(33) ये दुनिया की रेल मुसाफिर (1955) सितारा



                 ये दुनिया की रेल मुसाफिर

गाना: ये दुनिया की रेल मुसाफिर  । गायक: मोहम्मद रफी।फिल्म: सितारा (1955)। गीतकार: शकील बदायूंनी। संगीतकार: गुलाम मोहम्मद। निर्देशक: एस के ओझा। निर्माता: पी एन अरोरा। हीरो: प्रदीप कुमार। हीरोइन: वैजयंतीमाला।

 

.                     मोहम्मद रफी (1924-1980)

दुर्भाग्य से फिल्म सितारा नेट पर कहीं उपलब्ध नहीं है। इसलिए आज के रेलगीत का वीडियो भी हम नहीं देख सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा तूफान मेल के समान दार्शनिक गीत है। रेल यात्रा और जीवन यात्रा पर शकील बदायूंनी ने बहुत खूब लिखा है। आप खुद ही पहले पढ़ लीजिए और सुन लीजिए:

ये दुनिया की रेल मुसाफिर। ये दुनिया की रेल मुसाफिर।
छक-छक चलती जाए, रे पल-पल आगे बढती जाए।
आगे बढती जाए।

साँसों की पटरी पर भागे राह चले ना आडी।
इसमें लगे किस्मत के पहिये चल जाए तो गाडी बाबा।
चल जाए तो गाडी।

नगर-नगर में ठहरती रूकती, नगर-नगर में ठहरती रूकती।
मंजिल तक पहुंचाए रे, पल-पल आगे बढती जाए।
आगे बढती जाए ,आगे बढती जाए।

इस गाडी में देख ना प्यारे जात-पात के फंदे।
जात-पात के फंदे, एक जगह पर मिल कर बैठे।
सब भगवान के बन्दे बाबा सब भगवान के बन्दे।

दो दिन का ये सफ़र है बाबा, दो दिन का ये सफ़र है बाबा।
मिल जुल कर कट जाए रे, पल-पल आगे बढती जाए।
आगे बढती जाए, आगे बढती जाए।

सेठ महाजन, चोर उचक्के इस गाडी में साथ चले।
रात को सोये धन लुट जाए और सवेरे हाथ मले।
और सवेरे हाथ मले। कोई बजाये चैन की बंसी।
कोई बजाये चैन की बंसी, कोई नीर बहाए रे।

पल पल आगे बढती जाए ,आगे बढती जाए।
आगे बढती जाए।
ये दुनिया की रेल मुसाफिर, ये दुनिया की रेल मुसाफिर।
छक-छक चलती जाए रे, पल-पल आगे बढती जाए ।
आगे बढती जाए। आगे बढती  जाए।

शकील बदायूंनी का लिखा इस गाने का हर शब्द बेशकीमती है और बहुत कुछ सिखाता है: इस गाडी में देख ना प्यारे जात-पात के फंदे, सब भगवान के बंदे......
सेठ महाजन, चोर उचक्के इस गाडी में साथ चले....
कोई बजाये चैन की बंसी, कोई नीर बहाए रे....

अब मोहम्मद रफी की गायकी के बारे में कुछ भी कहना कम है। इनकी तारीफ में सारे विशेषण प्रयोग  किया जा चुके हैं। और क्या कहें! इस गाने में भी उन्होंने निराश नहीं  किया है। आपको भी सुनने के बाद लगेगा कि ये गाना इतना गुमनाम  नहीं होना चाहिए।

ये गाना किस पर फिल्माया गया होगा? संभवतः प्रदीप और वैजयंतीमल पर। हमें पूरी उम्मीद है की कभी इस गाने का वीडियो भी देख सकेंगे।

इस गाने में संगीत दिया है गुलाम मोहम्मद ने। रेलसंगीत में गुलाम मोहम्मद का जिक्र पहली बार आया है। वो बहुत प्रतिभाशाली संगीतकार थे। उन्हें हिंदी की संगीत-हिट फिल्मों जैसे मिर्जा गालिब (1954), शमा (1961) और पाकीज़ा (1972) के लिए याद किया जाता है।


उन्हें फिल्म मिर्ज़ा ग़ालिब (1954) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला। उनकी आखिरी फिल्म पाकीजा (1972) की शूटिंग, कुछ समस्याओं के कारण कई वर्षों तक अटकी रही और उनकी मृत्यु के बाद ही रिलीज़ हो पाई।

सितारा फिल्म के सारे गाने इस लिंक से देख सकते हैं। 

गुलाम मोहम्मद ने सितारा फिल्म में ही मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम से ये गाना भी गवाया था: ठंडी हवाएं काली घटाएं। ये गाना कम सुना गया है लेकिन बहुत अच्छा है और उनके वक्त से काफी आगे वाला गाना है। हिंदुस्तानी और पाश्चात्य संगीत का सुंदर मिश्रण है। ( इसी साल 1955 में ही ओपी नैय्यर की आर पार आई थी जिसमें ये सुपरहिट गाना था: ठंडी हवा काली घटा। ) काश ये दोनों भी  रेल गीत होते!

बगैर रेल देखे तो मजा नही आयेगा। इसलिए जाते-जाते चाहें तो मुंबई लोकल ट्रेन पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म भी देख लें , सिर्फ आठ मिनट की है।  

गाना सीरियस और फिर ये शॉर्ट फिल्म भी सीरियस! नहीं ऐसे तो नहीं चलेगा! अंत में राहुल दुआ का एक हल्का फुल्का स्टैंड अप कॉमेडी एक्ट भी देख लीजिए। आप भी मान लेंगे कि रेल यात्रा हवाई यात्रा से बेहतर होती है!



पंकज खन्ना
9424810575

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तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
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