(36) बस्ती बस्ती पर्वत पर्वत गाता जाए बंजारा (1955)


           बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा।

गाना: बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा । फिल्म: रेलवे प्लैटफॉर्म।  गायक: मोहम्मद रफी और मनमोहन कृष्ण।गीतकार: साहिर लुधियानवी। संगीतकार: मदन मोहन।


आज का  गीत एक रेल गीत, शीर्षक गीत, दार्शनिक गीत और प्रेरणात्मक गीत है। Four in One: Title Song,Train Song, Philosophical Song and Inspirational Song.



तो पेश है साहिर का गीत साहित्य और गीत दर्शन:

(फिल्म का टाइटल सॉन्ग मोहम्मद रफी की आवाज़ में।)

बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा
लेके दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

पल दो पल का साथ हमारा पल दो पल की यारी
आज नहीं तो कल करनी है  चलने की तैयारी -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

क़दम-क़दम पर होनी बैठी अपना जाल बिछाए
इस जीवन की राह में जाने कौन कहाँ रह जाए  -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

धन-दौलत के पीछे क्यों है ये दुनिया दीवानी
यहाँ की दौलत यहाँ रहेगी साथ नहीं ये जानी  -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

सोने-चाँदी में तुलता हो जहाँ दिलों का प्यार
आँसू भी बेकार वहाँ पर आहें भी बेकार  -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

दुनिया के बाज़ार में आख़िर चाहत भी व्यापार बनी
तेरे दिल से उनके दिल तक चाँदी की दीवार बनी  -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...

हम जैसों के भाग में लिखा चाहत का वरदान नहीं
जिसने हमको जनम दिया वो पत्थर है भगवान नहीं -2
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ...
  
(मनमोहन कृष्ण द्वारा गाया गया हिस्सा ।)

मूरख  हैं जो धन दौलत की
चिंता करते रहते हैं।
दो  दिल मिल जाए जिस घर में
स्वर्ग उसी को कहते हैं।
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा
लेके दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ..

फिल्म की  शुरूआत में  कलाकारों के नाम, ट्रेन का वीडियो और मोहम्मद रफी का गाना साथ-साथ चलता है। ट्रेन के बाहर के दृश्य बड़े मनोहारी हैं: स्टीम इंजन, पुराने डिब्बे, नदी, पहाड़, जंगल, न खत्म होने वाली पटरियां और वो जादू भरी छुक-छुक, छक-छक।

कलाकारों के नाम आने के बाद फिर थर्ड क्लास के डिब्बे का दृश्य सामने आता है। डिब्बा यात्रियों से खचाखच भरा हुआ है। डिब्बे  में सुनील दत्त, उनकी बहन और माता जी भी  बैठे हुए हैं। 

पीछे की सीट में मनमोहन कृष्ण, जिनके फिल्म में हाथ नहीं हैं, शोले के ठाकुर साहब के समान शॉल ओढ़े बैठे हैं। ठाकुर साहब की शोले बनने के 20साल पहले। मोहम्मद रफी उनके लिए गा रहे हैं। मनमोहन कृष्ण फिल्म में सुनील दत्त के मित्र, दार्शनिक और गाइड हैं । अंत में मनमोहन कृष्ण खुद अपने स्वर में भी इसी गाने को गाते हैं।

सिर्फ मोहम्मद रफी का वर्शन सुनने के लिए यहां क्लिक करें।
सिर्फ मनमोहन कृष्ण का वर्शन सुनने के लिए यहां क्लिक करें।
वैसे पूर्ण गाना  ही सुनना बेहतर होगा।

गाना तो आपने पढ़ ही लिया है और सुन भी लिया है। गाने का लुब्ब-ए-लुबाब यही है: मूरख हैं जो धन दौलत की चिंता करते रहते हैं। दो दिल मिल जाए जिस घर में स्वर्ग उसी को कहते हैं।

गायक हैं मोहम्मद रफी। लिखा है साहिर लुधियानवी ने और संगीतकार हैं मदन मोहन। इन  तीन अद्भुत कलाकारों  और फिल्म के अन्य  सभी कलाकारों की टीम के प्रयासों से मिलकर बना है ये शानदार गीत। सुझाव है कि इस फिल्म को जरूर  देखें, क्योंकि कहानी अच्छी है और हम सुनाने वाले नहीं हैं! ये रहा लिंक

