(35) आया आया बंबई वाला (1955) फरार।
पंकज खन्ना
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ये संभवतः पहली बार किसी रेलवे के हॉकर (फेरीवाले) पर फिल्माया गया गाना है। फेरीवाले के रोल को निभाया है मेहमूद ने। और ये मजे का गीत गाया है स्वयं संगीतकार अनिल बिस्वास ने। मेहमूद किसी भी रेलवे के फेरीवाले के समान रेल के डिब्बे में कंघी, कैंची, चाकू, कुंजी, ताला आदि बेच रहे हैं। और ये बात भी दिलचस्प है कि वो ट्रेन में मेंहदी भी बेच रहे हैं!
गाने की शुरुआत बिलकुल 'रैप' के अंदाज में होती है। अशोक कुमार के सन 1968 के 'रेलगाड़ी' वाले 'रैप' से भी 13 साल पहले का रैप नुमा गीत है। हम पहले भी अन्य लेखों में चर्चा कर चुके हैं कि चालीस-पचास के दशकों में ही आइटम सोंग्स, फ्लैश मॉब और 'रैप' हिंदी फिल्मी गानों में आ चुके थे।
ये एक मजाकिया, हास्य रेल गीत है। मेहमूद चलती ट्रेन में मसखरी करते हुए सामान बेच रहे हैं। एक सीन में तो वो एक गंजे यात्री के सर पर हाथ फेरते हुए भी दिखाई दिए हैं।
(आज सोशल मीडिया के ज़माने में कोई ऐसी हरकत फिल्म में भी करेगा तो हम इसे हमारे गंजे समाज पर हमला मानेंगे, धरने पर बैठ कर कजरी गाएंगे और डीएम, सीएम, पीएम से इस्तीफा भी मांगेंगे!)
गाने में देवानंद और शायद पूनम की झलक भी दिखाई देती है। देवानंद लुके-छुपे सूम में बैठे हुए दिखाई देते हैं। वो फरार हैं!
इस गाने में ऑडियो का थोड़ा लोचा है, कुछ शब्द इधर-उधर हो सकते हैं। थोड़ा गड़बड़झाला है। गाने वाले का नाम भी गड़बड़झाला है! सत्तर सालों से गाने का साउंड रिकॉर्डिस्ट भी फरार है!
अगर थोड़ा ऑडियो खराब भी है तो एडजस्ट कर लो भिया। ये भी तो देखो गा कौन रहा है! अनिल बिस्वास की आवाज़ में गाना सुनने को मिल रहा है, ये भी खुशकिस्मती है। तीन-चार पीढ़ी के संगीत प्रेमी लोग, टेक्नोलॉजी के अभाव में, ऐसे गीत सुने या देखे बिना रुखसत हो गए।
तीन मिनट के गाने के लिए दस मिनट की कहानी लिखो। क्या मतलब है!?आप तो सीधे गाना सुन लीजिए! और पढ़ भी लीजिए।
हक्का बक्का ओ तीन तलक्का
आरे या पारे सा, ऊंचा नीचा, दाँया बाँया, पूरब पश्चिम, उत्तर दक्षिण, लंका बर्मा चीन, एक दो तीन।
आया आया ओ बंबईवाला मेरा नाम है गड़बड़झाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला, सस्ता सस्ता माल निकाला।
निकला सेठों का दीवाला।
आया आया रे आया आया ओ बंबईवाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला,मेरा नाम है गड़बड़झाला।
आया आया।
बंबई का माल, जो ना करे इस्तेमाल, बिगड़ जाये उसका भाल।पछताएगा अगले साल गर ढूंढो मद्रास से बंगाल।
फिर भी ना पाओगे ऐसा माल, शहरों-शहरों धूल उड़ाओ। फिर भी ऐसा माल ना पावो। अरे फिर भी ऐसा माल ना पावो।
अरे पैसा फेंको लेते जाओ कैंची ,चाकू ,कुंजी, ताला।
आया आया रे आया आया ओ बंबईवाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला,मेरा नाम है गड़बड़झाला।
आया आया।
ये मेरा कंघा , ये मेरा कंघा, जिसका सर हो नंगा। दम भर में कर दे चंगा। फिर कभी ना दिखे बेढंगा, लफंगा या भिखमंगा।
कहत कबीर सुनो भई साधो जब सर हो चंगा तो कठौती में गंगा।
मेरा कंघा जो ले जाये गंजे सर में बाल उगाये काले-काले। गंजे सर में बाल उगाये, अरे अपनी खोई दौलत पाये। सर का रंग हो काला काला।
आया आया रे आया आया ओ बंबईवाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला,मेरा नाम है गड़बड़झाला।
आया आया।
मेहंदी लगा लो मेहंदी, मेहंदी लगा लो मेहंदी। गर हो हिंदुस्तानी बन जाओगे आप सिंधी। माशूक़ हाथों में लगाए और आशिक दाढ़ी में। और दोनों फिर सैर करें मोटर गाड़ी में। ये मिलती है मेरे पास या मिलती है झाड़ी में। मेहंदी इसका नाम हिन्दी उर्दू और मारवाड़ी में।
मेहंदी ले लो फ़रीदाबादी, रंग लो दाढ़ी, कर लो शादी। ओ बढ़े मियां रंग लो दाढ़ी कर लो शादी। अरे घर की बढ़ा लो तुम आबादी। बीवी बच्चे साली साला।
आया आया रे आया आया ओ बंबईवाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला,मेरा नाम है गड़बड़झाला।
आया आया।
आया आया रे आया आया ओ बंबईवाला।
मेरा नाम है गड़बड़झाला,मेरा नाम है गड़बड़झाला।
आया आया।
सरदार जाफरी का लिखा ये गीत सच में बहुत मनोरंजक है। हमारे जैसे नंगे सिर वालों के लिए उनके शब्द बहुत उत्साहवर्धक हैं: ये मेरा कंघा , ये मेरा कंघा, जिसका सर हो नंगा। दम भर में कर दे चंगा। फिर कभी ना दिखे बेढंगा, लफंगा या भिखमंगा।
कहां मिलेगा भई ऐसा जादुई कंघा!?
