(11) जान बची सो लाखों पाए (1943)
गाने के बोल हैं:जान बची सो लाखों पाए! फिल्म का नाम संजोग (1943)। गायक: श्याम कुमार। गीतकार: डी एन मधोक। संगीत : नौशाद।
सबसे पहले तो आज का गाना जान बची सो लाखों पाए देख -सुन लीजिए। गीत के शुरुआत में स्टीम इंजन के चमचमाते लोहे के पहिए, क्रैंक, कनेक्टिंग रोड, पिस्टन और क्रॉसहेड दिखाई देते है। इंजिन को पूर्ण रूप से नहीं दिखाया गया है। लेकिन जितना दिखाया है वो भी कम नहीं है किसी भी सच्चे रेल प्रेमी/Ferroequinophile* के लिए। 'नौजवान' संगीतकार नौशाद (1919- 2006) ने गाने का अंत स्टीम इंजन की मधुर सीटी के कर्णप्रीय संगीत सृजन से किया है।
स्टीम इंजन के दर्शन कराने के कुछ ही क्षणों के बाद कैमरा सीधे एक बोगी पर केंद्रित हो जाता है। अब पूरा कैमरा इसी बोगी पर छाया रहता है। एक बर्थ पर गुजरे जमाने के हीरो वास्ती और हिंदी फिल्मों के प्रथम कॉमेडी किंग और प्रसिद्ध हीरो/गायक नूर मोहम्मद चार्ली ( 1911-1983 ) बैठे हुए हैं।
वास्ती भिया, श्याम कुमार की आवाज़ और नौशाद के शुरआती दिनों के संगीत में, स्वयं के घुटने और टखना पीटकर गाना गा रहे हैं और चार्ली मियां मुंह फुला के डेढ़ टांग पर सूम में बैठे हैं, असली चार्ली चैपलिन के स्टाइल में। अब गाने के बोल पढ़ लेते हैं:
जान बची, जान बची सो लाखों पाए ।
लौट के बुद्धू घर को आए।
जान बची सो लाखों पाए ।
भली हुई जो सच से छूटे नहीं तो आए महाराज।
भली हुई जो सच से छूटे नहीं तो आए महाराज।
हम रोते और घुमन घुमन जेल की चक्की आज।
हम रोते और घुमन घुमन जेल की चक्की आज।
ऐसी खातिर भाड़ में जाए।
जान बची सो लाखों पाए
जान बची, जान बची सो लाखों पाए
लौट के बुद्धू घर को आए।
जान बची सो लाखों पाए ।
शान से पिटते जूते खाकर , वहीं जो रहते आज।
शान से पिटते जूते खाकर , वहीं जो रहते आज।
आखिर उल्फत रंग ही लाती, बेड़ा होता पार।
आखिर उल्फत रंग ही लाती , बेड़ा होता पार।
मूरख है जो अब पछताए।
जान बची सो लाखों पाए ।
जान बची, जान बची सो लाखों पाए ।
लौट के बुद्धू घर को आए।
जान बची सो लाखों पाए ।
बांके आशिक जेब है खाली, रोटी को मोहताज।
बांके आशिक जेब है खाली, रोटी को मोहताज।
वही मसल है गंगवा तेली बाग में देखे राज।
वही मसल है गंगवा तेली बाग में देखे राज।
आंख खुली तो जूते खाए ।
जान बची सो लाखों पाए ।
( उल्फत मतलब प्रेम। मसल मतलब कहावत, लोकोक्ति)
आपने गाना पढ़ लिया है, देख लिया है तो समझ ही गए होंगे कि चार्ली बाबू मजनूगिरी करके पिट के आए हैं। जेल जाने से बाल-बाल बचे हैं और उनके दोस्त वास्ती मजे ले-ले कर गाना गा रहे हैं। हमारे पूर्वज बहुत मनचले होते थे। हमारा भी यही किरदार था। आज के नौजवानों का भी यही हाल है!भविष्य में भी येई सब होने वाला है भिया!
