(17) अपनी नज़र से दूर वो

पंकज खन्ना 


                  अपनी नजर से दूर वो....

गाना: अपनी नजर से दूर वो। फिल्म: बाजार (1949)। गीतकार: कमर जलालबादी। संगीतकार: श्याम सुंदर और हुसनलाल-भगतराम। नायक: श्याम। नायिका: निगार सुलताना। गायक: मोहम्मद रफी।  गायिका:  लता मंगेशकर।


आज के गीतकार हैं कमर जलालबादी इनके बारे में हम पहले लेख क्रमांक 14  में चर्चा कर चुके हैं: चले चक चक चक चक रेल। 

आज के गाने के गायक हैं मोहम्मद रफी और गायिका हैं लता मंगेशकर। ये गीत इन दोनों के फिल्मी संगीत के जीवन के शुरु के दिनों का है। दोनों ने ही कमाल किया है गाने में। पूरे रेल संगीत में जितना नहीं लिखा जाएगा उससे कई सैकड़ों गुना अधिक इन दोनों हस्तियों पर अभी तक लिखा जा चुका है। ईमानदारी से बोलें तो हमारी औकात भी नहीं है कि इन लोगों के बारे में कुछ नया लिख पाएं। बस नतमस्तक ही हो सकते हैं।

आज का गीत फिल्म के हीरो श्याम पर फिल्माया गया है। और आज के गीत के संगीतकार हैं श्याम सुंदर। श्याम सुंदर के बारे में पहले ही लेख क्रमांक आठ में बात कर चुके हैं: धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए। ये श्याम और संगीतकार श्याम सुंदर अलग-अलग कलाकार हैं। 

एक तीसरे श्याम कुमार भी हुए हैं जो बहुत ही  प्रसिद्ध गायक थे। उनके बारे में भी  लेख क्रमांक 11( जान बची सो लाखों पाए) में  कुछ लिखा जा चुका है। (और एक  चौथे  प्रसिद्ध श्याम  भी हुए हैं। ये मलयालम गीतों के चैंपियन हैं)। 

कम प्रसिद्ध श्यामों की गिनती भी करना शुरू कर दी तो ब्लॉग रास्ते से भटक जाएगा! अपनी एक्सपायरी डेट दिन पर दिन पास आती जा रही है इसलिए काम की बात पर ही लौट आते हैं, भीया!
 
आज फिल्म के हीरो श्याम (1920-1951) की बात करते हैं।


इनका पूरा नाम था श्याम सुंदर चड्ढा। लेकिन इन्हें सिर्फ श्याम नाम से ही जाना जाता है। इनका फिल्मी जीवन सन 1942 में शुरू हुआ था। इनकी मृत्यु सन 1951 में  घुड़सवारी के दौरान हुई दुर्घटना के बाद अल्पायु (31 वर्ष) में ही हो गई थी।

श्याम बहुत ऊंचे पूरे और सुंदर व्यक्तित्व वाले कलाकार थे। उन्होंने लगभग 30 फिल्मों में अभिनय किया। और उनकी सबसे प्रसिद्ध पिक्चर यही थी: बाजार (1949)

इसमें उनकी जोड़ी निगार सुलताना के साथ थी। ये जोड़ी काफी प्रसिद्ध हुई। इन दोनों पर फिल्माए गए कुछ गाने बहुत अच्छे बने हैं। निगार सुलताना का जिक्र और बाजार फिल्म के अन्य गानों का जिक्र अगले ब्लॉग पोस्ट में।

आज का रेल गीत भी उनमें से एक है: 

अपनी नज़र से दूर वो। अपनी नज़र से दूर वो। उनकी नजर से दूर हम। तुम ही बताओ क्या करें। मजबूर तुम, मजबूर हम। तुम ही बताओ क्या करें।

बुझ गया प्यार का चिराग। दिल का जहां उजड़ गया। प्यार में हम तो लुट  गए। आपका क्या बिगड़ गया। आपका क्या बिगड़ गया। इससे बड़ी सजा है क्या। इससे बड़ी सजा है क्या। तुमसे ही दूर दूर हम। तुम ही बताओ क्या करें।

ख्वाब में आओ एक बार। जख्म-ए-जिगर दिखाए हम। तुम भले बेवफा कहो। लब न मगर हिलाए हम। लब न मगर हिलाए हम। आंसु टपक के ये कहे। आंसु टपक के ये कहे। मजबूर तुम , मजबूर हम। तुम ही बताओ क्या करें।

