(8) धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।



            धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। 


गाना: धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए! फिल्म: नई कहानी (1943) गायक: परेश बैनर्जी। गायिका: राजकुमारी। गीतकार: वली साहब। संगीतकार: श्याम सुंदर*। निर्माता और निर्देशक: डी डी कश्यप।



ये गाना परेश बैनर्जी और रोज़** (Rose) पर फिल्माया गया है। पढ़ते हैं गाने के बोल:

धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।

जवानी की नैय्या बहाए लिए जाए। जवानी की नैय्या बहाए लिए जाए। हां बहाए लिए जाए। हां बहाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।  धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। 

दिल का पता, दिल का पता और न मंजिल का पता आ आ।दिल का पता और न मंजिल का पता हाए। दिल का पता और न मंजिल का पता हाए। दिल का पता और न मंजिल का पता आ आ।

किश्ती का पता, किश्ती का पता और न साहिल का पता हाए।जिधर जी में आए भगाए लिए जाए। जिधर जी में आए भगाए लिए जाए। हां भगाए लिए जाए। हां भगाए लिए जाए। 

धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।  धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। 

पल के लिए ,पल के लिए है ये भरा रेल का मेला आ आ।पल के लिए ,पल के लिए है ये भरा रेल का मेला।

इंजन का जहां, इंजन का जहां साथ मिला पल में झमेला।

जीवन का नाटक दिखाए लिए जाए। जीवन का नाटक दिखाए लिए जाए। हां दिखाए लिए जाए। हां दिखाए लिए जाए।

धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी। धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।  धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। 

इस गीत में हीरो और हीरोइन यानी रोज़ और परेश बैनर्जी एक दूसरे को बड़े प्यार से देखकर परदे पर गाना रहे हैं। परेश अभिनय भी कर रहे हैं और गा भी रहे हैं। रोज़ के लिए पार्श्व गायन किया है राजकुमारी ने।

उनके बीच परदे पर केमिस्ट्री भी लाजवाब है। अगर आप गाने के शब्दों पर ध्यान न दें और सिर्फ इन्हीं दोनों को देखें तो लगेगा कि ये एक बहुत रोमांटिक गीत चल रहा है!

अब आते हैं गाने के शब्दों पर! कही कोई परस्पर प्रेम की बातें नहीं! सिर्फ और सिर्फ रेल के स्टीम इंजन की प्रशंसा और दार्शनिक अंदाज में रेल यात्रा का बखान! प्रेम से  एक दूसरे को देख रहे हैं और कर रहे हैं रेल स्तुति!  और ये रेल स्तुति इसलिए हो रही  है क्योंकि और एक यात्री ( पी जयराज, शायद) भी डब्बे में मौजूद है! 

कौनसी ट्रेन और कौनसा स्टीम इंजन है ये तो पता नहीं लग पाता है लेकिन ट्रेन के डिब्बे का इमारती लकड़ी का सुंदर इंटीरियर बहुत भव्य  दिखाई देता है। नजर भर देखने से ही मजा आ जाएगा। 

रेल और स्टीम इंजन की प्रशंसा होती है तो रेल प्रेमियों को अच्छा ही लगता है। आप भी स्टीम इंजन की रेल की तारीफ सुनें और जरूर देखिए ये अनूठा गाना: धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए!


पंकज खन्ना
9424810575

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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
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CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।



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 * संगीतकार श्याम सुंदर   (1914-1953)

सभी गुणी संगीतकारों के हिस्से में रेल गीत आयेंगे ये जरूरी नहीं है। श्याम सुंदर ने एक रेल गीत में संगीत रचा है  ये हमारा सौभाग्य है। श्याम सुंदर गुलाम हैदर से प्रभावित और एक अत्यंत प्रतिभाशाली संगीतकार थे। उन्होंने 4 पंजाबी और 20 हिंदी फिल्मों में सन 1939 से 1953 के बीच में बेहतरीन संगीत दिया था। श्याम सुंदर ने ही सबसे पहले मोहम्मद रफी को सन 1944 में पंजाबी फिल्म गुल बलोच में गाने का मौका दिया था।

 


अपने छोटे लेकिन बेहद सफल करियर में उन्होंने सोहनी कुम्हारान (1939), लैला मजनू (1940), जग्गा डाकू (1940), नई कहानी (1943), भाई (1944), विलेज गर्ल/गांव की गोरी (1945), देव कन्या (1946), अर्सी (1947), लाहौर (1949), बाज़ार (1949), कमल के फूल (1950), ढोलक (1951) और अलिफ़ लैला (1953) जैसी फिल्मों में संगीत दिया था।  (1953 में श्याम सुंदर के निधन के कारण मदन मोहन ने अलिफ़ लैला के लिए गीतों की रचना पूरी की थी।)

हमें उनके संगीतबद्ध किए दो गाने बहुत ही अधिक पसंद है। आप भी सुनिए।

(1) फिल्म नई कहानी: नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे
(2)फिल्म देव कन्या: पिया मिलन को जानेवाली।

**रोज़ (1911-1985)

रोज का पूरा नाम था Rose Musleah  और इन्हें मिस रोज़ नाम से भी जाना जाता था। ये यहूदी मूल (Jewish Origin) की गिनी चुनी अदाकारों में से एक  थीं और साइलेंट मूवीज में भी काम कर चुकी थीं।

रोज़ पर फिल्माए गए कुछ प्रमुख गाने इसी फिल्म नई कहानी में देख सकते हैं। उनकी अन्य फिल्मों के नाम हैं:पति भक्ति (1922), अपराधी (1931), बालिका बधू  (1931), तुर्की शेर (1933),अलादीन और जादूई चिराग - (1933), हमारी बेटियां (1936), मिस्टर एक्स. (1938), हम तुम और वो  (1938), अधूरी कहानी  (1939), माला (1941) और रामायणी  (1945)।





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