(32) ओ मन रे ना गम करिए।

  

पंकज खन्ना 



                   ओ मन रे ना गम करिए।


गाना:  ओ मन रे ना गम करिए  फिल्म: नौकरी (1954)हीरो: किशोर कुमार। हीरोइन: शीला रमानी। गायिका: लता मंगेशकर। गीतकार: शैलेंद्र। संगीतकार:  सलिल चौधरी।निर्माता और  निर्देशक : बिमल रॉय। (गाना किशोर कुमार और शीला रमानी पर फिल्माया गया है।)


                 (किशोर कुमार और शीला रमानी।)

ये है गाने की कहानी: किशोर कुमार नौकरी m। आे  
        Nnnk nnjn। mmo।     तलाश में अपने गांव से  कलकत्ता पहुंचे थे। बात कुछ जमी नहीं। अब ट्रेन में बैठकर बंबई जा रहे हैं। नौकरी तो मिल गई है लेकिन Appointment Letter खो गया है। इसलिए उदास होकर ऊपर की बर्थ पर कुछ सोचते हुए  होल्डाल रूपी गठरी पर आधे बैठे और आधे लेटे हैं।*

उनकी प्रेमिका शीला रमानी घर से उनको याद करते हुए ये उदास लेकिन प्रेरणात्मक बिदाई गीत गा रही हैं।  J nnnn nn bk    n । Oi  njnnj मनी  mk। ikn n ओजियन।  U n nji।  N n m I।    N mnmm mnmn m     n n ।mn के  फिल्मांकन में विमल रॉय की छाप साफ-साफ दिखाई दे रही है। इसी फिल्म के बाद किशोर कुमार को एक अभिनेता के रूप में पहचान मिली।


                      बिमल रॉय  (1909-1966)

अब शैलेंद्र के लिखे गीत के शब्दों को भी पढ़ लेते   ni   mni mi। Mmn nn k  in mnn nnn। ।

ओ मन रे ना गम करिए,आंसू बनेंगे सितारे दिल के सहारे । ओ मन रे ना गम करिए,आंसू बनेंगे सितारे दिल के सहारे । जुदाई में दिल के सहारे ,ओ मन रे ना गम करिए । आंसू बनेंगे सितारे जुदाई में दिल के सहारे ।

बिछड़के भी हमसे जहां भी रहे वो रहेंगे हमारे। ओ मन रे ना गम करिए आंसू बनेंगे सितारे, जुदाई में दिल के  सहारे।

जिधर से वो जाए आकाश पैरों में कलियां बिछा दे। जहां रात हो कोई चुपके से राहों पे दीपक जलाn kh।m। O jnknmj। Nn।  Nn nnnj।  दे। जो राह भूलें तो मंजिल उनको पुकारे। M।  K।  Mm ।n।    M।  

N   गहरा है अँधेरा तो जगमग सुनेहला सवेरा भी होगा। बहकते चमन में महकती बहारो का सवेरा भी होगा।

गहरा है अँधेरा तो जगमग सुनेहला सवेरा भी होगा। बहकते चमन में महकती बहारों का सवेरा भी होगा।

 जो लौटी है साँसें तो लौटेंगे दिन भी हमारे। जो लौ     ।           T g c टी  

L ।   Nmn nn m    n n n।    न  जाने l  n।    N। N nnN।    N     n    in। ।m।      Nn       n n। Nn n n n।  mn।      N            n।     M ।k।         ।।  ।।   । ।  ।n ।   M         n  bn n।  H n  n n।  N

टी हैं साँसे तो  लौटेंगे दिन भी हमारे।

ओ मन रे ना गम करिए,आंसू बनेंगे सितारे दिल के सहारे ।


अधिकतर रेलगीत आपको मौज मस्ती के ही मिलेंगे। लेकिन ये गीत उदासी, बिदाई दर्शाने  के साथ-साथ  आशा की किरण भी दिखाता है। बहुत सुंदर साहित्यिक गाना लिखा है शैलेंद्र ने।

.                         शैलेंद्र (1923-19666) 

 जरा फिर से ये अंतरा पढ़िए: जिधर से वो  जाएं, आकाश पैरों में कलियां बिछा दे। जहां रात हो, कोई चुपके से राहों पे दीपक जला दे। जो राह भूलें तो मंजिल उनको पुकारे।

और अंतिम लाइनों पर भी गौर करें: गहरा है अँधेरा तो जगमग सुनेहला सवेरा भी होगा। बहकते चमन में महकती बहारों का सवेरा भी होगा। जो लौटी हैं साँसे तो लौटेंगे दिन भी हमारे। ओ मन रे ना गम करिए,आंसू बनेंगे सितारे दिल के सहारे।

अब ऐसे साहित्यिक गीत को बढ़ी सुंदरता से सलिल चौधरी ने संगीत से संवार दिया है।  

.                     सलिल चौधरी (1925-1995 ) 

लता मंगेशकर से ज्यादा अच्छा कौन गा सकता है इस गीत को? इतने अच्छे गाने को भी वो प्रतिसाद नहीं मिला जिसका वो हकदार था! कारण वही:  उस्तादों के लिखे, संगीतबद्ध किए और मधुरता से गाए गए नौकरी फिल्म के ये बाकी और बेहतरीन गाने: 

छोटा सा घर होगा ( किशोर कुमार और उषा मंगेशकर)

छोटा सा घर होगा (Sad Version हेमंत कुमार, वीडियो) 

छोटा सा घर होगा (Sad Version हेमंत कुमार, ऑडियो) 

एक छोटी सी नौकरी का तलबग़ार हूँ ( किशोर कुमार और शंकर दासगुप्ता)

झूमे रे कली भँवरा उलझ गया कांटों में। (गीता दत्त) 

अर्ज़ी हमारी ये मर्ज़ी हमारी ( किशोर कुमार)

फिल्म में सिर्फ पांच गाने हैं लेकिन सभी उच्च कोटी के गीत हैं। किशोर का गाया छोटा सा घर होगा  तो आज भी सुपर हिट है।नौकरी के कुछ गानों में उदासी है तो कुछ में मस्ती और भविष्य के सपने भी हैं। फिल्म तो क्लासिक है ही। अगर आप विमल रॉय के फैन हैं तो पहले ही इस फिल्म को देख चुके होंगे।

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*इस गाने में किशोर कुमार को इस तरह अपर बर्थ पर खयालों में गुम देखकर हमें भी HPCL की नौकरी के लिए सन 1984 में रतलाम से बंबई तक फ्रंटियर मेल से एक पुराने होल्डाल और एक काफी पुरानी अटैची के साथ की गई यात्रा याद आती है। 

इंदौर से रतलाम तक की यात्रा तो नौकरी मिलने की खुशी में आसानी से कट गई। फ्रंटियर  मेल में बैठ कर बंबई जाने का उत्साह भी था। लेकिन अपर बर्थ पर लेटते ही घर की याद आने लगी! पहली बार इंदौर छोड़कर और कहीं बसने जा रहे थे! उदासी के साथ-साथ नई जगह  पर बसने  का अजीब सा डर भी था। लेकिन अब उस यात्रा को याद करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। तब नहीं पता था कि चालीस साल बाद रेल संगीत, होल्डाल और गठरी पर कुछ लिखा जाएगा। वरना वो Holdall और उस यात्रा का टिकट आज भी हमारे पास होता!

अब कोई दुख या उदासी नहीं! गठरी/होल्डॉल तो हमें इन रेलगीतों में दिखते ही रहते हैं और रेल-संगीत चेहरे पर मुस्कराहट लाता रहता है :)


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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