आज के गाने के अलावा फरार के अन्य गाने भी सुनने लायक हैं। ये सभी गाने गीता दत्त के गाए हुए हैं।
हर एक नज़र इधर उधर है बेकरार। तेरे लिए ।
फरार (1955) देव आनंद की एक कम प्रसिद्ध फिल्म है। इसमें उन्होंने देशभक्त क्रांतिकारी का रोल निभाया है। शायद जनता को पसंद नही आया। फिल्म में गीता बाली और देव आनंद के बीच की केमिस्ट्री बहुत अच्छी है। गाने बहुत कर्णप्रिय हैं। और अनिल बिस्वास का गाया रेलगीत तो लाजवाब है ही।
( दस साल बाद आई बलराज साहनी/अनिल चटर्जी/शबनम/हेलन वाली फरार (1965) एक अलग फिल्म थी। उसके गाने भी बहुत बढ़िया थे।)
फिल्म संगीत के पितामह अनिल बिस्वास के संगीत को सभी सराहते हैं। सभी संगीतकार उन्हें गुरु या उस्ताद मानते थे। इस वीडियो में नौशाद और पी नैय्यर ने भी यही बात कही है।
अनिल बिस्वास एक बेहतरीन गायक भी थे और उनके गाए कुछ गाने बहुत प्रसिद्ध हुए और आज भी याद किए जाते हैं। उदाहरण के लिए कुछ गाने सुन के देखें और सराहें:
साक़ी हो, सहन ए बाग हो। (पिया की जोगन) (1936) गायक: अनिल विश्वास, सरदार अख्तर, गीत - मुंशी जहीरुद्दीन
तू देख जरा दिल का दर्पण। एक ही रास्ता (1939)
मुझे मिल जाएगी उनकी डगरिया। एक ही रास्ता (1939)। अनिल बिस्वास और वहीदन बाई।
भाई हम परदेसी लोग हमें कौन जाने (एक ही रास्ता) (1939)
काहे करता देर बराती। औरत( 1940)
किए जा सबका भला। बहन(1941)
हाय दिल हाय दिल। विजय(1942)। अनिल बिस्वास, अमर।
अरे न जाने क्या समझें ये मूंछों वाले । दोराहा (1952) (शंकर दास गुप्ता, शमशाद बेगम, मीना कपूर, अनिल विश्वास)
मेहमूद/अनिल बिस्वास के आज के अनोखे हॉकर वाले रेलगीत को याद करते हुए अब कुछ रेलवे हॉकर्स के बारे में भी बात कर सकते हैं। कलकत्ता के अभिज्ञान सरकार ने रेलवे हॉकर्स के जीवन पर सन 2017 में बंगाली में एक फिल्म बनाई है जिसके अंग्रेजी में Subtitle दिए गए हैं। तीन साल की अवधि में शूट की गई यह फिल्म भारत के दक्षिण बंगाल की ट्रेनों के फेरीवालों के जीवन के बारे में हैं। फिल्म चार किरदारों के इर्द-गिर्द बुनी गई है। इन चार फेरीवालों के जीवन के ज़रिए फिल्म निर्माता ने आज के बदलते समय में आजीविका के सवाल को अच्छे से पेश किया है।
आप इस फिल्म का ट्रेलर यहां देख सकते हैं: The Running Hawkers. और अगर आप पूरी फिल्म देखना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें: The Running Hawkers (Bengali Movie with English Subtitles.)
पिछले कई सालों से अवधेश दूबे (रेल हॉकर) के कुछ शॉर्ट वीडियो बहुत वायरल हुए हैं। ये अपनी कॉमेडी के चक्कर में एक बार गिरफ्तार भी हो चुके हैं। एक वीडियो का लिंक यहां भी लगा दिया है: प्रसिद्ध रेलवे हॉकर अवधेश दूबे। देखें और मजे लें!