(9) पिया देस है जाना (1943)
पंकज खन्ना
9424810575
पिया देस है जाना, पिया देस है जाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना
पिया देस है जाना।
गाते हुए खम्भे, हँसते हुए पौधे।
गाते हुए खम्भे, हँसते हुए पौधे।
चलते हुए रस्ते, चलते हुए रस्ते।
कहते हैं ये मुझसे के, पिया देस है जाना।
कहते हैं ये मुझसे के, पिया देस है जाना।
पिया देस है जाना, पिया देस है जाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना।
पिया देस है जाना।
लोहे की ये पटरी, चलती हुई धरती।
लोहे की ये पटरी, चलती हुई धरती।
दी रेल ने सीटी, आवाज़ ये आई के
पिया देस है जाना, पिया देस है जाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना।
पिया देस है जाना।
उम्मीद को लेकर आते हैं तेरे घर।
उम्मीद को लेकर आते हैं तेरे घर।
है दिल की ज़बान पर, है दिल की ज़बान पर।
पिया देस है जाना।पिया देस है जाना।पिया देस है जाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना।
ऐसे में मोहब्बत का कोई जाम पिलाना।
पिया देस है जाना।
इस गाने के लेखक माहिरुल कादरी (1906-1978) एक कवि और शायर थे। सन 1943 से 1947 के बीच कुछ ही समय के लिए इनका फिल्मों से संबंध रहा। बहुत थोड़े गाने ही इन्होंने लिखे हैं। 1947 में वह कराची पाकिस्तान चले गए। उसके बाद फिर उनका रुझान सिर्फ साहित्यिक लेखन पर ही रहा जैसा की फिल्मों की तरफ रुख करने से पहले था। उनके लिखे दो शेर नीचे उद्धृत किए हैं:
(1) ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं।
(2) इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना
सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी।
अब जरा इनके लिखे आज के गीत को पढ़ें और हो सके तो सुनें भी। गीत के बोलों को साहित्यिक तो नहीं कहा जा सकता है। लेकिन यही साधारण रचना साधारण लोगों के दिल में सीधे उतर जाती है।
इस गाने का सिर्फ ऑडियो उपलब्ध है। इसलिए थोड़ा कल्पनाशीलता का सहारा लेना पड़ेगा भीड़ू! नायिका पी से मिलने जा रही ही है रेल से। मोहब्बत का जाम पिए। खिड़की से बाहर झांक रही होंगी पिया को याद करते हुए। प्रेम में डूबी हैं तो खंबे नाचते हुए दिख रहे हैं, पेड़ पौधे हंसते हुए दिख रहे हैं। शायद ट्रेन में बैठे नृत्य भी कर रही हों। दिमाग में तो नाच गाना चल ही रहा होगा। लोहे की पटरी, चलती धरती और रेल की सीटी सब कुछ उन्हें खुशनुमा यादें दिला रहा है और वो गा भी रहीं हैं : 'उम्मीद को लेकर आते हैं तेरे घर। उम्मीद को लेकर आते हैं तेरे घर। है दिल की ज़बान पर, है दिल की ज़बान पर। पिया देस है जाना। पिया देस है जाना'। पिया देस है जाना।
(माहिर उल कादरी का दूसरा लिखा और रामचंद्र चितलकर अर्थात सी रामचंद्र द्वारा गाया एक और गाना है इस फिल्म में: बिगड़ी हुई किस्मत को एक रोज बनाना है। )
प्रसिद्ध , काबिल संगीतकार सी रामचंद्र की बातें तो आगे भी होती रहेंगी। इन्होंने बहुत सारे रेल गीतों में संगीत जो दिया है।आज गायक अभिनेता ईश्वरलाल को ही तवज्जो दी जाए। बहुत कम लोगो ने इनका नाम सुना है।
(ईश्वरलाल , गायक और अभिनेता)ईश्वरलाल (1911-1969) एक अभिनेता, निर्देशक, निर्माता और गायक थे, जो 1930 से 1966 तक सक्रिय रहे। उन्होंने 86 फिल्मों में अभिनय किया, 11 का निर्देशन किया और 14 में गायन किया।
इनके उपरोक्त गाने (पिया देस है जाना) को आपने अब तक सुन लिया होगा। अगर किसी को यह न बताया जाए कि ये गाना किसने गाया है तो वो यही समझेगा/समझेगी कि ये गीत चितलकर (सी रामचंद्र) ने गाया है। ये गीत ईश्वरलाल की प्रतिभा दर्शाता है कि कैसे उन्होंने संगीतकार सी रामचंद्र के निर्देशन में उन्हीं की स्टाइल में गाना गाया है।
ये गाना फिल्म की हीरोइन पर फिल्माया गया था। लेकिन गाने में स्वर पुरुष के हैं। पुरानी फिल्मों में ये स्टाइल कॉमन थी। (विशेषतः एस डी बर्मन नायिकाओं के लिए स्वयं गाना पसंद करते थे। जैसे: ओ रे मांझी, सुन मेरे बंधु रे! एस डी बर्मन के रेल गीत भी आयेंगे अगले दशकों के गानों में। थोड़ा सा इंतजार करना होगा।)
ईश्वरलाल और कौशल्या द्वारा गाए गए दो और मधुर गीत इसी फिल्म से आप चाहें तो सुन सकते हैं:: देखा है एक सपना। और आई रे रंगीली होली आई रे।
ईश्वरलाल के दो और गाने अन्य फिल्मों से:
(1) जाके नैना मतवाले हैं। (प्यासा-41) गीतकार: डीएन मधोक । संगीतकार: खेमचंद प्रकाश।
(2) बनाने वाले घड़ा मुझको बनाया होता, मुझे भी शौक से उसने उठाया होता। (प्यासा-41) गीतकार: डीएन मधोक। संगीतकार: खेमचंद प्रकाश। इस गाने के शब्दों से ही समझ आ जायेगा कि बड़ा शरारती गाना है ये तो! कोर्स में है ये गाना, भिया!
गाने में रेल न दिखे तो थोड़ा सा खालीपन लगता है! इस कमी को पूरा करने के लिए आज चार्ली चैपलिन पर फिल्माए गए कुछ रेल वाले सीन भी देख लेते हैं।