(39) ठोकर नसीब की जो खाकर



     ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)


गाना:ठोकर नसीब की जो खाकर ।  फिल्म: मिस इंडिया (1957)। गायक: मन्ना डे। गीतकार: राजेंद्र कृष्ण। संगीतकार: एस डी बर्मन। हीरो: प्रदीप कुमार। हीरोइन: नर्गिस। निर्देशक: आई एस जौहर। परदे पर: नर्गिस, एक बूढ़ा भिखारी, उसके साथ दो बच्चे और अन्य रेल यात्री।



मन्ना डे, राजेंद्र कृष्ण और एस डी बर्मन की टीम के इस इकलौते गीत के बोल पहले पढ़ लीजिए:

ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)
इक रोज़ बढ़के मंज़िल, इक रोज़ बढ़के मंज़िल 
उसको गले लगाए।
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)

ये रंज ये मुसीबत किस्सा है जिंदगी का।
गम को खुशी बनाना है का म आदमी का।
गम को खुशी बनाना है काम आदमी का।
इंसान क्या जो गम से इंसान क्या जो गम से घबरा के बैठ जाए
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)

हर रात की सुबह है, हर शाम का सवेरा।
हर रात की सुबह है, हर शाम का सवेरा।
रुकना ना  रास्ते में मंज़िल है तेरा डेरा।
रुकना ना रास्ते में मंज़िल है तेरा डेरा।

हर एक नयी मुसीबत, हर एक नयी मुसीबत हिम्मत तेरी बढ़ाए
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:) 
ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:)
इक रोज़ बढ़के मंज़िल, इक रोज़ बढ़के मंज़िल 
उसको गले लगाए।

उदास, दुखी नर्गिस पति को ढूंढने निकली हैं। ट्रेन की खिड़की पर बैठी हुई हैं। एक बूढ़ा भिखारी और और उसके साथ दो बच्चे ये गीत गाते हुए दिखाए गए हैं।

ये एक बहुत अच्छे संदेश वाला भिक्षुक, दार्शनिक, प्रेरणास्पद रेलगीत है। इसे समझने के लिए इसका शीर्षक ही काफी है: ठोकर नसीब की जो खाकर भी मुस्कुराए:) पूरे गाने का संदेश यही है कि कितनी भी मुसीबत आन पड़े उसका मुकाबला मुस्कुराहट के साथ करें।

रेल-संगीत में आज एस डी बर्मन का पहला गीत आया है। हर किसी के फेवरेट संगीतकार होते हैं। हमारे तो यही हैं! गाने की शुरुआत में इन्होंने रेल की सीटी में भी अपने संगीत की छाप छोड़ी है। पूरा गाने में ही मधुर संगीत है। गाने के अंत में भी स्टीम इंजन के सीटी को इन्होंने अपने हिसाब से संगीत में ढाला  है जो बहुत कर्णप्रिय है। 



गायक मन्ना डे भी रेल संगीत में आज ही एंट्री मार रहे हैं! 



सब कुछ है इस गाने में: मन्ना डे की आवाज़, राजेंद्र कृष्ण का सारगर्भित गीत, नर्गिस का अभिनय और सचिन देव बर्मन का मधुर संगीत! लेकिन ठोकर नसीब की, नहीं चला!!

नर्गिस ने  जनवरी 1957 में फिल्म मिस इंडिया में काम किया और अक्टूबर 1957 में ही मदर इंडिया का रोल किया। खूबसूरत अदाकारा नर्गिस को मदर इंडिया के रोल से ही अधिक जाना जाता है। 

फिल्म में मिस इंडिया प्रतियोगिता जैसा कुछ नहीं है। फिल्म की शुरुआत दिल्ली के एक कॉलेज में स्नातक समारोह से होती है, जहां मुख्य अतिथि 'मिस इंडिया' की प्रशंसा करते हैं, और अपने शब्दों में कहते हैं: "भारत की शिक्षित, आत्मनिर्भर युवा महिलाएं, जो अपने पतियों के लिए अच्छी पत्नियां और अपने परिवारों के लिए अच्छा घर बनाएंगी वो ही मिस इंडिया हैं।"

फिल्म में  नर्गिस के चोर, उचक्के, धोखेबाज पति प्रदीप कुमार शादी के फेरों के बाद ही नर्गिस की धन दौलत लूटकर नर्गिस को छोड़कर चले जाते हैं। लेकिन नर्गिस उनको ढूंढकर उनकी ही सेवा करना चाहती हैं, और  ऐसी 'मिस इंडिया' ही बनना चाहती हैं!

मदर इंडिया ने मिस इंडिया को पीछे छोड़ दिया। सोचकर अच्छा लगता है!

फिल्म मिस इंडिया और इसके गाने ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए। लेकिन फिल्म के सभी गाने बहुत अच्छे बने हैं। संगीत जो एस  डी बर्मन का है! फुरसत में जरूर सुनें।

काफी साल टीचर होने के नाते अंत में ये जरूर कहना चाहता हूं 'ठोकर नसीब की' भी सिर्फ नसीब वालों को ही मिलती है।  'ठोकर नसीब की' अक्सर आपको एक बेहतरीन अवसर प्रदान करती है। आप मुस्कुराएंगे तो आपको अवसर जरूर दिखेंगे:)


पंकज खन्ना
9424810575

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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
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