(19) छक छक चली हमारी रेल
पंकज खन्ना
गाना: छक छक चली हमारी रेल। फिल्म: नाच (1949)।गायिका: गीत दत्त और लता मंगेशकर। गीतकार: मुल्कराज भाकरी। संगीतकार: हुस्नलाल भगतराम। नायक:श्याम नायिका: सुरैया। निर्देशक: रविन्द्र दवे। निर्माता: कुलदीप सहगल।
दुर्भाग्य से इस गाने का वीडियो Youtube पर उपलब्ध नहीं है। और फिल्म नाच भी Youtube पर नहीं दिख रही है। इसका मतलब ये है कि इस गाने के लिए भी कल्पना के सागर में गोते लगाने होंगे! पहले गाने के बोल पढ़ लेते है और फिर गाना भी सुन लेते हैं: छक छक चली हमारी रेल।
आज के गाने के बोल:
लता और गीता दत्त: छक-छक चली हमारी रेल। छक-छक चली हमारी रेल। ये है आग पानी का खेल। ये है आग पानी का खेल। देखो अंग्रेजों का खेल। देखो अंग्रेजों का खेल। छक-छक चली हमारी रेल। छक-छक चली हमारी रेल।
लिए जा रही है ये किसी को बिछड़ा साजन मिलाने। लिए जा रही है ये किसी को बिछड़ा साजन मिलाने। कोई छोड़ अपने संगी को चला है दूर ठिकाने।
किस्मत से ही होता है जी बिछड़ों के फिर मेल। छक-छक चली हमारी रेल। छक-छक चली हमारी रेल। ये है आग पानी का खेल। देखो अंग्रेजों का खेल। छक-छक चली हमारी रेल। छक-छक चली हमारी रेल।
अज्ञात पुरुष स्वर (शायद ट्रेन के डिब्बे में किसी फेरीवाले ने गाया है।) : मलाई है मलाई, मलाई है मलाई। तोरे हाथो ने बनाई। तोरे हाथो ने बनाई। कुंवारा भी खाए तो मिल जाए लुगाई। मिल जाए लुगाई। पूछ लो इसे इसने परसों की खाई। परसों की खाई। मलाई है मलाई, मलाई है मलाई।
लता और गीता दत्त: बालम मोरे का शहर है दिल्ली। बालम मोरे का शहर है दिल्ली। छोटी बजरिया में ऊंची हवेली। छोटी बजरिया में ऊंची हवेली। माइका है मोरा बीच बरेली। माइका है मोरा बीच बरेली। वहीं की टिकट कटाई रे। वहीं की टिकट कटाई रे।
अज्ञात पुरुष स्वर : गार्ड बाबू ओ गार्ड बाबू। गार्ड बाबू ओ गार्ड बाबू। गाड़ी जल्दी-जल्दी खेंच।
लता और गीता दत्त: छक-छक चली हमारी रेल। छक-छक चली हमारी रेल।
गाने के बोल पढ़कर और गाना सुनने के बाद यही समझ आ रहा है कि ट्रेन के डिब्बे में दो सखियां हैं जो सुर में गा रही है और शायद नृत्य भी कर रही होंगी। रेल को बता रही हैं आग पानी का खेल!
"लिए जा रही है ये किसी को बिछड़ा साजन मिलाने"। पहली सखी अपने बिछड़े साजन से मिलने जा रही है।
गाने के आगे के बोल ऐसे हैं:"कोई छोड़ अपने संगी को चला है दूर ठिकाने"...... "बालम मोरे का शहर है दिल्ली। छोटी बजरिया में ऊंची हवेली। माइका है मोरा बीच बरेली।" मतलब दूसरी सखी का मायका बरेली का है और बलमा दिल्ली की छोटी बजरिया की किसी ऊंची हवेली में रहता है। और इस सखी ने बरेली की ही टिकट कटाई है।
और वो फेरी वाला मलाई के नाम पर पता नहीं क्या बेच रहा है! और बाऊजी, ये कौनसी मलाई है जिसे कुंवारा भी खाए तो मिल जाए लुगाई!?
