(4) ये रेल हमारे घर की (1942) स्टेशन मास्टर

पंकज खन्ना 

9424810575

 

                       ये रेल हमारे घर की


गायक/गायिका:  प्रेम अदीब/ राजकुमारी। गीतकार:  पी एल संतोषी। संगीतकार : नौशाद। निर्देशक: चिमनलाल लुहार
निर्माता: विजय और शंकर भट्ट, प्रकाश पिक्चर्स, बंबई।



अगर आप रेलप्रेमी या रेलफैन हैं तो इस 82 साल पुरानी फिल्म को जरूर देखें।  पूरी पिक्चर रेल, प्लेटफॉर्म, रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवार वालों के बारे में है। जबरदस्त प्रेम कथा है। रेलवे के ऑफिस , गेस्ट हाउस, वेटिंग रूम, पुरानी ट्रेन, पुराना प्लेटफॉर्म, प्लेटफॉर्म पर नृत्य करती नाटक मंडली,  पुराना स्टीम इंजन, पुराने रेलवे क्वार्टर्स, पुराना फर्नीचर। पुराने स्टाइल का विवाह। रईस अंग्रेजों की रईस रेलवे के गरीब स्टेशन मास्टर की ईमानदारी। रेल का मोर्स कोड वाला  कम्युनिकेशन सिस्टम, प्राचीन सिग्नल सिस्टम, मधुर रेल संगीत और ढेर सारे रेल गीत। 13 डाउन एक्सप्रेस। BB and CI Railways (1855-1951)। 

सब कुछ पुराना! अब यही सब हमारे लिए नवीनता है! फिल्म देखने के लिए यहां क्लिक करें: स्टेशन मास्टर (1942) 

और अगर संगीत प्रेमी हैं तो  इस अभागे, भूले हुए गाने को अवश्य ही सुनें और देखें। नौशाद, पी एल संतोषी, प्रेम अदीब और राजकुमारी का जादू है इस गाने में।

गाने से पहले उस जमाने के रेलवे यात्रियों के सबसे महत्व पूर्ण सामान यानी गठरी के बारे में बात करते हैं।

रेलसंगीत-परिचय में भी गठरी के विषय में थोड़ी सी चर्चा की गई है। हमारी पीढ़ी के लोग दादा-दादी, नाना-नानी की पोटलियों/गठरियों और उनसे निकलने वाले आश्चर्यजनक उपहारों से अच्छी तरह से परिचित हैं।

गठरी के ऊपर बनी कहावतें और मुहावरे आपने भी सुने होंगे जैसे: गठरी बांधना ( कहीं जाने के तैयारी करना)। गठरी कर देना ( मारपीट कर मोड़ तोड़ देना या घड़ी कर देना)। नया धोबी गठरी को भी साबुन लगाता है। तोरी गठरी में  लागे चोर बटोहिया का सोवे (कबीर वाणी)। पाप की गठरी ( पाप का घड़ा)।

के सी डे की आवाज़  में तेरी गठरी में लागा चोर आप पहले भी सुन चुके हैं। फुरसत में कभी कबीर वाणी में भी सुन सकते हैं: तोरी गठरी में लागे चोर, बटोहिया का सोवे

अब तो Holdall और गठहरियां लगभग अप्रचलित हो चुके हैं। इस प्रकार की पुरानी फिल्मों में इन्हें देखकर बहुत अच्छा लगता है।
 
आज के गाने में भी गठरी है। और ये गठरी है स्टेशन मास्टर (1942) की कलाकारा रत्नमाला की। उनकी गठरी प्लेटफॉर्म पर छूट गई है जिसमें उनकी 'अथाह' संपत्ति है जैसे माथे की बिंदीया, कजरे की डिबिया और बाबुल की दी हुई चुनरिया । और वो गार्ड बाबू ( प्रेम अदीब) से गाने में बोल रही हैं: गार्ड बाबू , गार्ड बाबू झंडी न दिखाना, सीटी ना बजाना! क्योंकि उनकी गठरी जो प्लेटफॉर्म पर छूट गई है!