गाना समाप्त होने के बाद एक रोचक दृश्य है जिसमें सुनील दत्त की माता और धोबी निहालचंद ने जीवन का एक बहुत अच्छा उपदेश दिया है। ये सुनील दत्त की पहली फिल्म का पहला सीन था।

इस दृश्य के बाद ट्रेन  एक अंधेर नगरी नाम की रियासत के अंतिम छोर पर स्थित छोटे से रेलवे स्टेशन पर रोक दी जाती है क्योंकि आगे फ्लैश फ्लड के कारण पटरियां पानी में डूब चुकी थीं। अब इस ट्रेन को अगले 24 घंटों तक यहीं खड़े रहना है। इस रेलवे स्टेशन पर कुछ भी उपलब्ध नहीं है। पानी भी नहीं। बस एक ढाबा नुमा दुकान कुछ  दूरी पर है। 
 
ट्रेन में  कुछ उच्च दर्जे के अमीर यात्री भी हैं और कुछ थर्ड क्लास के गरीब यात्री भी हैं। ट्रेन पता नही कहां से बंबई के लिए जा रही है। 

कुछ अमीर-गरीब लोग स्टेशन मास्टर के कमरे में पहुंच जाते हैं और अपनी-अपनी समस्याएं बताते हैं। एक अमीर को किसी नवाब के कुत्ते की शादी में शरीक  होना था और एक  सज्जन को भारत वेस्ट इंडीज के क्रिकेट मैच को बंबई में देखना था। बेचारे फंस गए रेलवे प्लेटफॉर्म पर इतने महत्वपूर्ण कामों को छोड़कर!

गरीब इस बात आनंदित थे कि एक बार अमीरों को भी गरीबों के समान प्लेटफॉर्म  पर पूरा दिन गुजारना होगा जब तक रेल मार्ग साफ नहीं हो जाता।

सुनील दत्त रेलवे स्टेशन के पास के उस एकमात्र ढाबे के मालिक की एकमात्र बेटी (नलिनी जयवंत) को कुएं में डूबने से बचा लेते हैं। नलिनी जयवंत अपना दिल सुनील दत्त को दे बैठती हैं। और उधर ट्रेन के फर्स्ट  क्लास में ट्रैवल कर रही रियासत की राजकुमारी (शीला रमानी) और सुनील दत्त में इश्क हो जाता है। हो गया प्रेम का त्रिकोण, बन गई फिल्म!


                    (सुनील दत्त और  शीला रमानी)

                    (सुनील  दत्त और नलिनी जयवंत)

पूरी फिल्म एक  छोटे से रेलवे प्लेटफॉर्म और एक रुकी हुई ट्रेन के आसपास घूमती है। सारे गाने भी प्लेटफॉर्म के आसपास ही फिल्माए गए हैं। फिल्म के सभी गाने मदन मोहन के संगीत में बने हैं और मधुर हैं:

मस्त शाम है हाथों में जाम है: आशा भोसले, एसडी बातिश।
भजो राम भजो राम : आशा भोसले, एसडी बातिश।
अंधेर नगरी चौपट राजा: मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, मनमोहन कृष्णा, शिव दयाल बातिश।
देख तेरे भगवान की हालत क्या हो गई इंसान: मोहम्मद रफ़ी , मनमोहन कृष्ण , शिव दयाल बातिश।

इनमें से कुछ  गानों में आपको रेल की पटरियां और खड़ी रेल भी दिखाई देगी। लेकिन रेलगीत तो एक ही है और वो काफी है गुनगुनाए के लिए और प्रेरणा लेने के लिए।

कभी-कभी सीरियस बात से भी ब्लॉग पोस्ट को समाप्त कर सकते हैं। साहिर के इस अंतरे से समझें:

क़दम-क़दम पर होनी बैठी अपना जाल बिछाए।
इस जीवन की राह में जाने कौन कहाँ रह जाए !.....
......
गाता जाए बंजारा!...



पंकज खन्ना
9424810575

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हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
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CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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