(38) आज इस नगरी कल उस नगरी!
पंकज खन्ना
प्रेम धवन द्वारा लिखित गीत:
आज इस नगरी कल उस नगरी,धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये। आज इस नगरी कल उस नगरी,धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये।
है कैसा गजब ये ढाए मोरे रामा सजनी से साजन छुड़ाए लिए जाए। धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये।
आज इस नगरी कल उस नगरी,धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये । आज इस नगरी कल उस नगरी, धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये।
बैरन गाड़ी उड़ती जाए मन को चैन ना आए। साजन के मन को चैन ना आए, है अपने पिया से दूर सजनिया छमछम नीर बहाए।
नैनन का कजरा हाथन का गजरा सब कुछ ये बैरन चुराए लिए जाए हो सब कुछ ये बैरन चुराए लिए जाए।
आज इस नगरी कल उस नगरी,धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये आज इस नगरी कल उस नगरी,धुएं की गाड़ी उड़ाये लिये जाये
गाने का सिलसिला कुछ ऐसा है: धीरे-धीरे इंजीन का पहिया कनेक्टिंग रोड के साथ घूमता दिखाई देता है जो किसी भी रेल प्रेमी को आनंदित कर देता है। इंजन का घूमना थोड़ा तेज होता है। और फिर थोड़ा और तेज हो जाता है। संगीत भी बिलकुल इंजन वाला ही है। अब ट्रेन के थर्ड/सेकंड क्लास के डब्बे में नृत्य/गायन मंडली दिखाई और सुनाई देती है। सब कलाकार मस्त होकर प्रेम धवन के लिखे गाने पर नाच गा रहे है, रफी की शानदार आवाज़ तले।
पास के प्रथम क्लास के डब्बे में अकेले-अकेले गहन सोच में डूबे प्रदीप कुमार सिगरेट पीते हुए धुआं उड़ा रहे हैं। गाने में ही माला सिन्हा अपने घर में विरह में दुखी दिखाई गई हैं, जैसे उदासी का धुआं उड़ रहा हो। उधर स्टीम इंजन भी धुआं उड़ा रहा है और मंडली गा रही है: आज इस नगरी कल उस नगरी, धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए!
गाने का सिर्फ ऑडियो सुनेंगे या सिर्फ मंडली को देखेंगे तो लगेगा जैसे मौज मस्ती का गाना है। लेकिन हीरो प्रदीप कुमार और हीरोइन माला सिन्हा काफी दुखी दिखाए गए हैं! गाने के अंतरे से ही समझ आ जाएगा इन दोनों का दुख: बैरन गाड़ी उड़ती जाए, मन को चैन ना आए। साजन के मन को चैन ना आए, है अपने पिया से दूर सजनिया, छमछम नीर बहाए।
'धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए' थीम पर एक गीत पहले भी बन चुका है जिसे परेश बैनर्जी और राजकुमारी ने श्याम सुंदर के संगीत में फिल्म नई कहानी में गाया था। ( देखिए ब्लॉग पोस्ट नंबर- 8.)
गानों के कुछ शब्दों को चुराकर नए गाने बनाना पुरानी परंपरा रही है। आज के गाने के भी शुरू के शब्द मौलिक नहीं हैं लेकिन बाकी शब्द बहुत चुनिंदा और साहित्यिक हैं। इस रेल गीत में रेल, विरह, मस्ती और दर्शन का खूबसूरत मिलन है।
अब इसी फिल्म के गाने चांद हंसा तारे खिले (नया ज़माना-1957) के शब्दों को थोड़ा बदल कर ये सुपरहिट गाना बन गया: वो चाँद खिला वो तारे हंसे (अनाड़ी- 1959)।
संगीतकार कनु घोष ने शायद हिंदी की दो फिल्में ही की हैं: नया ज़माना (1957) और प्यार की राहें (1959)। दोनों ही फिल्मों का संगीत मद्धम, मीठा और उत्तम है। प्यार की राहें फिल्म के तीन जानदार गानों के लिंक नीचे दिए हैं।
दो रोज़ में वो प्यार का आलम गुजर गया। मुकेश।
ये झूमते नज़ारे। हेमंत कुमार और लता मंगेशकर।
तुम से दूर चले हम मजबूर चले । हेमंत कुमार और लता मंगेशकर।
इन गानों को सुनकर आप कनु घोष के संगीत को जरूर दाद देंगे और याद रखेंगे।
आज इस नगरी कल उस नगरी! ये बात सिर्फ इंसानों पर ही नहीं बल्कि भाप के इंजिन पर भी लागू होती है। स्टीम इंजन भी आज के डीजल और विद्युतीय इंजन के समान पूरी जिंदगी ऐसे ही जीते थे: आज इस नगरी कल उस नगरी! और कभी कभी जिंदगी पूरी होने के बाद भी!
ये स्टीम इंजन हमारे कॉलेज ( श्री गोविंदरामस्टीम सक्सेरिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉल्मेंजी एंड साइंस, SGSITS इंदौर) में पिछले पचास सालों से भी ज्यादा समय से शांति से काया-कल्प या पुनर्जीवन की प्रतीक्षा में है। इस इंजन की कहानी 100 सालों से भी अधिक पुरानी है। इसे बर्लिन, जर्मनी में कभी बनाया गया, सन 1908 और 1916 के बीच में। बचपन में और जवानी में कहां चला और कैसे चला अभी तक ज्ञात नहीं है। अधेड़ावस्था में इसने छिंदवाड़ा की प्राइवेट खदानों में कोयले का परिवहन किया, ये पता है। और फिर ये इंजन खदान से निकलकर हमारे कॉलेज में उपहार स्वरूप पहुंच गया....! कॉलेज में पचास साल बिताने के बाद अब ये फिर से चर्चा में आ गया है। शायद ये फिर से सांस ले सके और छोड़ सके। या यूं कहें शायद ये फिर आग और पानी का सेवन करके भाप छोड़ सके। अगर आप इस शतायु स्टीम इंजन के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
जब काम करते थे तब हमारा भी जीवन भी ऐसा ही था: आज इस नगरी, कल उस नगरी। अब याद करके लिखते रहते हैं: आज ये ब्लॉग, कल वो ब्लॉग:)