(7) मुसाफिर हंसी खुशी हो पार (1942)
पंकज खन्ना
9424810575
पहले तो आज के गाने की फिल्म के बारे में बातें कर लेते हैं।फिल्म विश्वास के दो संगीतकार थे फिरोज़ निज़ामी और मास्टर छैला लाल। फिरोज़ निज़ामी ने फिल्म के आठ में से सात गानों में संगीत दिया है। फिरोज़ निज़ामी की यह पहली फिल्म थी। वो काफी पढ़े लिखे थे। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के जानकार थे और अपने नाम के आगे B.A. लिखना पसंद करते थे। मूलतः वो शास्त्रीय संगीत के गायक थे।(इसी फिल्म में फिरोज़ निज़ामी ने एक पैरोडी में भी संगीत दिया है: भोजन के नजारे हैं। ये पैरोडी 1941 में आई सुपर हिट फिल्म खजांची के इस सुपरहिट सावन गीत पर आधारित है : सावन के नजारे हैं। )
फिरोज़ निजामी के संगीत में फिल्म जुगनू (1947) में मोहम्मद रफी और नूरजहां द्वारा गाया ये गीत संगीत प्रेमी आज भी याद करते हैं: यहां बदला वफा का ।(1947 के बाद फिरोज़ निजामी भी नूरजहां के समान पाकिस्तान चले गए।)
और बचे एक गाने में मास्टर छैला लाल ने संगीत दिया है। ये अद्भुत गाना सुरेंद्र, सुलोचना चैटर्जी और बेबी माधुरी सहित बहुत सारे बच्चों पर फिल्माया गया था। ऑडियो: गा बन के पंछी गा। वीडियो: गा बन के पंछी गा। गायक : सुरेंद्र। गीतकार: मुंशी आज़म और शाम जिलानी। संगीत: मास्टर छैला लाल। जरूर सुनें और देखें सुरेंद्र की स्टाइल इस गाने में!
अब आज के रेलगीत की बात भी कर लेते हैं! इस सुमधुर गीत को गाया है पुराने जमाने के प्रसिद्ध गायक -अभिनेता सुरेंद्र (1910-1987) ने। और इस गाने को उन पर ही फिल्माया गया है। सुरेंद्र और सुरेंद्रनाथ एक ही इंसान हैं। सुरेंद्र** के एल सहगल की स्टाइल में गाया करते थे।
हर सूखे पत्ते की ओट से-2
झांक रही है बहार-2
मुसाफिर हंसी खुशी हो पार-2
दुख की राह में सुख की गलियां-2
गोद में कांटों की हैं कलियां -2
किए हुए श्रृंगार-2
मुसाफिर हंसी खुशी हो पार-2
रैन गई वो सूरज आया-2
आशा का उजियारा छाया-2
अब चिंता बेकार -2
मुसाफिर हंसी खुशी हो पार-2
बहुत बड़ा देश है तेरा जहां सुहाना सांझ सवेरा-2
बस हिम्मत मत हार।
गीतकार सफदर आह सीतापुरी ने ये बहुत ही अच्छा प्रेरणादायक गीत लिखा है। और वो भी बहुत ही साधारण भाषा में! एक आम आदमी इसका मतलब आसानी से समझ सकता है। एक रेल गीत होने के अलावा ये एक प्रेरणास्पद, 'मुसाफिर' और दार्शनिक गीत भी है। कर्णप्रिय और दर्शनीय तो है ही!
गाने की शुरुआत में हीरो सुरेंद्र को एक हाथ में होल्डाल और दूसरे हाथ में संदूक लिए ट्रेन की तरफ जाता हुआ दिखाया जाता है। गीत में स्टीम इंजन का लॉन्ग शॉट, क्लोज अप, स्टीम इंजन का धुआं और सीटी बजाना बार-बार दिखाया गया है। रेल के डब्बे का कवरेज भी उस वक्त के हिसाब से काफी अच्छा है। रेल प्रेमी इसे देखकर जरूर आनंदित होंगे।
इतनी पुरानी फिल्म होने के बाद भी वीडियो काफी साफ है। सुरेंद्र सुर में प्रेरणात्मक रेलगीत गा रहे हैं और बाकी मुसाफ़िर बड़े ध्यान से उनको सुन रहे हैं।
पूरे गाने का सारांश ये है कि रेल यात्रा या जीवन यात्रा को सहज रूप से हंसते-हंसते सकारात्मकता के साथ लेना चाहिए। कुछ लाइनें बहुत ही बढ़िया लिखी गई हैं । जैसे: हर सूखे पत्ते की ओट से झांक रही है बहार। और जैसे: रैन गई, वो सूरज आया , आशा का उजियारा छाया। और फिर इस लाइन पर भी ध्यान दें: दुख की राह में सुख की गलियां! सभी कुछ बहुत ही सकारात्मक और आशावादी है इस गाने में, सिर्फ अन्त छोड़कर।
इस गाने के अंत में रेल को दुर्घटना ग्रस्त होते दिखाया गया है। रेल पुल के नीचे गिर जाती है और गाना खतम हो जाता है। संभवतः हिंदी फिल्मों का ये पहला रेल दुर्घटना का सीन है। दुर्घटना ट्रेन के मॉडल पर फिल्माई गई प्रतीत होती है। और ये फिल्माया गया था आज से 82 वर्ष पहले!
दुर्घटना के बाद फिल्म का हीरो याददाश्त खो देता है और पागल करार दिया जाता है। बाद में ऐसा कुछ होता है कि हीरो की पिटाई उसी के भाई द्वारा कर दी जाती है। और फिर हीरो की याददाश्त लौट आती है! याददाश्त का जाना और फिर लौट आना भी शायद सबसे पहली बार इसी फिल्म में दिखाया गया है।
अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है। गाने-गुने बजते हैं। हीरो हीरोइन, और अन्य साइड हीरो हीरोइन का मिलन हो जाता है। परदे पर लिखा आ जाता है: The End!
The End मतलब, चलो काम धंधे पर निकलो भिया!
* सफदर आह सीतापुरी का लिखा और के एल सहगल का गाया ये गीत आज भी याद किया जाता है और महफिलों में गाया भी जाता है: दिल जलता है तो जलने दे।
**(सुरेंद्र के गाए कुछ भुला दिए गए गाने।)