरोना के डसने के बाद तूफान मेल फिर कभी चल नहीं पाई।
वंदे भारत और बुलेट ट्रेन के जमाने में तूफान मेल को याद करना शायद अधिक सामयिक न हो लेकिन कुछ भी कहो तूफान मेल की कुछ रूहानी और तूफानी फेयरवेल तो बनती थी।
अब उस गजब नई फिल्म को भी याद कर लेते हैं जिसका नाम है : 8 डाउन तूफान मेल (2021)। ये फिल्म बनी है लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की वंशज विलायत महल बेगम की जीवन कथा पर। वाजिद अली शाह और विलायत महल बेगम के बारे में हम तवा संगीत के आलेख (बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए) में भी एक अन्य परिप्रेक्ष्य में चर्चा कर चुके हैं।
सन 1974 में विलायत महल बेगम एक दिन 8 डाउन तूफान मेल(2021) से नई दिल्ली स्टेशन पर धीरे से उतरीं और नई दिल्ली स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम पर जोर से कब्जा कर लिया। और फिर वो वहीं सालोंं तक 'मेरी मर्जी' वाले शाही, नवाबी अंदाज़ में जमीं रहीं। इंदिरा गांधी भी उन्हें वहां से कई सालों तक हिला न पाईं। अगर आपको ये ऐतिहासिक कहानी रोचक लगती है तो इस कहानी पर बनी पूरी फिल्म यहीं क्लिक करके देख लें।
बेगम साहिबा का बेखौफ होकर, अपने नौकर के साथ, फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम का सालों के लिए कब्जे करना। सिख स्टेशन मास्टर और विलायत महल बेगम के बीच के हिंदी उर्दू में संवाद। स्टेशन मास्टर से अपने आपको 'Her Highness' बुलवाना। सत्तर के दशक में हड़ताल पर बैठे रेलवे कर्मचारी, रिक्शा वाला, स्टेशन मास्टर और उसकी मां, दिल्ली स्टेशन का सत्तर के दशक वाला रिक्रिएशन और इंदिरा गांधी का चित्रांकन। पीछे से ट्रेनों की आवाज़। और बीच में कहीं वाजिद अली शाह का लिखा 'बाबुल मोरा' गीत का बजना। अदभुत है भिया ! बहुत तमीज की फिल्म है! जब मौका मिले जरूर देखना!