ये रेल गीत एक हास्य गीत तो ही और बड़ा प्यारा, मासूम सा बाल गीत भी है। बड़े बूढ़े भी मजे ले सकते हैं, कभी वो भी जवान और बच्चे थे।

ऐसे प्यारे  बच्चों की नकली  रेलगाड़ी वाले गाने में आपको मजा जरूर आयेगा! एक बार देख तो लें: ये रेल हमारे घर की। 

ये रेल हमारे घर की। ये रेल हमारे घर की।
देखो भागे तेज हवा से।
बंबई वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
बंबई वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
ये रेल हमारे घर की। ये रेल हमारे घर की।
देखो भागे तेज हवा से।
बंबई वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
दिल्ली वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
लाहौर वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
लखनऊ वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
ये रेल हमारे घर की। ये रेल हमारे घर की।
देखो भागे तेज हवा से।
बंबई वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।
बंबई वाले बड़े मुसाफिर निकले  कलकत्ता से।

गार्ड बाबू गार्ड बाबू झंडी न दिखाना।
गार्ड बाबू गार्ड बाबू झंडी न दिखाना।
हो सीटी ना बजाना।
झंडी न दिखाना हो सीटी ना बजाना।
पलेटफारम पे रह गई गठरिया मोरी
पलेटफारम पे रह गई गठरिया।

तेरी गठरिया में ऐसा क्या है खजाना।
तेरी गठरिया में ऐसा क्या है खजाना।
देरी से गाड़ी करूं जो रवाना।
देरी से गाड़ी करूं जो रवाना।

गठरी में रह गई मोरी माथे की बिंदिया।
गठरी में रह गई मोरी माथे की बिंदिया।
माथे की बिंदिया हो कजरे की डिबिया।
माथे की बिंदिया हो कजरे की डिबिया।
बाबुल की दी हुई चुनरिया
हां मेरे बाबुल की दी हुई चुनरिया।
हां पलेटफारम पे रह गई गठरिया मोरी।
पलेटफारम पे रह गई गठरिया 

लो इंजन ने दे दी कूकी, 
हां इंजन ने दे दी कूकी
अब गाड़ी से उतरी तो चूकी।
अब गाड़ी से उतरी तो चूकी
फिर लेगा न कोई खबरिया।

मोरी प्लेटफॉर्म पे रह गई गठरिया।
गार्ड बाबू गार्ड बाबू झंडी तो  दिखाओ।
गार्ड बाबू गार्ड बाबू झंडी तो  दिखाओ।
झंडी तो दिखाओ ओ सीटी तो बजाओ।
बीत जाए ना यूं ही उमरिया
मोरी प्लेटफॉर्म पे रह गई गठरिया।

शायद 'DJ वाले बाबू' गाना इसी गार्ड बाबू  वाले  गाने से प्रेरित  है:)

इस रेलगीत में नौशाद ने सुंदर संगीत का संयोजन किया है। पार्श्व में रेल की आवाज़ और इंजन की सीटी का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। ये गीत और स्टेशन मास्टर के अन्य गीत उस दौर में बहुत पसंद किए गए थे। नौशाद को इसी फिल्म के संगीत के बाद सफलता मिलना शुरू हुई थी और इसके बाद फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सुरैया ने इस फिल्म से ही एक बाल-अभिनेत्री के रूप में पदार्पण किया। गाने में बच्चों की रेल में दूसरे नंबर पर सुरैया हैं। चाहें तो इस फिल्म की एक छोटी सी क्लिप बाल कलाकार सुरैया पर भी देख लें इस लिंक से।

(इसी फिल्म से सुरैया और राजकुमारी का गाया ये सुंदर गाना भी सुन सकते हैं: साजन घर आए।)

स्टेशन मास्टर फिल्म एक सफल और सिल्वर जुबिली फिल्म थी। इस फिल्म में दो और कर्णमधुर और ऐतिहासिक रेलगीत हैं जिनको हम अगले दो लेखों में समझेंगे। पहले देखेंगे: काया की रेल  निराली और फिर उसके बाद देखेंगे: मोरे परदेसी साजन।


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

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Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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