(29) गया अंधेरा हुआ उजाला

पंकज खन्ना 

9424810575

 


                 (10)  गया अंधेरा हुआ उजाला   


'यात्रीगण कृपया ध्यान दें! गया अंधेरा हुआ उजाला! अंधेरा मिट चुका है, उजाला हो चुका है और  ये रेलगीत सही प्लेटफॉर्म पर पहुंच चुका है। यात्रीगण इस लिंक को दबाते ही इस रेलगीत को सुन सकते हैं। धन्यवाद!'

फिल्म का नाम है सुबह का तारा। संगीतकार: सी रामचंद्र। गीतकार: नूर लखनवी। गायक: तलत महमूद और गायिका: लता मंगेशकर। फिल्म के निर्देशक हैं वी शांताराम।

सबसे पहले फिल्म के नाम का मतलब समझ लें, जिंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी। सुबह का तारा ( Morning Star) या शाम का तारा ( Evening Star) एक ही चीज़ है। जिसे हम शुक्र तारा भी कहते हैं। वैसे ये तारा न होकर एक ग्रह है। लेकिन गीतकार नूर लखनवी के समान हम भी इसे सुबह का तारा ही मानेंगे। 

सोचिए अगर इस फिल्म का नाम होता 'शुक्र ग्रह'! आप पसंद करते!? बिलकुल नहीं!! शुक्र है, फिल्म का नाम 'सुबह का तारा ' ही रखा गया। 

सुबह का तारा सूर्योदय से थोड़ा  पहले पूर्व दिशा में आकाश में दिखाई देता है और सूर्योदय के कुछ समय बाद दिखाई देना बंद कर देता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे स्त्री ग्रह का प्रतीक माना जाता है। पश्चिमी सभ्यता में भी इसे स्त्रियों से संबंधित ही माना जाता है  और इसे कहा जाता है Venus (Goddess of Love) मतलब प्रेम की देवी।

ज्योतिष ऐसा कहते है कि अगर शुक्र ग्रह किसी  व्यक्ति की कुंडली में शुभ स्थिति में हो तो शुक्र की  दशा या महादशा में व्यक्ति को कई तरह के फ़ायदे हो सकते हैं जैसे: धन और वैभव की प्राप्ति, व्यक्तित्व में निखार आना, वैवाहिक जीवन सुखी होना,  बिगड़े काम बनना आदि। (वैसे अज्ञानी होने के कारण, हमें ज्योतिष विद्या में  अधिक विश्वास नहीं है।)

आप समझ सकते हैं कि क्यों  बहुत सारे भारतीय, विशेषकर भारतीय नारियां,  इस तारे को सुबह-सुबह देखना शुभ मानते हैं। 

बहुत हो गई भूमिका! अब आप गाने के बोल  पढ़ लीजिए:
    
गया अँधेरा हुआ उजारा, चमका चमका सुबह का तारा।
टूटे दिल का बँधा शारा, चमका चमका सुबह का तारा।
साँस खुशी की तन में आई, अरमानों ने ली अंगड़ाई।
जाग उठीं उम्मीदें सारी, जाग उठी तक़दीर हमारी।
कहीं किसी ने दूर पुकारा, चमका चमका सुबह का तारा।
मुरझायी कली क्या फिर से खिलेगी, 
खोयी हुई क्या राहत मिलेगी
कहीं ये तारा टूट न जाये, सुबह का साथी छूट न जाये।
आँखों में रह जाये नज़ारा
चमका चमका सुबह का तारा ।
गयी उदासी रौनक छायी, रोशनी अब जीवन में आयी
हँसी खुशी का छेड़ो तराना, नाच उठे मन झूमे ज़माना।
समा सुहाना प्यारा प्यारा, चमका चमका सुबह का तारा।



