(23) हमारे दिल के स्टेशन पे भी बाबू कभी आना।
पंकज खन्ना
9424810575
रेल संगीत पर अब तक लिखे गए लेख क्रमानुसार।
हमारे दिल के इस्टेशन पे भी बाबू कभी आना।
गाना: हमारे दिल के इस्टेशन पे। फिल्म: फिफ्टी-फिफ्टी (1950)। गायिका: इंदुरानी। गायक: शेख। गीतकार: अंजुम रहमानी। संगीतकार: के कुमार।
इस गाने के तवे या 78 RPM रिकॉर्ड्स उपलब्ध हैं जिनसे ऊपर लिखी जानकारी मिलती है। ये फिल्म फिफ्टी फिफ्टी (1950) का गाना है, ये भी मालूम पड़ता है। लेकिन सन 1950 में बनी फिल्म फिफ्टी-फिफ्टी के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। कौन हैं फिल्म के निर्माता, निर्देशक, हीरो और हीरोइन? जो मालूम है वो बस यही गाना है: हमारे दिल के इस्टेशन पे।
बाद में दो और फिफ्टी-फिफ्टी नाम से फिल्में आईं। एक सन 1956 में और दूसरी सन 1981 में। ये दोनों फिल्में और इनके गाने भी Youtube पर आसानी से उपलब्ध हैं।
इसका मतलब यही है की या तो फिफ्टी-फिफ्टी (1950) के प्रिंट्स ही उपलब्ध नहीं हैं या ये फिल्म कभी रिलीज़ ही नहीं हुई। उस जमाने में अक्सर गानों के रिकॉर्ड पहले जारी कर दिए जाते थे और पिक्चर बाद में पूर्ण की जाती थी या रिलीज़ की जाती थी। संभवतः फिफ्टी-फिफ्टी (1950) के साथ भी यही हुआ और शायद ये फिल्म कभी रिलीज़ ही नहीं हो पाई थी।
लेकिन ये गाना जरूर बना है:) हमारे दिल के इस्टेशन पे।
गाने के बोल कुछ ऐसे हैं:
हमारे दिल के इस्टेशन पे, हमारे दिल के इस्टेशन पे भी बाबू कभी आना।
छूटे जब प्यार की गाड़ी तो तुम झंडी हिला जाना।
जरा सीटी बजा जाना बाबू साहब।
हमारे दिल के इस्टेशन पे हमारे दिल के इस्टेशन पे बाई बाई साब कभी आना।
छूटे जब प्यार की गाड़ी तो तुम झंडी हिला जाना। जरा सीटी बजा जाना बाई साब!
मेरी मिस फ्रंटियर। अरे चली हो तुम कहां फर्र फर्र।
अरे न हो जाए कहीं टक्कर, के रास्ता है नहीं बेहतर।
इसी जंक्शन पर रुक जाना। जरा झंडी हिला जाना।
जरा सीटी बजा जाना बी साब।
हमारे दिल के इस्टेशन पे, हमारे दिल के इस्टेशन पे भी बाबू कभी आना।
छोटे जब प्यार के गाड़ी तुम झंडी हिला जाना।
जरा सीटी बजा जाना बाबु साब।
मोहब्बत का इंजिन है के जो बढ़ता ही जाता है।
संभाले कितना ही बाबू मगर टकरा ही जाता है।
नहीं आता है बच जाना, जरा सीटी बजा जाना।
जरा झंडी हिला जाना।जरा झंडी हिला जाना बाबु साब।
हमारे दिल के इस्टेशन पे हमारे दिल के इस्टेशन पे बाई बाई साब कभी आना।
छूटे जब प्यार की गाड़ी तो तुम झंडी हिला जाना। जरा सीटी बजा जाना बाई साब!
काफी हल्का फुल्का लेकिन प्यारा सा और दिलचस्प हास्य गीत है ये। हीरो और हीरोइन दोनों ही भर-भर के फ्लर्ट कर रहे हैं! देखने को मिलता तो मजा आ जाता!
रेलवे के शब्दों का बहुत उपयोग किया गया है, जैसे: 'दिल का इस्टेशन', 'प्यार की गाड़ी', 'झंडी हिलाना', 'सीटी बजाना', जंक्शन, 'मेरी मिस फ्रंटियर' और 'मोहब्बत का इंजन'।
इस गीत के गायक, गायिका और गीतकार बहुत कम जाने जाते हैं। और संगीतकार के कुमार का नाम तो कहीं भी पढ़ने या सुनने में नहीं आया है।
इस गाने के साथ कुछ बड़े नाम जुड़े होते तो ये गाना भी चल जाता और आज भी चल रहा होता!