आप दोनों के चेहरे की अभिव्यक्तियां और भाव भंगिमाएं देखें, इनकी एक्टिंग को दाद दें और चलती रेल के प्राचीन काल के हास्य गीत का पूर्ण आनंद लें।
कुछ अतिरिक्त जानकारी:
-इस गीत के गायक श्याम कुमार ( 1913-1981) वो ही हैं जिन्होंने बाद में सन 1949 में सुरैया के साथ दिल्लगी फिल्म ( संगीतकार नौशाद) में सुपर हिट गाना तू मेरा चांद में तेरी चांदनी गाया था। श्याम कुमार का असली नाम सैय्यद गुल हमीद था। श्याम कुमार के गाए कुछ और प्रसिद्ध गानों को सुनने के लिए यहां क्लिक करें।
-आज के गीत में चार्ली का गायन नहीं है लेकिन उन्होंने हिंदी फिल्मों में कई गाने गाए हैं। नूर मोहम्मद चार्ली ने अपनी खुद की कॉमेडी शैली विकसित की और उनकी की कई अदाओं की नकल राजकपूर, जॉनी वॉकर और महमूद जैसे बड़े स्टारों ने भी की। वो पहले हास्य अभिनेता थे जिन पर गाने फिल्माए जाते थे। और वो खुद ही गाना गाते थे।
उनके इसी फिल्म संजोग के गाए गीत पपिहरा काहे मचावे शोर को आप जरूर सुनें। ये भी एक हास्य गीत या कॉमेडी गीत है और इनपर ही फिल्माया गया गया है। फिल्म वाले पपिहरा की जुगाड नहीं कर पाए तो खिड़की पर कबूतर बैठा दिए हैं! गियर बदल-बदल कर शब्दों का गज़ब उच्चारण किया है इन्होंने। शायद ही किसी और गाने में ऐसा प्रयोग किया गया हो।
इसके अलावा आप चार्ली का इसी फिल्म संजोग का एक और कॉमेडी गीत पलट तेरा ध्यान किधर है यहीं से सुन सकते हैं। गाना एकदम मस्त है! अब ये मौलिक गाना ज्यादा याद नहीं किया जाता है जबकि इस गाने की कई नकलें आज भी चलती हैं। और ये डायलॉग 'पलट तेरा ध्यान किधर' है आज भी खूब चलता है। {चार्ली की पैरोडी जिंदगी है फरेब, फरेब से निभाए जा (फिल्म चांद तारा,1945) भी काफी प्रसिद्ध हुई थी।}
नौशाद के मुरीदों के लिए विश्वास करना मुश्किल हो सकता है कि संजोग फिल्म के इन तीनों हास्य गीतों का बेहतरीन संगीत नौशाद ने ही दिया है!
- आज के गीत के गीतकार हैं डी एन मधोक मतलब दीनानाथ मधोक। इन्होंने ने ही सन 1939 में नौशाद को उनकी खुद की पंजाबी फिल्म मिर्जा साहिबान में सहायक संगीतकार के रूप में पहला मौका दिया था। डी एन मधोक को इस दौर में महाकवि मधोक भी कहा जाता था। इनका नाम इज्जत से कवि प्रदीप और केदार शर्मा के साथ लिया जाता था। उनका लिखा और सहगल का गाया दिया जलाओ आज तक याद किया जाता है। महाकवि मधोक के लिखे कुछ गीतों की झलकियां भी देख सकते हैं या पूर्ण गीत भी देख सकते हैं।
अब अंत में आप समझ सकते हैं कि ये रेल गीत 'जान बची तो लाखों पाए' कितने बड़े कलाकारों की टीम की कड़ी मेहनत के बाद बना होगा!
पंकज खन्ना
9424810575
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* रेलप्रेमी/Ferroequinophile:
जब रेल प्रेमियों की बात की जाती है तो इसका अर्थ सामान्यतः भाप के इंजिन प्रेमी ही होता है। संगीत प्रेमी करोड़ों की संख्या में मिल जाते हैं लेकिन भाप के इंजिन प्रेमियों की संख्या कुछ हजारों में ही होगी।
इन छोटे-छोटे साप्ताहिक लघु शोध पत्रों से कोशिश यही की जा रही है कि सभी लोग मानव के विकास और संगीत में भाप के इंजिन का अहम योगदान जानें, समझें और आनंद लें।
आज थोड़ी सी अंगरेजी झाड़ने की भी इच्छा हो रही है। पुरानी आदत है। बच्चा समझ के माफ कर देना!
रेल प्रेमियों के लिए अंग्रेजी में एक सीधा सा शब्द है : Railfan. लेकिन इसके अलावा एक कम पहचाना हुआ शब्द भी है: Ferroequinophile जिसका शाब्दिक मतलब है: लोहे के घोड़े को प्यार करने वाला। अति संक्षेप में, Ferro मतलब लोहा। Equino मतलब घोड़ा। Phile मतलब पसंद करने वाला। और जो व्यक्ति स्टीम इंजन का व्यापक अध्ययन करता है उसे कहते हैं: Ferroequinologist.
स्टीम इंजन की ताकत को अश्व शक्ति ( Horse Power) से जाना जाता था और स्टीम इंजन को कहा जाता था लोहे का घोड़ा। इसलिए रेलप्रेमियों को Ferroequinophile कहा जाने लगा। क्या आप भी Ferroequinophile कहलाना पसंद करेंगे?
जब कभी रेल यात्रा करें तो रेलवे स्टेशन, रेल, रेल कर्मचारियो को सूक्ष्मता से देखें और समझें। इस ब्लॉग को भी समय-समय पढ़ते रहिए;) थोड़े ही दिनों में आप भी Ferroequinophile बन जाएंगे!