रेल संगीत पर पुस्तक क्यों नहीं?



बहुत सारे दोस्तों और पाठकों से ये सुझाव मिलता रहता है कि रेल संगीत पर एक किताब  प्रकाशित करा दी जाए। बार-बार ब्लॉग कौन देखेगा? सुनकर बहुत अच्छा लगता है कि शुभचिंतक दोस्त और पाठक इस विषय और ब्लॉग को प्रकाशित करने लायक समझते हैं। आप सभी लोगों के प्रोत्साहन से ही ये सारे ब्लॉग पोस्ट लिखे जा रहे हैं।

लेकिन ब्लॉग लिखने और पुस्तक न लिखने के पीछे तीन कारण हैं।

पहला कारण:  आज इतनी अधिक किताबों के लिखे जाने के पीछे की प्रथम मंशा प्रसिद्ध होने की है। अक्सर हम अपने काम को पसंद नहीं करते हैं; लेकिन एक लेखक, कवि, चित्रकार या अन्य किसी भी कारण से प्रसिद्ध होना चाहते हैं। यदि हम किसी काम को सचमुच पसंद करते हैं तो हमको इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिए कि हम प्रसिद्ध हैं या नहीं। हमारी वर्तमान शिक्षा सड़ी हुई है क्योंकि यह हमें सिर्फ सफलता और प्रसिद्धि से प्रेम करना सिखाती है न कि उससे जिसे हम कर रहे हैं। 

हमें लिखने का शौक है। लिखना अच्छा लगता है, इसलिए लिखते हैं। किताब की छपास (छपने की आस) कतई नहीं है।

दूसरा कारण: हमारा ये विश्वास है कि दुनिया में जितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं उनका संरक्षण बहुत जरूरी है। नई किताबें, मैगजीन और न्यूज  पेपर छापकर पर्यावरण को और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। लाखों करोड़ों  छप रही  गैर जरूरी किताबें मानव सभ्यता के लिए इतनी आवश्यक नहीं हैं कि इनके लिए मूल्यवान कागज़ या कहें तो जंगल बर्बाद कर दिए जाएं।

आज के जमाने में जब इंटरनेट उपलब्ध है तो पुस्तक प्रकाशन में क्यों प्रत्यक्ष रूप से कागज  और अप्रत्यक्ष रूप से जंगलों को बर्बाद किया जाए!? बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिलों में बैठकर, पेट्रोल डीजल जलाकर आते हैं, पर्यावरण पर भाषण देते हैं, प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीते हैं, बोतल वहीं छोड़ते हैं, पर्यावरण पर पुस्तकों का विमोचन करते हैं और निकल लेते हैं। 

और अखबार वालों के जबरदस्त दोगलेपन को देखिए! लोगों को प्रतिदिन पर्यावरण की नसीहत देते रहते हैं और साल भर में हजारों टन के पेपर उपयोग में लाते हैं। उफ तक नहीं करते! पेपर के बनने की प्रक्रिया में करोड़ों लीटर पानी बर्बाद करते हैं! फिर अट्टालिकाओं के शिखर पर विराजित होकर बोलते हैं: लोगों पानी बचाओ!! 

हम भी आपके समान जंगल प्रेमी, पर्यावरण प्रेमी हैं। नाम अमर करने के छोटे उद्देश्य को लेकर पुस्तकें प्रकाशित करते रहें तो फिर कैसे पर्यावरण प्रेमी? हम कोई न्यूज पेपरवाले हैं क्या!?

तीसरा कारण: अगर पहले दो कारणों को भूल भी जाएं तो भी इस विषय पर किताब लिखने से मज़ा नहीं आएगा। क्योंकि इस ब्लॉग की विशेषता ही लेखन के साथ संगीत की है। पुस्तक में ब्लॉग में गानों के लिंक दे भी दें तो भी पाठक सीधे गाने सुनने से वंचित  रह जाएगा।

इसका सीधा उपाय यह है कि इन ब्लॉग  पोस्ट को मिलाकर कुछ Ebooks लिख दी जाएं और फ्री में उपलब्ध करा दी जाएं। इस की विस्तृत जानकारी आपको करीब 100 लेख लिखने के बाद जरूर दी जाएगी।

ब्लॉग को पढ़ते रहने के लिए हार्दिक धन्यवाद!



पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:

तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:

Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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