इस बात की फिफ्टी -फिफ्टी संभावना है कि ये गाना गायिका इंदुरानी और गायक शेख पर ही फिल्माया गया हो! अगर फिल्माया भी गया हो तो!
इंदुरानी एक अभिनेत्री थीं। इनका असली नाम था: इशरत जहां इनामुद्दीन(1922-2012)। इनके रईस पिता 17 बग्घी/विक्टोरिया के मालिक थे। इसी कारण इशरत और उनके 6 भाई बहनों को अच्छी शिक्षा मिली। उनकी बहन सरोजिनी ( असली नाम रोशन जहां) ने भी फिल्मों में काम किया था।
इंदुरानी का प्रेम अदीब के साथ थोड़े समय के लिए प्रेम प्रसंग भी रहा। लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने कुल 21 फिल्मों में काम किया जिनमें से कुछ प्रसिद्ध फिल्में ये थीं : फिदा ए वतन (1936), प्रतिमा (1936), बुलडॉग (1937), इंसाफ (1937), जादूई कंगन (1940), हातिमताई की बेटी (1940) और ताजमहल (1941)।
इंदुरानी ने कुछ गिने-चुने गाने अनिल बिस्वास और माधोलाल मास्टर के संगीत में गाए थे। फिल्म ताजमहल (1941) में संगीतकार माधोलाल मास्टर के संगीत में इंदुरानी का गाया ये गाना जरूर सुनें: उनपे दिल हो गया कुर्बान खुदा खैर करे।
आज के गाने में इंदुरानी के साथी गायक कलाकार हैं: शेख! कुछ फिल्मों में इनका नाम मिस्टर शेख भी दिखाया गया है। (ये मिस्टर शेख और शेख मुख्तार अलग-अलग कलाकार हैं।)
तवा संगीत के लेख 'गर्भस्थ शिशु का संगीत' में शेख पर फिल्माए और शेख द्वारा ही गाए गाने 'नखरे करती डरती-डरती' का उल्लेख भी किया गया है।
शेख ने अधिकतर हास्य गीत ही गाए हैं। उनका जगमोहन के साथ गाया गाना आप यहां सुन सकते हैं: जीवन है जंजाल यारों। शेख और कॉमेडियन सुंदर ने भी फिल्म नागमणि (1957) में एक हास्य गीत गाया है: सारी दुनिया है बीमार।
आज के गीत के लगभग गुमनाम गीतकार अंजुम रहमानी ने दो गीत (संदेश मेरा पा के और पहली ही पहचान में नैना) फिल्म वीर घटोत्कच (1950) के लिए लिखे हैं। और एक गीत फिल्म पगले (1950) के लिए भी लिखा है: क्यूं शिकवा करें, क्यूं आहें भरें।
शायद गाना नहीं चला तो गीतकार का नाम नहीं चला। ये भी हो सकता है कि गीतकार का नाम नहीं था तो गाना भी नहीं चला!
अब ये संगीतकार के कुमार कौन हैं! हिंदी गानों की सभी वेब साइटों पर जाकर ढूंढने की कोशिश की लेकिन इनका कुछ अता पता ही नहीं मिल रहा है। हमें लगता है कि कहीं ये किशोर कुमार तो नहीं हैं!? सिर्फ Guess कर रहे हैं!
जब से रेल संगीत पर लिखना शुरू किया है लगता है सफर में ही हूं! हर लम्हे रेल की खिड़की से अलग ही दृश्य या नजारे या मंजर दिखाई देते हैं। पलक झपकते ही कुछ मंजर फिर दिखाई भी नहीं देते लेकिन दिल के इस्टेशन में बैठ जाते हैं। ऐसे नज़ारे अधिक देखने के लिए बार-बार रेल से गुजरना पड़ता है। और कभी-कभी रेल से उतरकर जंगल में भी जाना पड़ता है, खोजबीन करनी पड़ती है।
आज का गाना भी कुछ-कुछ ऐसा ही है । दिल के स्टेशन पर अटक गया है। मंजर तो दिखा दिया लेकिन इसकी और फिल्म की कहानी पटरी से उतरी हुई है। गाने को पटरी* पर लाना होगा। शोध जारी है!