रेल संगीत: दोस्तों/पाठकों के प्रश्न और उनके उत्तर
पंकज खन्ना
(1) आज के जमाने में क्यों Black and White फिल्में/गाने देखें या सुनें?
उत्तर: इसका विस्तृत उत्तर ब्लॉग के शुरू में ही दे रखा है। वही लिंक यहां भी लगा दिया है। पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
(2) रेल संगीत पर एक पुस्तक ही क्यों प्रकाशित नहीं करवा देते? बार-बार ब्लॉग कौन देखेगा?
उत्तर: ब्लॉग लिखने के और पुस्तक न लिखने के पीछे तीन कारण हैं।
पहला कारण: आज इतनी अधिक किताबों के लिखे जाने के पीछे की प्रथम मंशा प्रसिद्ध होने की है। अक्सर हम अपने काम को पसंद नहीं करते हैं; लेकिन एक लेखक, कवि, चित्रकार या अन्य किसी भी कारण से प्रसिद्ध होना चाहते हैं। यदि आप किसी काम को सचमुच पसंद करते हैं तो आपको इस बात की चिंता नहीं होगी कि आप प्रसिद्ध हैं या नहीं। हमारी वर्तमान शिक्षा सड़ी हुई है क्योंकि यह हमें सिर्फ सफलता और प्रसिद्धि से प्रेम करना सिखाती है न कि उससे जिसे हम कर रहे हैं।
हमें लिखने का शौक है। लिखना अच्छा लगता है, इसलिए लिखते हैं। किताब की छपास (छपने की आस) कतई नहीं है।
दूसरा कारण: हमारा ये विश्वास है कि दुनिया में जितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं उनका संरक्षण बहुत जरूरी है। नई किताबें, मैगजीन और न्यूज पेपर छापकर पर्यावरण को और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। लाखों करोड़ों छप रही गैर जरूरी किताबें मानव सभ्यता के लिए इतनी आवश्यक नहीं हैं कि इनके लिए मूल्यवान कागज़ या कहें तो जंगल बर्बाद कर दिए जाएं।
आज के जमाने में जब इंटरनेट उपलब्ध है तो पुस्तक प्रकाशन में क्यों प्रत्यक्ष रूप से कागज और अप्रत्यक्ष रूप से जंगलों को बर्बाद किया जाए!? बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिलों में बैठकर, पेट्रोल डीजल जलाकर आते हैं, पर्यावरण पर भाषण देते हैं, प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीते हैं, बोतल वहीं छोड़ते हैं, पर्यावरण पर पुस्तकों का विमोचन करते हैं और निकल लेते हैं।
और अखबार वालों के जबरदस्त दोगलेपन को देखिए! लोगों को प्रतिदिन पर्यावरण की नसीहत देते रहते हैं और साल भर में हजारों टन के पेपर उपयोग में लाते हैं। उफ तक नहीं करते! पेपर के बनने की प्रक्रिया में करोड़ों लीटर पानी बर्बाद करते हैं! फिर अट्टालिकाओं के शिखर पर विराजित होकर बोलते हैं: लोगों पानी बचाओ!!
हम भी आपके समान जंगल प्रेमी, पर्यावरण प्रेमी हैं। नाम अमर करने के छोटे उद्देश्य को लेकर पुस्तकें प्रकाशित करते रहें तो फिर कैसे पर्यावरण प्रेमी? हम कोई न्यूज पेपरवाले हैं क्या!?
तीसरा कारण: अगर पहले दो कारणों को भूल भी जाएं तो भी इस विषय पर किताब लिखने से मज़ा नहीं आएगा। क्योंकि इस ब्लॉग की विशेषता ही लेखन के साथ संगीत की है। पुस्तक में ब्लॉग में गानों के लिंक दे भी दें तो भी पाठक सीधे गाने सुनने से वंचित रह जाएगा।
इसका सीधा उपाय यह है कि इन ब्लॉग पोस्ट को मिलाकर कुछ Ebooks लिख दी जाएं और फ्री में उपलब्ध करा दी जाएं। इस की विस्तृत जानकारी आपको करीब 100 लेख लिखने के बाद जरूर दी जाएगी।
(3) कुल कितने लेख लिखे जाएंगे और कब तक?