"गार्ड बाबू ओ गार्ड बाबू। गाड़ी जल्दी-जल्दी खेंच!" मलाई बेचनेवाले की 'गार्ड बाबू ओ गार्ड बाबू' सुनकर ये रेल हमारे घर की याद आ जाती है।
ये गीत सुरैया पर तो फिल्माया नहीं ही गया होगा क्योंकि इस गीत को लता और गीता दत्त ने गाया है। संभवतः ये श्यामा और गुलाब पर फिल्माया गया होगा। कुछ भी हो, बड़ा प्यारा रेल गीत है! वीडियो नही है तो क्या हुआ, सुन तो सकते हैं! इसे भी खुशकिस्मती समझें!
इस गाने के काबिल गीतकार हैं: मुल्कराज भाकरी।अपनी प्रतिभा का खूब परिचय दिया है इस रेलगीत में। ज्यादा प्रसिद्ध तो नहीं हैं, फिर भी पांच-छह फिल्मों में 50 से अधिक गाने इन्होंने लिखे हैं। उनका लिखा हंसराज बहल के संगीत में मोहम्मद रफी और बीनापाणी मुखर्जी का गाया ये थोड़ा अलग सा गाना शायद आपने पहले न सुना हो: लच्छी तू लागे हमें अच्छी! फिल्म: रूमाल(1949)।
अब संगीतकार हुस्नलाल भगतराम की बात भी कर ली जाए। इन्होंने न सिर्फ इस गाने का बल्कि रेल के चलने का संगीत भी बहुत मीठा दिया है। दो भाई हुस्न लाल(1920-1968) और भगत राम(1914-1973) भारत की पहली संगीतकारों की सफल और प्रसिद्ध जोड़ी थी। उनके बाद, ऐसी जोड़ियां आम हो गईं जैसे: शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। और उसके बाद तो जोड़ियों की रेल बन गई। लेकिन जोड़ियों के इंजिन तो हुस्नलाल भगतराम ही हैं!
हुस्नलाल (छोटे भाई) एक प्रसिद्ध वायलिन वादक, गायक और संगीतकार थे। जबकि भगतराम एक विशेषज्ञ हारमोनियम वादक थे। इनके संगीत की पहली फिल्म थी: चांद(1944)।
इन दोनों भाइयों ने शंकर, लक्ष्मीकांत, खैयाम, एस मोहिंदर और महेंद्र कपूर जैसे संगीतकारों और गायकों को प्रशिक्षित किया।
(हुसनलाल भगतराम)हुस्नलाल भगतराम द्वारा रचित कुछ बेमिसाल चुनिंदा नगमे: चले जाना नहीं । चुप-चुप खड़े हो । तेरे नैनों ने चोरी किया। क्या यही तेरा प्यार था । हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाए। ओ परदेसी मुसाफिर किसे करता है इशारे। अपना बना के छोड़ नहीं जाना। अभी तो मैं जवान हूँ । एक दिल के टुकड़े हजार। हुसनलाल भगतराम के बारे में और अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
हमें इस रेल गीत के अलावा इसी फिल्म का ये गीत भी बहुत पसंद है : बाट तकूं मैं तेरी कोठी चढ़ के। आजा मेरे बालमा बहाना करके। इसका संगीत थोड़ा-थोड़ा चुप-चुप खड़े हो की याद दिलाता है। (फिल्म के सभी गानों को सुनने के लिए इस लिंक को क्लिक करें: नाच फिल्म के गाने।)
अंत में फिर वो ही दुविधा! रेल संगीत में संगीत तो हो गया लेकिन रेल रह गई! कुछ अच्छा लिखना चाहता हूं। कुछ और बातें करना चाहता हूं। नई मतलब पुरानी जानकारी देना चाहता हूं। इंजिन की स्टीम कम हो गई है। रेल रुक सी गई है। रेल का पहिया 'जाम' लगा के बैठ गया है।
आज रेलसंगीत यात्रा में ये जाना, इतना आसान भी नहीं होता रेल का चक्का चलाना।
किसी ज़ेहरा शाह के लिखे शेर से आज की बात खतम करते हैं:
यादों की रेल और कहीं जा रही थी फिर, जंजीर खींच कर ही उतरना पड़ा मुझे।