आओ  अब गाना  समझते हैं। ट्रेन रात से ही चलायमान है।फिल्म की हीरोइन विधवा है और हीरो उससे शादी करना चाहता है। हीरो (प्रदीप कुमार) हीरोइन (जयश्री) को  कई मुसीबतों से बचाकर घर के लिए ट्रेन पकड़ चुके हैं। सुबह-सुबह का समय है। थोड़ी ही देर में सूर्योदय होने वाला है। कैमरा आसमान की तरफ रहता है और दिखाया जाता है आसमान के हल्के क्षीण उजाले में  चमकीला शुक्र 'तारा' अर्थात सुबह का तारा। सुबह का तारा दिखाने के बाद अब कैमरा चलती ट्रेन में बैठे प्रदीप कुमार और जयश्री ( असली जीवन में वी शांताराम की दूसरी पत्नी) पर आ जाता है।

हीरो और हीरोइन ट्रेन की साइड की आमने-सामने की खिड़कियों वाली सीटों पर बैठे हैं। ट्रेन चल रही है और कैमरा  इन्हें देख रहा है। दोनों कभी सुबह के तारे को देख रहे हैं और कभी प्यार से एक दूसरे को। कोई इश्क की बड़ी-बड़ी बातें नहीं। बस खिड़की के बाहर से हाथ थामे मग्न हो कर गा रहे हैं: चमका चमका सुबह का तारा। बस यही कहना चाह रहे हैं  कि  उनकी किस्मत चमक गई जो दोनो मिल गए हैं। 

दोनों हीरो के घर पहुंचते हैं। हीरो की बेवा (विधवा) मां बहु को स्वीकार करने से मना कर देती है। उधर समाज विधवा की शादी के विचार मात्र से आतंकित है। हीरोइन  की गलती ये थी कि वो हीरो से बातें करती थी। 

समाज चुपचाप समाज की बदनामी होते कैसे देख लेता!?लिहाजा, समाज विधवा हीरोइन के घर में आग लगा देता है। हीरोइन मर जाती है और हीरो पागल हो जाता है। गाने का डर कि 'कहीं ये तारा टूट न जाये, सुबह का साथी छूट न जाये' सही  सिद्ध हो जाता है। सुबह के तारे का सतत दर्शन और महिमामंडन भी दोनों के काम न आया। 

वी शांताराम की काफी फिल्मों का अंत हीरो या हीरोइन के निधन से ही होता है। वी शांताराम ने इस फिल्म में एक शराबी की एक्टिंग भी की है। समाजिक बुराई से लड़ाई दिखाना, फिल्म में बेहतरीन नृत्य, संगीत पेश करना और शराबी की एक्टिंग भी करना बोले तो ये शांताराम का स्टाइल है बाबा! फिल्म  देखना चाहें तो यहां क्लिक करें।

वी शांताराम की अधिकतर फिल्मों में वसंत देसाई का संगीत होता है लेकिन इस फिल्म में सी रामचंद्र ने संगीत दिया है।और पार्श्व संगीत दिया है वसंत देसाई ने। दोनों ने कमाल का संगीत दिया है।

संगीत प्रेमी होने के नाते यह विश्वास से कह सकते हैं कि ये गीत बहुत सुंदर बना है। इस गाने में वी शांताराम और सी रामचंद्र की छाप जो है। रेल का संगीत बहुत कर्णप्रिय  बनाया है सी रामचंद्र ने। कई बार देखा जा सकता है ये गीत! 

ब्लैक एंड व्हाइट गाने या फिल्में क्यों देखें ये समझने के लिए इस लिंक को भी क्लिक कर सकते हैं।

संगीत की बात हो गई। लेकिन रेल की बात रह ही गई।  रेलप्रेमियों के दृष्टिकोण से देखें तो इस गाने में रेल के डिब्बे मजबूत इमारती लकड़ी के बने जरूर दिखाई पड़ते हैं। लेकिन थोड़ी सी निराशा होती है कि स्टीम इंजन, रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म और ट्रेन के लॉन्ग शॉट्स नहीं दिखाई दिए। वी शांताराम ने रेल दिखाने का ठेका तो नहीं ही लिया था! उन्होंने उम्दा फिल्म परोस दी, उनका काम पूरा हो गया।

 रेल की इस  कमी को पूरा करने के लिए थोड़ी सी अतिरिक्त जानकारी  स्टीम इंजन पर बनाई गई एक शॉर्ट फिल्म* के बारे में फुट नोट में नीचे दी गई  है।