उत्तर: अभी तक कुल 180 रेल गीत चिन्हित किए हैं। ये संख्या बढ़कर 200 से ज्यादा पहुंचने की पूरी उम्मीद है। मान सकते हैं कि अगर इन लेखों को तमीज के साथ लिखा जाए तो कम से कम दो वर्ष तो लग ही जायेंगे। इन सभी ब्लॉग पोस्ट को मिलाकर ebooks समय-समय पर लिख दी जाएंगी:
अभी तक चिन्हित किए रेल गीत इस प्रकार हैं:
(i) चालीस के दशक के रेलगीत । कुल 20 से 25 के बीच।
(ii) पचास के दशक के रेलगीत । कुल से 22 से 30 के बीच।
(iii) साठ के दशक के रेलगीत । कुल 45 से 50 के बीच।
(iv) सत्तर के दशक के रेलगीत । कुल 35 से 40 के बीच।
(v) अस्सी के दशक के रेलगीत । कुल 20 से 25 के बीच।
(vi) नब्बे के दशक के रेलगीत । कुल 15 से 20 के बीच।
(vii) 2000 से 2009 के रेलगीत। कुल 25 से 30 के बीच।
(viii)2010 से आज तक के रेलगीत।कुल 25 से 30 के बीच।
कुल लगभग 200 रेल गीत। आने वाले समय में इन गानों को 4 या 5 भागों में विभक्त करके कुछ E-Books लिखी जा सकती हैं।
(4) फिल्मों की कहानी भी संक्षेप में क्यों नहीं लिख देते?
उत्तर: ये ब्लॉग रेल और संगीत के बारे में है। ज्यादा कवरेज गानों और रेलों को ही दिया जायेगा। जहां जरूरत होगी फिल्मों के बारे में भी अतिरिक्त जानकारी दी जाएगी। फिल्मों की कहानी संक्षेप में भी लिखना लेखों को बहुत बड़ा कर देगा। अकेली बूढ़ी होती जान इतना नहीं कर पाएगी रे!
(5) You tube के गाने सीधे ब्लॉग पर क्यों नहीं लगा देते?
उत्तर: जिन लोगों ने मेहनत करके youtube पर गाने लगाए हैं वो सभी धन्यवाद के पात्र हैं। उनकी मेहनत को अपने ब्लॉग पर Embed करना उचित प्रतीत नहीं होता है। उनके लिंक लगाने से उनकी मेहनत का प्रचार होता है और उनको उचित प्रतिक्रिया मिलती है जिसके वो हकदार हैं।
(6) ब्लॉग पर Comments Section क्यों नहीं खोला गया है?
उत्तर: प्रतिक्रियाएं अधिक होने के कारण कई बार उत्तर नहीं दे पाते हैं। अधिकतर कमेंट्स अति प्रसिद्ध साठ-सत्तर के दशकों के रेल गीतों के न छपने के बारे में होते हैं! अभी तो हम चालीस और पचास के दशकों के गीतों में ही उलझे हुए हैं!
कुछ हल्के और नकारात्मक कमेंट्स दिमागी रूप से पीड़ित महानुभावों के होते हैं जिनका कोई जवाब नहीं दिया जा सकता है। इसलिए कमेंट्स सेक्शन को चालू नहीं किया है। आप अपना फीडबैक सीधे हमें फोन, ईमेल या व्हाट्सएप पर दे सकते हैं।
(7) रेल संगीत के पीछे उद्देश्य क्या है?
उत्तर: प्रथम उद्देश्य है पुराने स्टीम इंजन , पुरानी ट्रेनें, पुरानी पटरियों , पुरानी फिल्मों और पुराने गीत संगीत को याद करना और हार्दिक आनंद प्राप्त करना।
असल में ये एक हॉबी, रुचि या शौक ही है जिसके लिए कोई खर्चा नहीं करना पड़ता है! रेल के बारे में जानकारी इकट्ठा करना और संगीत सुनना दोनों ही हमारे शौक हैं। इसलिए इस कार्य को करने में कभी थकान या बोरियत नही होती।
दूसरा उद्देश्य ये है कि नई पीढ़ी के जवान दोस्त भी इस शौक को समझें और अपनाएं। अगर उनको इन रेलों और संगीत में एक जगह जानकारी मिलेगी तो वो भी इस शौक को समझेंगे और अपनाएंगे।
तीसरा उद्देश्य ये है कि पुराने से पुराने रेलगीतों का भी दस्तावेजीकरण (Documentation) हो जाए जिससे भविष्य के रेलगीत प्रेमियों को एक जगह पर सारी जानकारी मिल जाए।
(8) रेल संगीत अंग्रेजी में क्यों नहीं लिखा जा रहा है?
