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(22) धक धक करती चली जीवन की रेल रे!



ये गीत (धक धक करती चली जीवन की रेल रे!)  पिछले रेलगीतों से थोड़ा अलग है। फिल्म दिलरुबा (1950) से है। फिल्म के शुरू में हीरोइन रेहाना का नाम सबसे पहले लिखा हुआ दिखाई देता है और फिर नाम आता है फिल्म के हीरो देवानंद का। उस दौर में फिल्म अभिनेत्री का नाम हीरो से पहले लिखा जाना  रेहाना का जलवा दर्शाता है।


इस गाने में भी धक-धक करते भाप के इंजिन की,  सीटी की मधुर ध्वनि  के साथ, ग्रैंड एंट्री  होती है। रेल के डब्बों का भी लॉन्ग शॉट दिखाया जाता है। और फिर रेल के डिब्बे के अंदर का गीत। गीत के बीच में ट्रेन के बाहर के सुन्दर शॉट भी दिखाए जाते हैं। एक पुल के ऊपर से गुजरती हुई रेल सुंदर दिखाई देती है। आप  स्वयं देख ही लेंगे।

इस गीत में एक ड्रामा कंपनी रेल में सफर कर रही है। बॉम्बे से किसी  'संतोष नगर' की तरफ। कंपनी के कलाकार ट्रेन में नृत्य और गीत की रिहर्सल शुरू कर देते हैं।  गाने में सबसे पहले  रेहाना के पैर  सरिया विहीन खुली खिड़की  (Barless Window) के ऊपर नृत्य की मुद्रा में लहराते हुए दिखाए जाते हैं। और फिर हाथों की नृत्य की मुद्रा  दिखाने के बाद गजरा लगाए नृत्यांगना रेहाना पर्दे पर प्रकट होती हैं।
 




जरा रुकिए! पहले डब्बे पर नजर मार लेते हैं, फिर गाने की बात कर लेंगे! तबलची, सारंगिया और  सूट-बूट-टाई धारी सिगरेट सुलगाए  कंपनी का मैनेजर अलग-अलग बर्थ पर पसरे बैठे हैं। और उनके बीच में  रेहाना दिलकश अदा में नाच-गाना कर रही हैं। बोगी की ऊपर की बर्थ पर होल्डॉल तो नहीं पर गठरियाँ जरूर दिखाई पड़ रही हैं। मतलब ड्रामा कंपनी अमीर तो नहीं ही थी! भले ही  कंपनी का मैनेजर सेठ के लिबास में हो! 

पिक्चर में सस्पेंस है। नहीं बताएंगे स्टोरी!  देखना है तो यहां उंगली करें! हमें छोड़ दें भिया, बच्चे हैं आपके!!

रेहाना ने इस गाने में जो हौले-हौले  गर्दन, कमर और आंखें मटकाई हैं वो दाद के काबिल है। सोचिए जरा, इस फिल्म के हीरो देवानंद हैं! और उन्हें इस रेल गीत में 1 mm फुटेज खाने का मौका भी नहीं मिला! अफसोस है, लेकिन क्या करें!? शायद सीनियरिटी तब भी बोलती थी! 

(लगे हाथ  इसी पिक्चर का एक गाना  जो देवानंद और रेहाना पर फिल्माया गया था और जिसे गया था गीता दत्त और जी एम दुर्रानी ने उसका लिंक भी लगा देते हैं: हमने खाई है मोहब्बत में जवानी की कसम। इस पिक्चर  और अन्य कई फिल्मों में गीता दत्त ने ज्ञान दत्त के संगीत निर्देशन में बहुत मधुर गाने गए हैं। लोगों को गलतफहमी है कि गीता दत्त ने सिर्फ गुरुदत्त के साथ ही अच्छे गाने गए हैं। ज्ञानदत्त और गीता दत्त का कॉम्बिनेशन भी कमाल का था।)

फिल्म के क्रेडिट में चार गीतकारों के नाम लिखे गए हैं। ये गीत किसने लिखा था, नहीं मालूम।  पर अच्छा ही लिखा गया है। साधारण शब्दों में लेकिन बेहद खूबसूरत दार्शनिक अंदाज़ में। 

गाने  के बोल पढ़ लेते हैं:

धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे।धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। मोहब्बत का नाम है, दिलों का मेल रे। मोहब्बत का नाम है, दिलों का मेल रे। धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। जब तक है जीना, जी लो हिल मिल के। जी लो हिल मिल के।सब हैं मुसाफिर एक ही मंजिल के। सब हैं मुसाफिर एक ही मंजिल के। जीने का नाम है दिलों का मेल रे।  जीने का नाम है दिलों का मेल रे। धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली।जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। 

सेठ के लिबास में, साथ-साथ चोर चला। साथ-साथ चोर चला।सेठ के लिबास में, साथ-साथ चोर चला। साथ-साथ चोर चला।भला लगे भला लगे। भला लगे तुझे बुरा। बुरा लगे तुझे भला।सेठ के लिबास में, साथ-साथ चोर चला। साथ-साथ चोर चला।भला लगे भला लगे। भला लगे तुझे बुरा। बुरा लगे तुझे भला।

नजरों का खेल रे। भले बुरे दोनों हैं। नजरों का खेल रे।        धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। सुख दुख। सुख दुख। सुख दुख। सुख दुख। सुख दुख। सुख आए दुख आए। सुख आए दुख आए।

टेशन के बाद देखो टेशन चला जाए। टेशन के बाद देखो टेशन चला जाए। सुख आए दुख आए। सुख आए दुख आए। टेशन के बाद देखो टेशन चला जाए। टेशन के बाद देखो टेशन चला जाए। सुख दुख दोनों हैं किस्मत का खेल रे। सुख दुख दोनों हैं किस्मत का खेल रे। धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे। धक धक करती चली,  हम सब से कहती चली। जीवन की रेल रे, जीवन की रेल रे।

और इस बेहतरीन गीत को गाया  है गीता दत्त ने। बड़ा आश्चर्य होता है कि  गीता दत्त का ये उम्दा गीत उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना होना चाहिए। हमारा बस चले तो ये गाना अन्य कई अच्छे  रेल गीतों के साथ  हर रेलगाड़ी में बजवाना अनिवार्य कर दें:)



इस गाने को यदि आप श्वेत श्याम कलर में देखना चाहते हैं तो इधर क्लिक करें: धक धक करती चली जीवन की रेल रे 

इस गाने में  कुछ साल पहले रंग भी भर दिया गया है। रंगीन गाना सुनने के लिए यहां क्लिक करें:  धक धक करती चली जीवन की रेल रे। कलर में! 

इस गाने के संगीतकार हैं ज्ञानदत्त। ज्ञानदत्त ने 1935 से  1955 के बीच में कई हिट फिल्मों में म्यूजिक दिया था। उनकी धुन में के एल सहगल ने बहुत सारे सुपर हिट गाने गाए। जैसे उदाहरण के तौर पर: नैन हीन को राह  दिखा प्रभु। यही गीत लता के स्वर में भी सुन सकते हैं। प्रभु, राह तो हम सब को भी दिखा, अंतर्मन से अंधे होते जा रहे हैं।

ज्ञान दत्त स्वयं भी एक उत्कृष्ट गायक  थे। उनकी आवाज थोड़ी थोड़ी कुमार सचिन देव बर्मन की याद दिलाती है। उनका गाया ये गीत भी चला था किसी जमाने में : याद तेरी आई है। 

सच में याद  पुरानी रेल की आई है, पुराने संगीत की आई  है और  याद तेरी भी आई है! 



पंकज खन्ना
9424810575


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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

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Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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