(20) मुझे सच-सच बता दो तुम! क्या!!!???

पंकज खन्ना 

                    मुझे सच सच बता दो।

गाना: मुझे सच सच बता दो। फिल्म: बावरे नयन। गायक : मुकेश। गायिका: राजकुमारी। हीरो: राज कपूर। हीरोइन: गीता बाली। गीतकार, निर्माता और निर्देशक: केदार शर्मा।


                      राजकुमारी (1924-2000)

कुछ पाठक दोस्त बढ़ी बेसब्री से साठ और सत्तर के दशकों के प्रसिद्ध रेल गीतों के बारे में पढ़ना और सुनना चाहते हैं। अब तक चालीस के दशक के कुल 19 रेल गीत पर लेख लिखे जा चुके हैं। आगे ये संख्या बढ़ भी सकती है!

हम अब इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ चुके हैं। आज से पचास के दशक के रेल गानों का श्रीगणेश कर रहे हैं। पचास के दशक में बहुत ही मधुर रेलगीत बनाए गए हैं और इन गानों की संख्या कम से कम 26 है। ढंग से लिखेंगे तो लगभग आधा साल लगेगा! साठ और सत्तर के दशक के गानों के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।

सन पचास के दशक का आज का गाना 'मुझे सच सच बता दो।' हमारी विचार से सर्वकालिक  सर्वश्रेष्ठ रोमांटिक युगल गीतों  में से एक है। एक बार हमारी नजर से ये गाना देखिए और हमारे कानों से ही ये गाना सुनें तो आप भी सब कहा और  सारा  अनकहा समझ जायेंगे!


केदार शर्मा द्वारा लिखित गाना ये है: 

मुझे सच सच बता दो!?
-क्या?
कि कब दिल में समाये थे?
वो पहली बार मुझको देख कर जब मुस्कुराये थे!

तुम्हें कुछ याद होगा!?
-क्या?
बहुत घबरा रहे थे तुम!
तुम्हें भी याद होगा, किस क़दर शरमा रहे थे तुम!

तुम्हें किसने बताया!!
-क्या?
मुहब्बत किसको कहते हैं!?
जो आँखों में बसे हैं, जो हमेशा दिल में रहते हैं।

तुम्हें किसने सज़ा दी!?
-क्या?
कि रातों को गिनो तारे!?
वो ज़ालिम जिसके मीठे बोल, लगते हैं बड़े प्यारे!

तुम्हें किसने कहा है!
-क्या?
मेरे सपनों में आने को!
तेरे सपनों में आते,हैं तेरी क़िस्मत जगाने को
तेरी क़िस्मत जगाने को!

उधर गाने वाले किस कदर घबरा रहे हैं, शरमा रहे हैं और इधर हमारे समान दर्शक और श्रोता 'बावरे नैन' हुए जा रहे हैं! इस गाने को याद करते ही किस कदर पगला रहे हैं हम!

इस गाने में राजकुमारी ने बीच-बीच में चुलबुली हीरोइन गीता बाली के लिए राजकपूर से संगीतमय स्वर में और कातिलाना अंदाज में जो 'क्या' पूछा है ना; वो गजब ढा देता है! जरा सुनिए तो सही  फिर से एक बार: मुझे सच सच बता दो।

सिद्धांतानुसार, फिल्म की कहानी तो नहीं बताएंगे पर 'गाने की कहानी' बताना जरूरी है। फिल्म की हीरोइन गीताबाली एक तांगा या कहें घोड़ा-गाड़ी चलाती हैं! उनका तांगा रेलवे स्टेशन और गांव के बीच में दौड़ता है। शोले (1975) वाली बसंती के आने के पच्चीस-तीस साल पहले भी महिलाएं फिल्मों में तांगा चलाती थीं! याद रहे और इनकी अदाएं, भावभंगिमाएं  भी याद रहें। 

कौनसी  तांगे वाली अधिक चंचल और शोख है या किस का चेहरा ज्यादा कहानी कहता है!? गीता बाली या हेमा मालिनी!? आप ही निर्णायक हैं!

