(18) ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफसाना कहते हैं।


   ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफसाना कहते हैं।


गाना: ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफसाना कहते हैं।फिल्म: बाजार (1949)। गीतकार: कमर जलालाबादी। संगीतकार: श्याम सुंदर और हुस्नलाल-भगतराम। गायिका: राजकुमारी, लता मंगेशकर और साथी।(निगार सुलताना, कुक्कू और साथियों पर फिल्माया गया गाना)।




ये गाना या कव्वाली एक  रेलगीत भी  है। निगार सुलताना और उनकी महिला नाटक मंडली (थिएटर ग्रुप) इस कव्वाली को गा रहे हैं। पुरुष साजिंदे छुपा दिए गए हैं।और ये कव्वाली बन जाती है All Female कव्वाली!

सामान्यतः कव्वालियां सूफियाना होती हैं। लेकिन फिल्मी कव्वालियों में आम तौर पर दो ग्रुप होते हैं एक पुरुषों का और दूसरा महिलाओं का।  दोनों तरफ से एक दूसरे पर प्यार/व्यंग्य/दर्द भरे शब्द बाण छोड़े जाते हैं। कव्वाल और दर्शक/श्रोता इन कव्वालियों का भरपूर आनंद लेते हैं।

आज की कव्वाली प्रसिद्ध फिल्मी कव्वालियों से थोड़ी अलग है। पूरा का पूरा कव्वाल ग्रुप महिलाओं का है। आप भी देखें और आनंद लें: ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफसाना कहते हैं। 

कव्वाली में  निगार सुलताना और कुक्कू अच्छे से कव्वाली पेश करते हुए दिखाई दे रही हैं। इनकी वेशभूषा, टोपी और अदायगी सभी कुछ अव्वल दर्जे का है। 

ये बताने के लिए कि थिएटर ग्रुप पूरे भारत में घूम-घूम के अपने प्रोग्राम कर रहा है; गाने में विभिन्न स्टीम इंजन वाली रेल गाड़ियों को भी दिखाया गया है। गाने के बीच में ही रेलों के साथ शहरों के नाम भी लिखे आ जाते हैं जैसे: दिल्ली, बंबई, लाहोर और कलकत्ता आदि। गाने में रेलों  का भी सुंदर मिश्रण किया गया है। लाहौर के जिक्र से समझ आता है कि फिल्म सन 1947 से पहले ही बनना शुरू हो गई थी।

जहां तक लता की गायकी का सवाल है वो तो अति उत्तम है ही, हमेशा के समान। राजकुमारी के कुछ रेल गीत आप पहले ही सुन चुके हैं, जैसे: लेख क्रमांक 4 (ये रेल हमारे घर की), लेख क्रमांक 6 (मोरे परदेसी साजन) और लेख क्रमांक 8 (धूएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए।)

इनका अगला रेल गीत भी जल्दी ही आने वाला है। तभी राजकुमारी के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

निगार सुल्ताना (1932-2000) एक  सुंदर और कामयाब अभिनेत्री थीं। उन्होनें सन 1948 में राजकपूर की फिल्म आग में चरित्र अभिनेत्री के रूप में पहली सफलता प्राप्त की। बाद में उन्होंने पतंगा, शीशमहल, मिर्जा ग़ालिब, यहूदी, दो कलियां जैसी कुल 50 फिल्मों में काम किया। निगार सुलताना को विशेषतः मुगले आज़म (1960) में "बहार बेगम" की भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है।




खूबसूरत, जिद्दी और शादी शुदा निगार ने मुगले आजम के शादी शुदा डायरेक्टर के.आसिफ से प्यार किया, शादी  रचाई, प्यार में धोखा खाया, अपनी मोहब्बत को कोर्ट तक घसीटा, तलाक लिया और  अंतिम समय में फर्नीचर बेचकर जीवन यापन किया। (निगार सुलताना के बारे में अधिक जानने के लिए ये वीडियो भी देख सकते हैं।)

आज की कव्वाली के बोल:

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं। (2)

हमें तो काम है बस चुपके-चुपके याद करने से। मुहब्बत का मज़ा आता नहीं फ़रियाद करने से। जो खामोशी से जल जाए उसे परवाना कहते हैं (2)

उसे परवाना कहते हैं अजी परवाना कहते हैं। जो खामोशी से जल जाए उसे परवाना कहते हैं

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं।

किसी के प्यार की खातिर ज़माने को भूलाया है। जिन्हें अपना बनाने के लिए सब कुछ लूटाया है। क़यामत है के वो अब तक हमें बेगाना कहते हैं। (2)

हमें बेगाना कहते हैं अजी बेगाना कहते हैं। क़यामत है के वो अब तक हमें बेगाना कहते हैं।

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं।

इधर भी देखकर एक बार साहिब मुस्कुरा देना। तुम्हारी एक नज़र का काम है पागल बना देना। जिसे दीवाना तुम कह दो उसे दीवाना कहते हैं (2)

उसे दीवाना कहते हैं अजी दीवाना कहते हैं। जिसे  दीवाना तुम कह दो उसे दीवाना कहते हैं।

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं।

जहाँ के कूचे-कूचे में पता पूछा तेरा हमने। कहा लोगों ने दीवाना तो यूँ हँसकर कहा हमने। मुहब्बत करनेवाले को सभी दीवाना कहते हैं। (2)

