(26) आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की।




आज का  रेल गीत है: 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की'। इस आधुनिकता और विलासिता के दौर में अक्सर ये गाना गली/मोहल्ले/स्कूल/कॉलेज/अन्य संस्थानों में सिर्फ Dry Days में ही बजा करता है।

दोस्त, Dry Days (26 जनवरी ,15 अगस्त,2अक्टूबर) की  प्रतीक्षा ना करें, आप इसे आज फिर सुन लें! सुना तो आपने पहले भी कई बार है। लेकिन रेल गीत समझ कर एक और बार देख भी लें।

गीत के बोल:

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है।
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है।
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है ।
बाट-बाट में हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है ।
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती हैं बलिदान की ।
वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

ये हैं अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे ।
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे ।
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे ।
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे ।
बोल रही है कण कण से क़ुर्बानी राजस्थान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की। 
वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

देखो मुल्क मराठों का यह यहां शिवाजी डोला था ।
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था ।
हर पर्वत पे आग जली थी हर पत्थर एक शोला था ।
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था ।
शेर शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की ।
वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

जलियाँवाला बाग ये देखो यहीं चली थी गोलियां ।
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियां ।
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियां। 
मरनेवाले बोल रहे थे इंक़लाब की बोलियां ।
यहां लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की ।
वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

ये देखो बंगाल यहां का हर चप्पा हरियाला है ।
यहां का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है ।
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है ।
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है ।
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की ।
वंदे मातरम, वंदे मातरम।


हम सभी जानते हैं कि यह एक बाल-गीत और प्रसिद्ध देशभक्ति  गीत है और यह गीत बच्चों को स्वतंत्रता का मूल्य समझाता है। लेकिन यह एक पर्यटन गीत और रेल गीत भी है! इस गीत को लिखा और गाया है कवि प्रदीप ने। संगीत दिया  है हेमंत कुमार ने। फिल्म का नाम है: जागृति (1954) जिसे डायरेक्ट किया था  सत्येन बोस ने। इस गीत का महत्व और मूल्य लगभग राष्ट्र गीत के बराबर है और इसका महत्व हमेशा बना रहे यही प्रार्थना है।

इस रेल गीत की शुरुआत बिल्कुल वैसे ही होती है जैसी किसी  अच्छे रेल गीत की होनी चाहिए। धीरे से एक स्टीम इंजिन पटरी पर  दोड़ता हुआ दिखाई देता है। और फिर ट्रेन का डिब्बा दृश्य पटल पर प्रकट होता है। बच्चों के मास्टरजी ( कलाकार : अभि भट्टाचार्य) रेल के डिब्बे में बच्चों से घिरे बैठे हैं। देश के इतिहास और भूगोल का पाठ पढ़ा रहे हैं और गा रहे हैं: 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की'। 

बच्चे ट्रेन के अंदर-बाहर देखते हुए मास्टरजी को ध्यान से सुन रहे हैं। गाना और रेल दोनों आगे बढ़ते जा रहे हैं। खिड़की के बाहर के मनमोहक दृश्य भी दिखाई पड़ रहे हैं। एक घुमावदार मोड आता है और पूरी ट्रेन दिखाई पड़ती है। फिल्मांकन  अधिक साफ  नहीं है इसलिए रेल और स्टीन इंजिन के बारे में कुछ कहना अभी तो मुश्किल है। चलते स्टीम इंजिन का साइड से Close Up भी दिखाया जाता है। लेकिन फिर भी इंजिन के विवरण दिखाई नहीं देते हैं।

पार्श्व में हेमंत कुमार का उम्दा संगीत और कवि प्रदीप के देशभक्ति से लिखे अद्भुत शब्दों का उनके द्वारा ही उत्कृष्ट गायन, गंभीरता से पर्दे पर गाते  हुए दिखते सौम्य, सुंदर लंबी ग्रीवाधारी मास्टरजी (अभी भट्टाचार्य), ट्रेन में बैठे प्यारे बच्चे और गहरा गाढ़ा धुआं उड़ाता स्टीम इंजिन! सब कुछ  बेहतरीन भर दिया है इस गाने में निर्देशक सत्येन बोस ने।



