(41) चल उड़ जा रे पंछी।


                   चल उड़ जा रे पंछी।


गाना:चल उड़ जा रे पंछी। फिल्मभाभी (1957) गायक: रफ़ी। गीतकार: राजिंदर कृष्ण। हीरो: बलराज साहनी। हीरोइन: पंडरी बाई। परदे पर: नंदा। संगीतकार: चित्रगुप्त।

(वर्शन रिकॉर्ड चल उड़ जा रे: तलत मोहम्मद की आवाज़ में। भाभी फिल्म के सभी गाने सुनने के लिए यहां क्लिक करें)





साहित्यिक गीत, मधुर संगीत, कानों से उतरकर कर दिल पर छा जाने वाली गायकी और उच्च कोटी के फिल्मांकन का अनूठा संगम है ये रेल/शीर्षक/पंछी/दार्शनिक/प्रेरणास्पद गीत: चल उड़ जा रे पंछी। संगीतकार चित्रगुप्त की  संभवतः सर्वश्रेष्ठ रचना है ये।

फिल्म में इस गाने को तीन बार अलग अलग दिखाया गया है। शुरुआत में टाइटल्स के साथ उड़ती चिड़ियाओं के झुंड  के साथ गाना दिखाया गया है। दूसरे हिस्से में दुखी बलराज साहनी  और अन्य गमगीन कलाकारों को पैदल चलते हुए और एक बैलगाड़ी को भी चलते हुए दिखाया गया है।

तीसरे भाग में गाना घोड़ागाड़ी में बैठे ओमप्रकाश और  नंदा पर फिल्माया गया है और अंत में इन दोनों को रेल में प्रवेश करते हुए दिखाया गया है।

ये गीत सब काम छोड़कर सिर्फ सुनने, देखने और अनुभूति के लिए है। ध्यान (Meditation) लगाकर गाने के शब्दों को पढ़ें और फिर ये गाना भी सुन लें ।


प्रथम भाग:

चल उड़ जा रे पंछी, चल उड़ जा रे पंछी।
के अब ये देश हुआ बेगाना।
चल उड़ जा रे पंछी...

ख़तम हुए दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था।
ख़तम हुए दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था।
आज यहाँ और कल हो वहाँ ये जोगी वाला फेरा था।
ये तेरी जागीर नहीं थी ये तेरी जागीर नहीं थी।
चार घड़ी का डेरा था।
सदा रहा  है इस दुनिया में किसका आबो-दाना।
चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना।
चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना।
चल उड़ जा रे पंछी...

दूसरा भाग:

तूने तिनका-तिनका चुन कर, नगरी एक बसाई।
तूने तिनका-तिनका चुन कर, नगरी एक बसाई। 
बारिश में तेरी भीगी पाँखें ,धूप में गर्मी छाई ।
गम ना कर गम ना कर जो तेरी मेहनत तेरे काम ना आई। अच्छा है कुछ ले जाने से देकर  हाय कुछ जाना ।
चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना। 
चल उड़ जा रे पंछी...

तीसरा भाग:

भूल जा अब वो मस्त हवाएं वो उड़ना डाली-डाली।
भूल जा अब वो मस्त हवाएं वो उड़ना डाली-डाली।
जग की आंखों का कांटा बन गई, चाल तेरी मतवाली।
कौन भला हमारे बाग को पूछे कौन भला हमारे बाग को पूछे। हो ना जिसका माली।
तेरी किस्मत में लिखा है जीते जी मर जाना।
चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना।
चल उड़ जा रे पंछी...

रोते हैं वो पंख-पखेरू साथ तेरे जो खेले।
रोते हैं वो पंख-पखेरू साथ तेरे जो खेले।
जिनके साथ लगाए तूने अरमानों के मेले।
भीगी अंखियों से ही उनकी, आज दुआएं ले ले।
किसको पता अब इस नगरी में कब हो तेरा आना।
चल उड़ जा  रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना।
चल उड़ जा रे पंछी..