पहले राज कपूर बंबई से ट्रेन में गीता बाली के गांव में  आते हैं। इनके तांगे में बैठकर इनके ही घर में मेहमान बनकर आए हैं। और फिर दोनों  के 'नैन बावरे' हो गए। देखते ही देखते प्यार-मोहब्बत-इश्क-लव हो जाता है। राज कपूर का गांव छोड़ने का वक्त आ गया तो गीता बाली उनको तांगे से रेलवे स्टेशन छोड़ने के पहले तांगा जोतना सिखाने लगती हैं। सिखाते-सीखते दोनों एक दूसरे को घोड़े रहित गाड़ी में बिठा कर, झुलाकर, मस्त हो कर गा रहे हैं: मुझे सच सच बता दो।

आखिर में घोड़ागाड़ी चलती है और गीता बाली राज कपूर को ट्रेन में बैठा देती हैं। चलती हुई ट्रेन दिखाई जाती है। राजकपूर के हाथ में पता नहीं कैसे  गीताबाली की वेणी ( जुड़े में लगाने वाला फूलों की माला) आ जाती है। वो विजेता के भाव से ट्रेन की खिड़की के बाहर वेणी लहराते हुए अलविदा कहते हुए प्रतीत होते हैं। उधर गीताबाली विरह में डूबकर टूटी हुई दिखाई गई हैं। 

वाह क्या गाना और क्या फिल्मांकन है!

इस गीत में केदार शर्मा के एक-एक शब्द अनमोल हैं। दो प्रेमियों के आपसी संवाद से अमर गीत की रचना की है। केदार शर्मा का निर्देशन भी अति उत्तम है। उनका एक और अविस्मरणीय योगदान है। इन्होंने रोशन के संगीत को पारखी की नजर से समझा और रोशन की पहली फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी इस फिल्म में फिर मौका दिया। और फिर रोशन ने फिल्मी जगत को अपने संगीत से हमेशा के लिए रोशन कर दिया।

(इसी फिल्म बावरे नैन में राजकुमारी का ये गाना बहुत चला और आज भी पसंद किया जाता है: सुन बैरी बलम सच बोल।बावरे नैन का ही एक मधुर नृत्य गीत राज कपूर, गीताबाली और कुक्कू पर फिल्माया गया है: ये ईचक बीचक चुर्र। बावरे नैन के अन्य सुमधुर और हिट गाने सुनने के लिए यहां क्लिक करें।)

राजकुमारी दुबे (1924 -2000) या बोले तो सिर्फ राजकुमारी! इनके  इसी गीत का इंतजार था! आज इत्मीनान से उनके बारे में भी बातें कर लेते हैं। चालीस के दशक के उनके चार रेल गीत आप इसी ब्लॉग में पढ़-देख-सुन चुके हैं: ये रेल हमारे घर की, मोरे परदेसी साजन, धुएं की गाड़ी उड़ाए लिए जाए, ज़रा सुन लो हम अपने प्यार का अफसाना कहते हैं। और आज का गीत इनका गाया हुआ पांचवा रेल गीत है। ऐसा लगता है कि इनकी आवाज़ रेल गीतों पर बहुत अधिक जमती है। 

उन्होंने तीस के दशक से ही अभिनय और गायन शुरू कर दिया था। उनका और नूर मोहम्मद चार्ली का फिल्म बाज़ीगर (1938) का ये गाना फिल्मी गीतों का इतिहास समझने के लिए सुनिए: हां है कोई दिल लेने वाला, ले लो जी।

अब उनके कुछ बेहतरीन प्रसिद्ध गाने सुन लेते है जैसे:  महल  (1949) का ये गाना : घबरा के जो हम सर को टकराएं।फिल्म पाकीज़ा में राजकुमारी का गाया गाना नज़रिया की मारी मेरी गुईयां कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनका आखरी गाना था फिल्म किताब (1977) का ये दिल को छू जाने वाला भजन: हरि दिन तो बीता शाम हुई, रात पार करा दे।

इसके आगे और क्या कहें!? हरि, दिन तो बीता शाम हुई। रात पार करा दे!
  

पंकज खन्ना
9424810575

मेरे कुछ अन्य ब्लॉग:

हिन्दी में:
तवा संगीत : ग्रामोफोन का संगीत और कुछ किस्सागोई।
ईक्षक इंदौरी: इंदौर के पर्यटक स्थल। (लेखन जारी है।)

अंग्रेजी में:
Love Thy Numbers : गणित में रुचि रखने वालों के लिए।
Epeolatry: अंग्रेजी भाषा में रुचि रखने वालों के लिए।
CAT-a-LOG: CAT-IIM कोचिंग।छात्र और पालक सभी पढ़ें।
Corruption in Oil Companies: HPCL के बारे में जहां 1984 से 2007 तक काम किया।


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