कवि प्रदीप उच्च कोटि के गीतकार तो थे ही लेकिन वो बड़ी सहजता से स्वयं के लिखे गाने गाते थे। ये गुण किसी और गीतकार में नहीं था और आज भी नहीं है। जब भी इस अनुपम गाने की चर्चा होती है तो कवि प्रदीप का नाम अपने आप मस्तिष्क में आ जाता हे। उन्होंने जिस जज्बे के साथ ये गाना लिखा है उसी जज्बे के साथ अंतर्मन से गाया भी है।


इस गाने को देखते ही बचपन की स्कूल और स्काउट ग्रुप द्वारा ले जाई गई स्टीम इंजिन वाली छोटी लाइन (Meter Gauge) की रेल यात्राएं ( इंदौर से  चित्तौड़गढ़ और इंदौर-महू से कालाकुंड आदि) याद आ जाती हैं। उस जमाने के गुरुजी उपरोक्त गीत के शिक्षक (अभी भट्टाचार्य)  के समान दिव्य, विराट और पित्रतुल्य   दिखते थे और वैसा ही भेष धारण करते थे। माफ करना, आजकल के स्कूल शिक्षक तो बारीक छोरे-छोरी लगते हैं।

आज़ादी के 7 साल बाद बच्चों को सकारात्मक दिशा देने हेतु  बनाई गई ये क्लासिक फ़िल्म जागृति दो फिल्म फेयर अवार्ड ( एक सर्वोच्च फिल्म के लिए और दूसरा सर्वोच्च सह अभिनेता के लिए) जीती थी और समाज के हर वर्गों और समीक्षकों द्वारा सराही गई थी। आज भी सराही जाती है। बेशक, सर्वकालिक महान फिल्म है।

लेकिन इस पिक्चर को एक प्रकार से सबसे बड़ा अवार्ड दिया था पाकिस्तानियों ने। उन्होंने सन 1957 में जागृति की अक्षरशः नकल करते हुए एक पिक्चर बनाई और नाम रखा: बेदारी। बेदारी का मतलब होता है जागृति, Awakening. पूरी की पूरी कहानी, शीर्षक, रेल यात्रा, सारे गाने, और संगीत चुरा लिया बड़ी बेशर्मी से। 

जागृति के प्रमुख बाल कलाकार का  फिल्मी नाम था रतन कुमार। असली नाम था सैय्यद नज़ीर अली रिज़वी। रत्न कुमार ने बूट पॉलिश और दो बीघा जमीन  जैसी फिल्मों में भी बढ़िया अभिनय किया था। जागृति फिल्म बनने के बाद इनका परिवार पाकिस्तान चला गया। फिर पाकिस्तान में बेदारी में भी नकल वाली मुख्य भूमिका रतन कुमार ने ही निभाई!

यही बातें जागृति की महानता को रेखांकित करती हैं। दुश्मन देश संगीत, साहित्य, फिल्म और सभ्यता की चोरी पर उतर गया! फिल्म जागृति को इससे बड़ा अवार्ड और क्या मिल सकता था?

इन्हें स्वयं के देश की जनता को दिखाने लिए देशभक्ति के गाने और फिल्म भी हमसे चुराने पड़े! ये सिर्फ परमाणु तकनीक ही नहीं चुराते हैं। पाकिस्तान के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि  उनके 'राष्ट्रपिता' जिन्ना की स्तुति के लिए भारत के राष्ट्रपिता गांधीजी पर विशेष रूप से बनाए गए गीत (साबरमती के संत... ) की धुन को ही चुनना पड़े!?


उदाहरण के लिए दो असली और नकली गाने  नीचे लिखे हैं:



पहले नकली गाने में दिखाई गई  पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (बांगला देश) की रेलगाड़ियां कभी अविभाजित भारत का ही हिस्सा थीं।  अविभाजित भारत की 40% रेलवे पाकिस्तान (पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान  मिलाकर) के हिस्से में गई थीं। अब ये रेलगाड़ियां, जो अविभाजित भारत की धरोहर हैं,  हम सिर्फ YouTube पर ही साक्षी भाव से  निहार और सराह सकते हैं। 

दोनों नकली गानों को अवश्य देखें और समझें। आपको इन गानों को देखकर पाकिस्तानियों पर हंसी  आएगी, तरस आएगा और भारत की विरासत और संगीत पर गर्व भी होगा। 

सच में ये गाना ही है झांकी हिंदुस्तान की!
 


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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