प्रभु, हम सब के जीवन में शुक्र की महादशा बनी रहे और हमारा जीवन सफर, संगीत सफर और रेल सफर अंधेरे से उजाले की तरफ चलता रहे।🙏🙏🙏
 

पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


🚂_____🚂_____🚂____🚂____🚂_____🚂____

*पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में काफी धुंधली होती हैं। बिलकुल अंधेरे और उजाले के बीच की स्थिति में। इस बात को समझने के लिए चलते स्टीम इंजन और ट्रेन पर पहली बार  बनाई गई 49 सेकंड्स की शॉर्ट फिल्म (1895) इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

प्रसिद्ध Lumière Brothers, सिनेमा के जनक,  द्वारा बनाई गई इस फिल्म में तीक्ष्णता (Sharpness) का  अभाव जरूर है, थोड़ी सी धुंधली भी है लेकिन फिल्म बहुत ऐतिहासिक है!

रेल के स्टीम इंजन बहुत पहले ही सन 1804 से बनना शुरू हो गए थे। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में भी सन 1888 से बनने लगी थीं। सन 1895 में स्टीम इंजन के प्लेटफॉर्म पर आगमन पर ये 49 सेकंड्स की शॉर्ट फिल्म  पहली बार बनाई गई थी।

स्टीम इंजन को दक्षिण फ्रांस के  छोटे से  गांव La Ciotat (उच्चारण: ला सिओटा) के रेलवे स्टेशन पर आता दिखाया गया है। La Ciotat की आबादी सन 2021 की जनगणना के अनुसार 36987 है। सन 1895 में लगभग 12700 थी। और इस गांव का क्षेत्रफल मात्र 31.46 sq km है।

इस छोटी फिल्म के बाद कई और फिल्में भी इसी गांव में ही बनाई गईं। ये गांव Lumière Brothers और उनकी फ़िल्मों तथा Pentanque  नाम के खेल को शुरू करने के कारण विश्व प्रसिद्ध है। इस गांव को  Cradle of Cinema ( सिनेमा का पालना) भी कहा जाता है। 

जब ये फिल्म लोगों को पहली बार परदे पर दिखाई गई तो कई दर्शक डर के मारे चिल्ला पड़े! उन्हें लगा ट्रेन सीधे उन्हीं पर चढ़े जा रही है। आखिर इसके पहले उन लोगों ने कभी कोई फिल्म देखी ही नहीं थी!

हाल ही में सन 2015 में इस फिल्म को पुनर्स्थापित (Restore) करके बहुत साफ बनाया गया है। इस नए Restored  विडियो को देखने के लिए यहां क्लिक करें। इस Restored फिल्म को  देखते ही लगता है: गया अंधेरा हुआ उजाला!

ये Restored फिल्म तो सिर्फ 47 सेकंड्स की है, आप जरूर देखें!

इस साफ Restored वर्शन में आप स्टीम इंजन, पटरी, प्लेटफॉर्म और ट्रॉली  देख सकते हैं; फैशनेबल लोगो को ट्रेन से उतरते-चढ़ते देख सकते हैं। बच्चे भी दिखाई दे रहे हैं। एक सज्जन के हाथ में  एक बड़ा सा सूटकेस भी दिखाई दे रहा है। ट्रेन के आलीशान लकड़ी के चमचमाते दरवाजे  बाहर की तरफ खुल रहे हैं। ट्रेन नहीं हुई घर हो गया!

लेकिन जो बात जो सबसे ज्यादा दिलचस्प लगी वो ये कि फ्रांस के फैशनेबल आदमी-औरत हाथों  में गठरियां लेकर उतर रहे हैं या चढ़ रहे हैं! किसी के पास बड़ा या छोटा रेलवे वाला Holdall दिखाई नहीं दे रहा है। 'देहाती गठरियाँ' यूरोपियन  लोगों के हाथों में बहुत मनमोहक, बोले तो Cute लग रही हैं!

गठरी देखकर बरबस के सी डे का गाना याद आ जाता है: तेरी गठरी में लागा चोर!

Popular posts from this blog

रेल संगीत-परिचय

(1) आई बहार आज आई बहार (1941)

(3) तूफ़ान मेल, दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल।(1942)