सभी दीवाना कहते हैं अजी दीवाना कहते हैं। मुहब्बत करनेवाले को सभी दीवाना कहते हैं

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं।

जिसे देखो ज़माने में किसी से प्यार करता है। कहीं भौंरा तडपता है कहीं परवाना जलता है। हज़ारों कहनेवाले एक ही अफ़साना कहते हैं। (2)

अजी अफ़साना कहते हैं अजी अफ़साना कहते हैं। हज़ारों कहनेवाले एक ही अफ़साना कहते हैं।

ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफ़साना कहते हैं। हमें ये दुनियावाले आपका दीवाना कहते हैं।

सच में ये एक बेहतरीन कव्वाली है। इसे कमर जलालाबादी ने हिंदी और उर्दू  के मिश्रण से  खूबसूरती से लिखा है। प्रतिभाशाली संगीतकार तिकड़ी श्यामसुंदर/हुसनलाल-भगतराम ने भी बहुत ही मीठा संगीत रचा है इस कव्वाली के लिए। और परदे पर निगार, कुक्कू और अन्य साथियों ने अपने प्यार का अफसाना  बहुत  ही  अदा से सुनाया और दिखाया है।

सिर्फ यही कव्वाली नही बल्कि फिल्म बाजार का हर गाना श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन में लाजवाब बना है: चाहें तो आप भी सभी गाने सुन सकते हैं:

 शहीदो तुमको मेरा सलाम: मोहम्मद रफी का गाया देशभक्ति का गीत जो लगभग भुला दिया गया है। राष्ट्रीय त्योहारों पर तरह-तरह के देशभक्ति के गाने बजते हैं। पर इस गीत को कोई याद नहीं करता हैं। मालूम नही क्यों!

साजन की गलियाँ छोड़ चले: अधिकतर संगीतप्रेमियों ने ये गीत जरूर सुना होगा। लता की आवाज़ का जादू जो है इस गाने में। स्वयं लता का ये फेवरेट गाना था। गीतकार, संगीतकार और गायिका के ग्रेट टीमवर्क से ये अमर गीत बना है। इस फिल्म का सर्वोत्तम गीत माना जा सकता है।

राम कसम मैं घूंघट के पट : फिल्म की हीरोइन बिजली (निगार सुलताना) थिएटर में एक दिन गाने नहीं आती है तो थिएटर मालिक याकूब खुद स्त्री बनकर गाना गाते हैं! राजकुमारी और सतीश बत्रा ने इस गीत को गाया है। क्या उनकी पोल खुल जाती है।? देखें और मालूम करें!

 पी आये आ कर चल भी दिये : पेंट और टी-शर्ट  धारिणी कुक्कू पर फिल्माया गया अद्भुत गाना या कहें प्राचीन काल का आइटम सॉन्ग। गाने के शब्दों, उम्दा संगीत और इनके लटके/ झटके/मटकने पर बहुत सिक्के लुटाए गए होंगे! (कुक्कू के अन्य गाने।)

अपनी नजर से दूर वो: इस रेलगीत की चर्चा पिछले लेख क्रमांक 17 में की जा चुकी है। देखिए ये वाला ब्लॉग पोस्ट।

छल्ला दे जा निशानी,  शमशाद बेगम, सतीश बत्रा, और मोहम्मद रफी की आवाज़ में नृत्य-गीत। ये गीत  श्याम, गोप और एक नृतकी (शायद मंगला) पर फिल्माया गया है।

ओ जानेवाले चांद जरा मुस्कुरा के रफी की आवाज़ में मधुर गीत।

मेरे भगवान तू मुझको यूं ही बर्बाद रहने , मोहम्मद रफी का गाया एक और बेजोड़ गीत।

बसा लो अपने निगाहों में प्यार, लता की आवाज़ में कम सुना लेकिन बहुत मधुर गीत जिसे बार-बार सुना जा सकता है। निगार पर फिल्माया गया है और उन्होंने बहुत अच्छे से निभाया है। दर्शकों में श्याम और गोप को देखिए; हो कैसे रहे हैं! बावले हुए मचले जा रहे हैं! 

ए दिल उनको याद न करना  लता और निगार की एक और श्रवणीय और दर्शनीय प्रस्तुति।

ये है दुनिया का बाज़ार, मोहम्मद रफी का एक दार्शनिक गीत थिएटर ग्रुप के साथ।

ऐ मोहब्बत उनसे मिलने का बहाना बन गया : हीरोइन की किताबें गिर जाती हैं और हीरो उनको उठाता है। ये 'हादसा' शायद सबसे पहले इसी फिल्म में हुआ था! निगार लेडीज साइकिल से जा रहीं हैं। श्याम को देखकर उनकी साइकिल और किताबें दोनों गिर जाती हैं। खुद भी। हीरो किताबें उठाते हैं। उनको देते हैं। अब दोनों साइकिल के फ्रेम के दो तरफ उकड़ू बैठकर फ्रेम के  आरपार प्यार से झांकते हुए गाना गा रहे हैं: ऐ मोहब्बत उनसे मिलने का बहाना बन गया!

और हमें लिखने का बहाना मिल गया!


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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