साथी नहीं कोई मेरा और कोई राजदा नहीं। ऐसा लुटा है काफिला, कदमों का भी निशान नहीं। कदमों का भी निशान नहीं। इतना ही याद है हमें। इतना ही याद है हमें, लुट गए बेकसूर हम। तुम ही बताओ क्या करें। मजबूर तुम, मजबूर हम। तुम ही बताओ क्या करें।

अपनी नज़र से दूर वो। अपनी नज़र से दूर वो। उनकी नजर से दूर हम। तुम ही बताओ क्या करें। मजबूर तुम, मजबूर हम। तुम ही बताओ क्या करें।

गाने की सिचुएशन ऐसी है कि हीरो परवाना साहब (श्याम) और हीरोइन बिजली ( निगार सुलताना) में  कुछ फिल्मी खटपट हो जाती है। श्याम इनको छोड़कर ट्रेन पकड़ लेते हैं और कहीं दूर निकल लेते हैं। फिर ट्रेन में खिड़की पर बैठकर  निगार को याद करके गाना गा रहे हैं। और उधर निगार अपने घर में बैठकर आंसू बहा रही हैं, श्याम को याद  कर रही हैं और गाना गा रहीं हैं: अपनी नजर से दूर वो

क्या गजब के शब्द लिखे हैं कमर जलालाबादी ने: 

-ख्वाब में आओ एक बार, जख्म-ए-जिगर दिखाए हम।

- ऐसा लुटा है काफिला, कदमों का भी निशान नहीं।

गानों में रेल कौनसी है और स्टीम इंजन कौनसा है कुछ पता नहीं! अंत में थोड़ी रेल के बारे में भी बात कर लें। अगर आप रेलों का इतिहास जानना चाहते हैं तो इस लिंक को क्लिक करें।

अच्छा रेल के  इतिहास में अधिक रुचि नहीं है!? तो चलो आज एक रेल जोक  पढ़  लीजिए। पिछले अंक ( हैलो हैलो हैलो जेंटलमैन) में आपने देखा कि कैसे अंग्रेजों  ने हमारे ओखिल बाबू का मज़ाक दुनिया भर में उड़ाया है। इस बार  अंग्रेजों के भी थोड़े से मजे लिए जाएं:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक अमेरिकन सैनिक जर्मनी में कई हफ्तों की भीषण लड़ाई के  बाद लौट रहा था और लंदन जाने वाली ट्रेन में सवार था। ट्रेन में भारी भीड़ थी। सैनिक ने एक छोर से दूसरे छोर तक मुआयना किया। कोई सीट नहीं मिली। लेकिन एक अंग्रेज युवती  ने अपनी  कुतिया को पास की एक सीट पर बैठा रखा था। सैनिक ने युवती से उस सीट पर बैठने की अनुमति मांगी। वो नाक भोंह सिकोड़कर, मुंह बनाकर बोली: "तुम अमेरिकन बड़े असभ्य होते हो। दिख नहीं रहा है कि मेरी जूली यहां आराम कर रही है!?"

सैनिक जगह खोजने के लिए दृढ़ निश्चय के साथ चला गया। लेकिन ट्रेन के दोनो सिरों तक एक और  चक्कर लगाने के बाद, उसने खुद को फिर से कुत्ते वाली महिला के सामने पाया। उसने फिर से पूछा, "देवीजी क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ? मैं बहुत थक गया हूँ।" अंग्रेज महिला ने पुनः अपनी नाक सिकोड़ते हुए  तुनक  कर कहा, "तुम अमेरिकी! तुम न केवल असभ्य हो, बल्कि तुम ठरकी और अपराधी भी हो।"

सिपाही ने और कुछ नहीं कहा। वह झुका, जूली को उठाया और ट्रेन की खिड़की से बाहर फेंक दिया और खाली हुई सीट पर धम्म से बैठ गया। महिला चीखी, चिल्लाई, रूदन चीत्कार किया। स्यापा मचाया। डब्बे को सर पर उठा लिया। कोई  भी यात्री उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

बस, डिब्बे  के दूसरी तरफ बैठे एक  ब्रिटिश टोपी धारी ठेठ अंग्रेज सज्जन ने  सिगार पीते-पीते और डंडा हवा में लहराते हुए अमेरिकन सैनिक से शिकायती स्वर में ये कहा: "सर, आप अमेरिकियों को गलत काम करने का बहुत शौक है। आप गलत हाथ में कांटा पकड़कर खाते हैं, आप अपनी 'गाड़ियाँ' सड़क के गलत तरफ चलाते हैं, अधिकतर शब्दों का गलत उच्चारण करते हैं। और सर, आपने अभी-अभी एक गलत कुतिया को खिड़की से बाहर फेंक दिया है!"


पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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