उत्तर: ये ब्लॉग हिंदी गानों पर आधारित है। तो चर्चा भी हिंदी में ही होना चाहिए! अगर आप नेट पर देखेंगे तो पाएंगे कि हिंदी फिल्मों पर अधिकतर ब्लॉग अंग्रेजी में लिखे गए हैं! विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में हिंदी गानों की मीमांसा भी अंग्रेजी में ही की जाती है।
हम कुछ संगीत ग्रुपों के सदस्य हैं जहां हिंदी गानों के बारे में भी हिंदी में लिखना वर्जित है! ऐसे ग्रुप के अधिकतम सदस्य हिंदी गानों को बहुत पसंद करते हैं, गाते है, सुनते हैं और अच्छे से समझते भी हैं। फिर भी अगर कोई हिंदी गानों के बारे में हिंदी में लिख देता है तो खबरदार कर दिया जाता है।
हमें ये मानसिकता समझ भी नहीं आती है और अच्छी भी नहीं लगती है।
हिंदी गानों को जब अंग्रेजी में अनुवाद किया जाता है तो गाने की आत्मा वहीं मर जाती है। हमारे ब्लॉग में गानों की चर्चा जरूर अंग्रेजी में की जा सकती है, जरूरत पड़ने पर। लेकिन हिंदी गानों पर लेख तो हिंदी में ही लिखे जाएंगे!
वैसे भी भविष्य की भाषा तो हिंदी ही है, आप मानें या न मानें।
(9) आप इसमें बीच-बीच में अपनी कहानियां क्यों जोड़ देते हैं?
उत्तर: रेल और संगीत जैसा हमने पढ़ा, देखा और सुना वही लिख रहे हैं। इसमें कभी-कभी देखने वाले का भी रोल हो सकता है। और उतना रोल तो हमारा भी रहेगा। देखने वाला अगर अपनी कहानी नहीं लिखेगा तो उसकी कहानी कौन लिखेगा?
(10) आप ब्लॉग में कभी-कभी 'भिया' जैसे लोकल शब्दों का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर: इंदौरवाले हैं तो कभी-कभी इंदौरी भाषा जुबां पर आई ही जाती है भिया ! इंदौर में भिया मतलब सिर्फ भाई नहीं होता है। बस पति और पत्नी एक दूसरे को भिया नहीं बोलते हैं! बाकी सभी एक दूसरे के भिया हैं! अगर आप इंदौरी नहीं हैं तो नहीं समझोगे भिया!
हमारा तो ऐसा है भिया कि सिर्फ मंदिर में या धार्मिक उत्सवों के दौरान ही 'सियाराम, सियाराम, सियाराम' गाते हैं। बाकी समय तो यही गाते हैं: भीयाराम, भीयाराम, भीयाराम!
इंदौरी एबले हैं; ऐसे ही लिखेंगे;)
(11) आप महान गायक, गायिकाओं , गीतकारों और संगीतकारों के बारे में ज्यादा क्यों नहीं लिखते हैं?
उत्तर: ये ब्लॉग रेल और संगीत की उपासना के लिए है। किसी व्यक्ति विशेष की पूजा के लिए नहीं। महान लोगों की स्तुति के लिए ढेर सारी किताबें, बहुत सारे फेसबुक पेजेस और व्हाट्सएप ग्रुप हैं।
अगर आपको सिर्फ दुनिया के सात अजूबों को ही दिखाया जाए और बाकी दुनिया न देखने दी जाए तो कैसा रहेगा? संगीत के साथ भी यही है। सिर्फ प्रसिद्ध गायकों या संगीतकारों के गाने ही सुनाए जाएं तो आप कभी संगीत के विस्तार और खूबसूरती को समझ पाएंगे?