ब्लॉग के नियमानुसार फिल्म के बारे में कुछ नहीं कहेंगे। पर गाने की कहानी तो सुनाकर रहेंगे! फिल्म में नंदा एक बाल विधवा हैं जो अपनी बहन पंडरी बाई और उनके पति बलराज साहनी के संयुक्त परिवार के साथ गांव में रहती थीं। पारिवारिक षडयंत्र के कारण नंदा को घर छोड़ना पड़ता है। उन्हें घोड़ा गाड़ी में बैठा दिया जाता है। गांव की कच्ची सड़क से 'हाइवे' की सड़क तक और फिर हाइवे से किसी छोटे से वृक्षाच्छादित, सुंदर अनजाने से रेलवे स्टेशन तक ये घोड़ागाड़ी रास्ता तय करती है और ये गाना पार्श्व में बजता रहता है: चल उड़ जा रे पंछी। अंत में नंदा ट्रेन में अपने भाई ओमप्रकाश के साथ बैठ जाती हैं और गाना खतम हो जाता है।


प्यारी सी घोड़ागाड़ी, गांव की सड़क, पतली, खाली-खाली  शहरी रोड और  छत रहित खुले बड़े बड़े पेड़ों को समाय खूबसूरत प्लेटफॉर्म वाले रेलवे स्टेशन का बहुत सुंदर दृश्य और स्टेशन पर खड़ी स्टीम इंजिन की  रेल भी इस टाइप के वियोग के दर्द को कम नहीं कर सकती है।

'चल उड़ जा रे पंछी' वाली अनुभूति हर किसी इंसान को जीवन में कम से कम एक दो बार तो होती ही है। हमें भी हर ट्रांसफर के बाद ट्रेन  में बैठने तक  ये वाली अनुभूति होती ही थी। घर का सामान ट्रक में लोड कराने के बाद, रेलवे स्टेशन पहुंचने तक उदास मन यही गाया करता था:चल उड़ जा रे पंछी। 


लेकिन रेलें एक अलग सकारात्मकता ( Positivity) लेकर चलती हैं। रेल के डब्बे में बैठकर दिमाग का गियर अक्सर बदल जाता है। हमारे साथ भी यही होता था और नए बसेरे के बारे में सोचना शुरू कर देते थे। आपने भी शायद अनुभव किया होगा कि  रेल यात्रा के दौरान चिंतन-मनन करने से बड़ी बड़ी समस्याओं का हल आसानी से निकल आता है।

राजेंद्र कृष्ण  की लिखी ये बात कभी भूले ही नहीं: ये तेरी जागीर नहीं थी, चार घड़ी का डेरा था। ये एक वाक्य  जीवन जीने की कलाओं और मोटिवेशन क्लासेज के  बहुत ऊपर है। 

और ये बात समझ जाने के बाद जीना बहुत आसान हो जाता है।  बीती हुई बुरी बातों को सोचना नहीं है, पंछियों के समान आगे बढ़ना है। पंछी बगैर किसी शिकायत के नई डाली ढूंढ ही लेते हैं! हम क्यों नहीं ढूंढ सकते!?

अच्छी बातों को याद करते हैं, अब तक की सुखद रेल यात्रा/जीवन यात्रा को याद करते हैं।  चित्रगुप्त के संगीत में डूबकर राजेंद्र कृष्ण के शब्दों को थोड़ा सा बदलकर अंत में मस्ती में कुछ-कुछ ऐसे गाते हैं: 

चल उड़ जा रे पंछी, अब ये देश तेरा आशियाना!
भूल जा दुख वो पुराने, आए हैं दिन अब नए सुहाने!

ख़ुशी पाने का कोई रास्ता नहीं है, ख़ुशी ही रास्ता है! खुश रहें आबाद रहें!!


पंकज खन्ना
9424810575

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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
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