(34) जीवन की गाड़ी चलती है (1955) दो दूल्हे।



                       जीवन की गाड़ी चलती है।






गाना: जीवन की गाड़ी चलती है (1955) फिल्म:  दो दूल्हे (1955)। गायक: तलत मेहमूद। गायिका: लता मंगेशकर।गीतकार : पंडित इंद्र। संगीतकार: बी एस कल्ला। हीरो: सज्जन। हीरोइन: श्यामा (खुर्शीद अख्तर)। निर्माता: जेमिनी पिक्चर्स। (ये गीत सज्जन, श्यामा और दो अनजान कलाकारों पर फिल्माया गया है।)


                   जीवन की गाड़ी चलती है।


गाने की कहानी: सौतेली मां से त्रस्त व विषम परिस्थितियों की  मारी हीरोइन (श्यामा) और गलतफहमी के शिकार हीरो (सज्जन) एक ही ट्रेन के दो अलग-अलग कंपार्टमेंट में उदास बैठे हैं। और एक दूसरे को दिल से याद कर रहे हैं। कहानी फिल्मी है, इतने पास हो कर भी मिल नहीं पा रहे हैं।

ट्रेन में  भिखारी और एक भिखारिन भी हैं। हिंदी फिल्मों में किसी रेल में पहली बार भिखारी इसी गीत में दिखाए गए हैं। भिखारी तलत महमूद की आवाज़ में और दूसरी भिखारिन लता मंगेशकर की आवाज़ में जैसे सज्जन और श्यामा की व्यथा गा कर सुना रहे हैं:

जीवन की गाड़ी चलती है। जीवन की गाड़ी चलती है।
कुछ रूकती फिर चलती जीवन की गाड़ी चलती गाड़ी चलती।
ऊंची नीची राहों पे यूं नदिया चली मचलती।
गाड़ी चलती जीवन की ई गाड़ी चलती।

कोई सुखी है, कोई दुखी है, कोई गाता कोई रोता।
कोई गाता कोई रोता।

कमर झुकाए खडा है कोई पांव पसारे सोता।
पांव पसारे सोता।

कभी सवेरा होता सुख का, कभी सवेरा होता सुख का।
दुःख की संध्या ढलती।

आंसू और गीतों की दुनिया रहती सदा बदलती।
आंसू और गीतों की दुनिया रहती सदा बदलती।

गाड़ी चलती जीवन की ई गाड़ी चलती।

जीवन की गाड़ी चलती है कुछ रूकती फिर चलती।
जीवन की गाड़ी चलती गाड़ी चलती।
जीवन की गाड़ी चलती गाड़ी चलती।

ये  एक उदासी भरा दार्शनिक रेलगीत है जिसमें जीवन के संघर्ष की कहानी है। पंडित इंद्र ने शुद्ध हिंदी में सार्थक गीत रचा है। गाने में कहीं आशा की किरण भी दिखाई देती है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा: कभी सवेरा होता सुख का, 
दुःख की संध्या ढलती।

तलत मेहमूद और लता मंगेशकर दोनों ने ही गाने को बहुत अच्छा गाया है। इनकी तो पूरी दुनिया दीवानी है और इनके बारे में तो आगे भी बहुत कुछ लिखा जाना है। आज बात कर लेते हैं आज के गाने के कुछ अपरिचित लेकिन गुणी संगीतकार बी एस कल्ला की। सबसे पहले आप इसी फिल्म दो दूल्हे के गाने सुनकर अंदाजा लगा सकते हैं कि इनका संगीत कितना मीठा और कर्णप्रिय हैं:

मेरा दुल्हा शहर से आया रे। सरला देवी, गीता दत्त और रफी।
चंदा चमकती रात। लता मंगेशकर।
मैं भी जवान हूं। गीता दत्त, रफी।

इस फिल्म के अलावा बी एस कल्ला ने इन फिल्मों में संगीत दिया है: बहुत दिन हुए (1954), निशान (1949), संसार (1951), रंगीला राजस्थान (1949), कृष्ण कन्हैया(1952)।

बी एस कल्ला के संगीत की गहराई समझने के लिए ये दो गीत आप सुन सकते हैं: 

(1) अम्मा अम्मा तू कहां गई अम्मा। बहुत दिन हुए (1954) लता। पीड़ित बच्ची मां को याद करती हुई गा रही है।
(2) प्यारा हमारा मुन्ना:  फिल्म: संसार (1951)( ये एक लोरी है जिसे पुष्पावली, अभिनेत्री रेखा की मां, लता मंगेशकर की आवाज़ में गा रही हैं।)। बहुत आश्चर्य होता है की ऐसी लोरियाँ भी भुला दी गईं!

और रेल के संगीत में लोरी क्यों नहीं बनाई जा सकती हैं!? हिंदी फिल्मों में सौ से अधिक लोरियां बनाई  गई हैं। पर शायद  किसी ने स्टीम इंजन की धुन पर कभी लोरी बनाने की कोशिश नहीं की। जबकि ये सत्य है की बच्चे तो क्या बड़े-बूढ़े भी ट्रेन की संगीतमय धुन में आराम से सोते आए हैं!

हमारे लिए तो बचपन से  रेल की धुन लोरी के समान है! आज का गाना एक बार और सुनते हैं और सो जाते हैं:

जीवन की गाड़ी चलती है...
ऊंची नीची राहों पे यूं नदिया चली मचलती...
कोई गाता कोई रोता...
कमर झुकाए खडा है कोई पांव पसारे सोता...


आज का काम हो गया। रेल तो चलती रहेगी अपन अब पांव पसारे सोता!



पंकज खन्ना
9424810575

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हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

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Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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