सिर्फ संगीत के अजूबों के बारे में ही लिखना बाकी अन्य कलाकारों के साथ अन्याय है। वैसे भी महान गायक, गायिकाओं, गीतकारों और संगीतकारों के बारे में अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनके बारे में और अधिक लिखने की काबिलियत हममें तो बिलकुल ही नहीं है।
अधिकतर लोगों को और हमको भी लगता है कि कोयल सबसे मधुर गाती है। लेकिन जब हम बाग, बगीचों या जंगल में जाते हैं तो सभी पंछियों का कलरव सुनना पसंद करते हैं। अगर सिर्फ कोयल के संगीत पर ही ध्यान दें तो जंगल का संगीत पीछे रह जाएगा।
इस ब्लॉग में रेल, संगीत और संगीत से जुड़े सभी छोटे-बड़े कलाकारों को सद्भावना और समानता के साथ याद किया जाता है ताकि फिल्म संगीत का पूर्ण रूप से सभी लोग आनंद उठा सकें।
(12) बहुत सारी फिल्मों जैसे देवदास (1955) में रेल दिखाई जाती हैं , इन सीन पर भी कुछ लिखना चाहिए।
उत्तर: रेल संगीत के सभी लेख पूर्ण होने के बाद रेल पर फिल्माए गए दृश्यों के बारे में भी निश्चित रूप से लिखा जाएगा। इन दृश्यों के बारे में बीच-बीच में आवश्यकतानुसार विभिन्न ब्लॉग पोस्ट में चर्चा भी की जा रही है।
(13) आपके ब्लॉग में कुछ गानों के वीडियो के लिंक नहीं हैं जबकि ऑडियो के लिंक लगाए गए हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर: ये समस्या 30, 40 और 50 के दशक की कई फिल्मों के साथ है। कुछ फिल्मों के प्रिंट्स नष्ट हो गए, कुछ गुम हो गए, कुछ चोरी हो गए और देश के बाहर चले गए। और कुछ कंपनियां और व्यक्ति जिनके पास पुरानी फिल्मों के प्रिंट हैं, वो उन्हें यूट्यूब या किसी और साइट पर लगाने में हिचकते हैं। वो नहीं चाहते की अन्य देशवासी इन फिल्मों या इन गानों को देखें और सुनें। इन कारणों से youtube या नेट पर या किसी और साइट पर बहुत सारी फिल्में उपलब्ध नहीं हैं। 60 के दशक के बाद की अधिकांश फिल्में VCD, CD, DVD पर उपलब्ध हैं। इसलिए नेट पर भी उपलब्ध हैं।
लेकिन फिल्मों के गाने ऑडियो के रूप में सुगमता से उपलब्ध है। इसका कारण ये है कि फिल्मों के गाने अलग से तवों (Shellacs) पर रिकॉर्ड होते थे। जहां फिल्मों के प्रिंट्स गिने चुने ही होते थे, तवे हजारों या लाखों कि संख्या में बनाए जाते थे। उनमें से कई तवे बच गए। और संगीत के रसिक जनों ने उन्हें यूट्यूब पर डाल दिया।
हमें उम्मीद है कि जिन रेल गीतों के वीडियो हम अभी नहीं देख पाए हैं आने वाले समय में जरुर देख पाएंगे।
(14) क्या मिल गया आपको इन 'बोरिंग' गानों के बारे लिखकर?
उत्तर: पहली बात। पढ़ने-लिखने से बहुत रोचक जानकारी प्राप्त हुई और प्राप्त हुआ अपूर्व, हार्दिक व निर्मल आनंद! अक्सर हम वही पढ़ते हैं जिसे परोसा जाता है। आप माने या न मानें, सोशल मीडिया द्वारा पड़ोसी गई नकारात्मक कहानियां पढ़-पढ़ कर समाज का दिमाग़ सड़ता जा रहा है। इन सभी लेखों को लिखने के बाद लगा कि थोड़ी 'मस्तिष्क सड़न' (Brain Rot) तो कम हुई! कुछ अच्छा परोसने की कोशिश की है पर अच्छा पढ़ना कौन चाहता है!? सब को रीलें देखने हैं!😊
दूसरी बात। हार्दिक आनंद के साथ बौद्धिक आनंद की भी प्राप्ती हुई। और क्या मिल गया हमको? हमें बावा मिल गए!! हुआ ये कि रेल संगीत लिखते-लिखते हमारे कॉलेज (SGSITS Indore) में पुराने रखे हुए स्टीम इंजिन की याद आ गई। इस बहाने इस इंजिन के बारे में भी थोड़ी से शोध हो गई। इस प्राचीन इंजिन 'बावा' के बारे में जानने के लिए पढ़ें: SGSITS में रखा रहस्यमई भाप का इंजन। अंग्रेजी में पढ़ने के लिए : Bawa has to sing and whistle.
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पंकज खन्ना
9424810575
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हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)
अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।
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